केवल संयोगवश एक अर्थशास्त्री और नारीवादी बनी देवकी जैन विकासशील विश्व
की प्रमुख ‘नारीवादी अर्थशास्त्री’(फेमिनिस्ट इकोनॉमिस्ट) हैं. उच्च
अध्ययन के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रस्किन कॉलेज गयीं, भारत लौट कर
देवकी जैन ने भारतीय सहकारी आंदोलन के लिए काम करना शुरू किया.
वह विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में शामिल हो गयीं और पदयात्र की. 1966
में प्रसिद्ध गांधीवादी अर्थशास्त्री लक्ष्मी चंद जैन से विवाह किया.
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हेतु किताब के लिए शोध के दौरान देवकी जैन ने पाया
कि महिलाओं को आर्थिक रूप से गरीब बनाये रखने के लिए समाज रूढ़िवादी
परंपराओं का, कार्यस्थल में कम मजदूरी देने का, घर में परिवार चलाने का और
सरकारी आंकड़ों में झूठी जानकारी देने का व्यापक षडयंत्र चल रहा था. 1974
में उन्होंने ‘इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज ट्रस्ट’ स्थापित किया.
इसमें महिलाओं की आर्थिक दुर्दशा पर ऐसा शोध शुरू हुआ, जो नीति निर्धारण
में प्रभावकारी सुझाव दे. इसी वर्ष देवकी, इला भट्ट के संगठन सेवा से
जुड़ीं. इला भट्ट के शब्दों में, ‘1974 में एक कुशाग्र, जिंदादिल,
ऑक्सफोर्ड शिक्षित अर्थशास्त्री देवकी जैन दिल्ली से सेवा आयीं. देवकी और
उनके पति मेरे पहले ऐसे सहयोगी बने, जो कपड़ा कामगार संघ के बाहर से थे.’
संयुक्त राष्ट्र संघ के दिशा-निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में विकासशील और
अविकसित देशों (ग्लोबल साउथ) की महिलाओं संबंधी नीतियां बनती हैं. देवकी
जैन के अनुसार, यह परिपाटी नकारात्मक है, चूंकि ग्लोबल साउथ में विकसित
देशों के नुस्खे प्रतिकूल सिद्ध होते हैं. वर्ष 1984 में देवकी जैन ने
विकासशील देशों के प्रमुख विचारकों के साथ डॉन (डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्ज विद
वीमेन फॉर ए न्यू एरा या नये युग की महिलाओं के विकास के विकल्प) स्थापित
किया.
यह तीसरी दुनिया के विद्वानों का एक नेटवर्क है, जो ग्लोबल साउथ की महिलाओं को अपनी आवाज उठाने के लिए एक मंच प्रदान करता है.
वर्ष 1981 में देवकी जैन व प्रमुख महिला विचारकों ने मिल कर महिलाओं से
संबंधित अध्ययन पर पहली बार एक राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया. इसमें
महिलाओं से संबंधित अध्ययन को विश्वविद्यालयों के विषयों में समाहित करने
तथा महिलाओं की समस्याओं पर विश्वविद्यालयों में खोज, अनुसंधान, शिक्षण और
संबंधित गतिविधियों में भागीदारी पर जोर दिया गया. 1982 में इन्हीं
उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ‘इंडियन एसोसिएशन वीमेंस स्टडीज’ या महिलाओं
से संबंधित अध्ययन का भारतीय संगठन स्थापित हुआ.
संयुक्त राष्ट्र संघ की अनेक समितियों में देवकी ने अग्रणी भूमिका
निभायी है लेकिन देवकी ने इस संगठन की कमियों को भी उजागर किया है. जैसे
वर्ष 2004 में देवकी ने लिखा, ‘संप्रभुता के अभिभावक और महान उद्देश्यों की
उर्वर भूमि होने के स्थान पर संयुक्त राष्ट्र संघ केवल एक सामाजिक सेवा
संगठन बन कर रह गया है, जिसका एकमात्र कार्य मानवीय सहायता बांटना रह गया
है.
’ देवकी जैन संयुक्त राष्ट्र में कॉरपोरेट हितों के दबदबे की भी बड़ी
आलोचक हैं और अमेरिका के इराक पर आक्र मण पर यूएन की निष्क्रियता से बेहद
नाराज. देवकी जैन ने तब कहा था कि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को इस
आक्रमण के विरोध में इस्तीफा दे देना चाहिए था. एक परम विद्वान और अमेरिका
के परम निष्ठावान भारतीय शशि थरूर इस दौरानअमेरिकी आक्रामकता पर अपनी जहीन
अंगरेजी का मुलम्मा चढ़ा रहे थे. नारीवादी देवकी में कुछ तो बात है, जो
अवसरवादी पुरु षों में नहीं है.
देवकी जैन एक गांधीवादी अर्थशास्त्री हैं. उनके अनुसार, जहां समाजवाद
‘उत्पादन के साधन के स्वामित्व में असमानता’ की बात करता है, वहीं गांधी
‘खपत में असमानता’ की बात कहते हैं. यदि लोगों में अतिशय उपभोग और अपव्यय
के प्रति जागरूकता आये तो विश्व के विकास का ढांचा ही बदल जायेगा.
देवकी जैन ‘निर्धनता का नारीकरण’ करने की पक्षधर हैं. उनके अनुसार, गरीब
लोगों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. गरीबी का दंश महिलाओं
में पुरु षों से अधिक प्रचंड है. महिलाओं में निर्धनता बढ़ने का एक कारण
दुनिया में ऐसे घरों की संख्या बढ़ना है, जिनमें महिलाएं मुखिया हैं. देवकी
के अनुसार, दुनिया में गरीबी घटाने के लिए दुनिया की सारी महिलाओं को एक
साथ जुटाना होगा.
देवकी जैन आम आदमी की अवधारणा के समक्ष आम औरत को खड़ा करती हैं. देवकी
के अनुसार, व्यक्तिगत गरिमा व्यक्तिगत अर्थव्यवस्था पर निर्भर करती है. यह
आम औरत हर जगह है, लेकिन कहीं भी एक मजबूत राजनीतिक शक्ति नहीं है. आम औरत
की आर्थिक स्थिति स्थानीय सामाजिक रीति-रिवाज, स्थानीय मौसम के बदलते
मिजाज, और स्थानीय जमीन में उगते अनाज पर टिकी हुई है.
बेंगलुरु के अत्यंत संभ्रांत परिवार में 1933 में जन्मी एक लड़की न्यूरो
सर्जन बनने का सपना संजोती है, लेकिन मेडिकल की पढ़ाई में सहशिक्षा है.
सहशिक्षा के प्रति संकोचवश उस लड़की को स्थानीय महिला महाविद्यालय में
अर्थशास्त्र में दाखिला लेना पड़ता है. अपनी डिग्री के साथ वह तीन स्वर्ण
पदक भी हासिल करती है.