नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय जल
संसाधन परिषद कल राष्ट्रीय जल नीति-2012 के मसौदे को स्वीकार कर सकती है.
यह नीति जल के संदर्भ में एक व्यापक राष्ट्रव्यापी कानूनी संरचना विकसित
करने पर जोर देती है.
इस मसौदे की घोषणा सरकार ने इस साल जनवरी माह में की थी. राष्ट्रीय जल बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर दो बार इसमें संशोधन भी किए गए.
कल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में इस परिषद की बैठक होगी. सभी
मुख्यमंत्री इस परिषद के सदस्य हैं. इस परिषद की पिछली बैठक वर्ष 2002 के
अप्रैल माह में हुई थी. इस बैठक में राष्ट्रीय जल नीति 2002 को अपनाया गया
था.
नए मसौदे के अनुसार, ह्यह्ययह बेशक माना गया है कि राज्यों को जल
संबंधी उचित नीतियां, कानून और नियमन तय करने का अधिकार है, फिर भी जल के
संदर्भ में एक व्यापक राष्ट्रीय कानूनी संरचना विकसित करने की जरुरत महसूस
की गई है ताकि संघ के हर राज्य में जल अधिकार के बारे में जरुरी कानून बन
सकें और स्थानीय जल स्थिति से निपटने के लिए सरकार की ओर से अंतिम स्तर तक
अधिकार पहुंचाए जा सकें.ह्णह्णइसके अनुसार, इस तरह के मसौदे में पानी को
सिर्फ एक दुर्लभ संसाधन की तरह ही न देखा जाए बल्कि इसे जीवन और
पारिस्थितिक तंत्र के पोषक के रुप में भी देखा जाए.
इसमें कहा गया
है, ह्यह्यजल का प्रबंधन राज्य के द्वारा एक सामुदायिक संसाधन की तरह
सार्वजनिक विश्वास के सिद्धांत के तहत किया जाना चाहिए ताकि खाद्य सुरक्षा,
जीविका और समान व टिकाउ विकास का लक्ष्य सबके लिए प्राप्त किया जा
सके.ह्णह्ण राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद की बैठक पहले 30 अक्तूबर को होनी
थी लेकिन मंत्रिमंडल में फेरबदल के चलते इसे रोक दिया गया था. इस फेरबदल
में हरीश रावत ने नए जल संसाधन मंत्री के रुप में पदभार संभाला.
इस
बैठक को रद्द किया गया ताकि रावत मंत्रालय के कामकाज को समझ सकें और बैठक
में मुख्यमंत्रियों द्वारा जल संबंधी मुद्दों से जुडे सवाल पूछे जाने पर वे
जवाब दे सकें. मुख्यमंत्रियों की ओर से पूछे जाने वाले सवालों में केंद्र
और राज्यों के बीच के संबंधों के सवाल अहम हैं.