भारत में एक नया रिवाज चल पड़ा है। वह यह कि दुनिया के विकसित देश जिस योजना को खारिज कर देते हैं, हमारी सरकार उसे सफलता की कुंजी समझ बैठती है। विशेष पहचान संख्या (यूआईडी) इसकी ताजा मिसाल है। मोटे तौर पर तो यह बारह अंकों वाला एक विशिष्ट पहचान पत्र है, जिसे देशवासियों को सूचीबद्ध कर उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन यही पूरा सच नहीं है। विशेषज्ञों की माने तो यहां कई रहस्य छुपे हैं। आज नंदन नीलेकणी एक परिचित नाम है। इन्हीं के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने यूनिक आइडेंटिफिकेशन आॅथरिटी आॅफ इंडिया (यूआईडीएआई) का गठन किया है, जो इस योजना को अमलीजामा पहनाने की हदतोड़ कोशिश में लगा है। जबकि, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी जैसे कई देश अपने देशवासियों के अधिकारों की सुरक्षा और सम्मान का हवाला देकर ऐसी परियोजना को खारिज कर चुके हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) में भी इसका काफी विरोध हुआ है। पर यूपीए सरकार इस योजना को पूरा करने के लिए इस कदर आतुर है कि वह संसद और संविधान की अवमानना करने से भी नहीं चूक रही। ऐसी तत्परता किसी गहरे रहस्य की तरफ इशारा करती है. पढें गोपालकृष्ण का पूरा आलेख यहां क्लिक करके
Related Posts
किसान का दर्द : खेत तक नहीं पहुंचती कागजों पर सजी योजनाएं
इंदौर। नेताओं का भाषण हो या अफसरों की फाइलें किसानों से संबंधित योजनाओं की फेहरिस्त खासी लंबी होती है। लेकिन…
बाल विवाह की समाजिक बुराई पर युवाओं की एक पहल- रेणुका पामेचा
ममता 17 साल की है। वह अन्य लड़कियों के साथ पिता के साथ रहती है परंतु अपने पिता से उसका…
अब तक के रिकॉर्ड में सबसे निचले स्तर पर आई रिटेल महंगाई
नई दिल्ली। आंकड़ों में ही सही, लेकिन महंगाई के मोर्चे पर बड़ी राहत मिली है। जुलाई में खुदरा कीमतों के…