पंचायतीराज यानी आम नागरिक का शासन. जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय और
जीवन की बुनियादी सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को दूसरों पर आश्रित न होना
पड़े. सत्ता चंद लोगों के हाथों में केंद्रित न रहे, बल्कि उसके कई भागीदार
हों.
अपने गांव में खुशहाली लाने के लिए ग्रामीणों को किसी पर आश्रित न रहना
पड़े. यह सपना था महात्मा गांधी का, जिसे पूरा करने के लिए प्रयास तो आजादी
के बाद से ही हो रहे हैं, लेकिन अभी तक यह सपना साकार नहीं हो पाया है.
झारखंड में भी कोशिश जारी है, इसी कोशिश के तहत वर्ष 2011 में पंचायत चुनाव
कराये गये. चुने गये पंचायत प्रतिनिधि अपने इलाकों में सक्रिय हैं. परिणाम
यह हो रहा है कि पंचायत सशक्त हो रहे हैं और विकास जनता तक पहुंच रहा है.
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि इनकी सक्रियता एक न एक दिन पंचायती राज के सपने को साकार करेगी, इसी उम्मीद के साथ रजनीश आनंद ने कुछ ऐसे मुखियाओं से उनके सपने के बारे में पूछा जो अपने काम के लिए सराहे जा रहे हैं.