सरना धान की जगह लेगा ‘करमा मासूरी’- चंद्रकुमार दुबे


बिलासपुर। प्रदेश में सरना धान की जगह जल्द ही ‘करमा मासूरी’
लेगा। कृषि वैज्ञानिकों ने इसे नई प्रजाति के रूप में तैयार किया है। यह कम
पानी और कम समय में अधिक उत्पादन देने वाला धान है। इसकी कीटनाशक
प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक है। मुंगेली में इसका सफल प्रयोग किया जा चुका
है। 
 
छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक सरना धान का उत्पादन होता है। राज्य सरकार ने
इसकी उत्पादकता बढ़ाने का प्रोजेक्ट ठाकुर छेदीलाल बैरीस्टर कृषि
महाविद्यालय के अनुसंधान केंद्र को दिया।
 
वैज्ञानिकों की कोशिश रंग लाई और वे नई किस्म तैयार करने में सफल रहे।
उन्होंने इसे बस्तर के प्रसिद्ध नृत्य करमा के नाम पर ‘करमा मासूरी’ नाम
दिया। अब तीन साल के अंदर इसके बीज पूरे प्रदेश में उपलब्ध कराने की योजना
है।
 
कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. गीत शर्मा ने बताया कि इसका उत्पादन डोरसा मटासी और कन्हार मिट्टी वाले 
खेतों में आसानी से किया जा सकता है। दरअसल सरना धान में सफेद माहो,
भूरा माहो, गंगई और पत्तियों में झुलसा रोग जैसी गंभीर बीमारियां होती
थीं। 
 
इससे फसल को बचाने के लिए अत्यधिक मात्रा में डीडीटी व रासायनिक
कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। इस कारण फसल का उत्पादन मूल्य बढ़ जाता
है। साथ ही खेतों की उर्वरता भी कम होती है।
 
इसलिए होगा खास 
 
> सरना धान का प्रति क्विंटल उत्पादन 45 क्विंटल प्रति एकड़ है, जबकि ‘करमा मासूरी’ का 50 क्विंटल होगा। 
> बेहद कम पानी में इसे तैयार किया जा सकता है। 
> ‘करमा मासूरी’ के दाने सरना की अपेक्षा पतले होंगे।
> यह 125 दिन में तैयार होगा, जबकि सरना को 140 दिन लगते हैं ।
 

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