नयी दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आखिरकार आज विवादास्पद भूमि
अधिग्रहण विधेयक को हरी झंडी दे दी. विधेयक में निजी क्षेत्र की परियोजनाओं
के लिए भूमि अधिग्रहण होने पर क्षेत्र के 80 प्रतिशत लोगों की सहमति लेने
का अनिवार्य प्रावधान किया गया है.
सार्वजनिक-निजी साझीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के मामले में क्षेत्र के
70 प्रतिशत लोगों की सहमति लेने का प्रावधान किया गया है. विधेयक के
प्रारुप के अनुसार क्षेत्र के जिन लोगों की जमीन का अधिग्रहण किया जायेगा
उनमें से 70 प्रतिशत की सहमति जरुरी होगी.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आज यहां हुई मंत्रिमंडल की
बैठक में भूमि अग्रिहण विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी गई. विधेयक को
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा अंतिम रुप दिया गया, जिसमें संप्रग अध्यक्ष
सोनिया गांधी के सुझावों को शामिल किया गया है. संप्रग अध्यक्ष ने सरकार को
उद्योगों और पीपीपी परियोजनाओं के लिये भूमि का अधिग्रहण करने से पहले
क्षेत्र के 80 प्रतिशत भूमि मालिकों की सहमति लिये जाने का सुझाव दिया था.
सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी मंत्रिसमूह के उस प्रस्ताव के पक्ष में
नहीं थी जिसमें कहा गया था कि उद्योगों एवं पीपीपी परियोजनाओं के लिए भूमि
अधिग्रहण के वास्ते जिन लोगों की भूमि का अधिग्रहण होगा उनमें से दो.तिहाई
लोगों की सहमति पर्याप्त होगी.
मंत्री समूह ने निजी परियोजनाओं और पीपीपी परियोजनाओं के लिये सहमति के
नियम में 67 प्रतिशत लोगों की सहमति लिये जाने का सुझाव दिया था. सरकार ने
मत्रिमंडल की बैठक में कुछ मंत्रियों द्वारा कडी आपत्ति किये जाने के बाद
अलग मंत्री समूह का गठन किया था.
ग्रामीण विकास राज्यमंत्री लालचंद कटारिया ने कल राज्यसभा को बताया कि
सरकार शीतकालीन सत्र में ही लोकसभा में भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास एवं
पुनस्र्थापना विधेयक, 2011 में आधिकारिक संशोधन पेश करना चाहती है.
कटारिया ने संवाददाताओं को यह भी बताया था कि विधेयक में इस्तेमाल नहीं
की गई जमीन लौटाने का भी प्रावधान है. भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 में
इस्तेमाल नहीं की गई जमीन लौटाने का कोई प्रावधान नहीं है.