नयी दिल्ली (भाषा) केंद्र ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास संबंधी
प्रयासों के जरिये माओवादियों से निपटने का फैसला किया है, क्योंकि उसका
मानना है कि ऐसे प्रयासों से उनकी पकड़ कमजोर होगी।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने प्रेट्र से कहा, ‘‘हम नक्सल
प्रभावित इलाकों में विकास के लिये विशेष प्रयास कर रहे हैं। हमें उम्मीद
है कि इसका फल मिलेगा।’’
गौरतलब है कि आत्मसमर्पण करने वाले एक नक्सली
ने हाल ही में यह खुलासा किया था कि सरकार के अभियान के साथ-साथ विकास की
उसकी नीति ने जंगलों में बने ‘‘लाल गलियारों’’ में माओवादियों की पकड़ को
कमजोर किया है।
रमेश ने माओवादी बदारपू मलैया के इस खुलासे के बारे में
पूछे जाने पर कहा, ‘‘हमने प्रयास किया है… हमने ऐसे क्षेत्रों में सारंडा
विकास योजनाओं जैसी विशेष योजनाएं शुरू की है। इन क्षेत्रों में शांति
लाने में कम से कम पांच साल लगेंगे।’’
सारंडा विकास योजना माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास को साथ लेकर बड़े पैमाने का अभियान चलाने का सरकार का पहला व्यवस्थित प्रयास है।
हाल
ही में माओवादियों ने झारखंड के लातेहार जिले में सीआरपीएफ के 11 जवानों
की हत्या करने के बाद एक जवान के पेट के अंदर विस्फोटक रख दिया था।
गौरतलब
है कि झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा को सीआरपीएफ और राज्य
पुलिस के संयुक्त प्रयासों से अगस्त 2011 में माओवादियों के 11 साल के
कब्जे से मुक्त कराया।
इसके बाद सरकार ने सारंडा विकास योजना शुरू की।
रमेश
ने कहा कि केंद्र ने इस योजना को देश के अन्य जनजातीय बहुल इलाकों में
लागू करने का फैसला किया है। रमेश इन विकास कार्यक्रमों का जायजा लेने के
अभियान के तहत अबतक देश के 40 नक्सल प्रभावित जिलों का दौरा कर चुके हैं।
उन्होंने दावा किया कि जनजातीय समुदाय के लोगों को बांस जैसे जंगली सामान बेचने का अधिकार देने की सरकारी पहल के फल मिलने लगे हैं।
प्रयासों के जरिये माओवादियों से निपटने का फैसला किया है, क्योंकि उसका
मानना है कि ऐसे प्रयासों से उनकी पकड़ कमजोर होगी।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने प्रेट्र से कहा, ‘‘हम नक्सल
प्रभावित इलाकों में विकास के लिये विशेष प्रयास कर रहे हैं। हमें उम्मीद
है कि इसका फल मिलेगा।’’
गौरतलब है कि आत्मसमर्पण करने वाले एक नक्सली
ने हाल ही में यह खुलासा किया था कि सरकार के अभियान के साथ-साथ विकास की
उसकी नीति ने जंगलों में बने ‘‘लाल गलियारों’’ में माओवादियों की पकड़ को
कमजोर किया है।
रमेश ने माओवादी बदारपू मलैया के इस खुलासे के बारे में
पूछे जाने पर कहा, ‘‘हमने प्रयास किया है… हमने ऐसे क्षेत्रों में सारंडा
विकास योजनाओं जैसी विशेष योजनाएं शुरू की है। इन क्षेत्रों में शांति
लाने में कम से कम पांच साल लगेंगे।’’
सारंडा विकास योजना माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास को साथ लेकर बड़े पैमाने का अभियान चलाने का सरकार का पहला व्यवस्थित प्रयास है।
हाल
ही में माओवादियों ने झारखंड के लातेहार जिले में सीआरपीएफ के 11 जवानों
की हत्या करने के बाद एक जवान के पेट के अंदर विस्फोटक रख दिया था।
गौरतलब
है कि झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा को सीआरपीएफ और राज्य
पुलिस के संयुक्त प्रयासों से अगस्त 2011 में माओवादियों के 11 साल के
कब्जे से मुक्त कराया।
इसके बाद सरकार ने सारंडा विकास योजना शुरू की।
रमेश
ने कहा कि केंद्र ने इस योजना को देश के अन्य जनजातीय बहुल इलाकों में
लागू करने का फैसला किया है। रमेश इन विकास कार्यक्रमों का जायजा लेने के
अभियान के तहत अबतक देश के 40 नक्सल प्रभावित जिलों का दौरा कर चुके हैं।
उन्होंने दावा किया कि जनजातीय समुदाय के लोगों को बांस जैसे जंगली सामान बेचने का अधिकार देने की सरकारी पहल के फल मिलने लगे हैं।