सर्व ‘दीक्षा’ अभियान!- शिरीष खरे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध संस्थाओं का मध्य प्रदेश में
सर्व शिक्षा अभियान से जुड़ाव तो सवालों के घेरे में है ही लेकिन कोढ़ में
खाज की तर्ज पर अब इस सरकारी कवायद में भ्रष्टाचार के संकेत भी मिलने लगे
हैं. शिरीष खरे की रिपोर्ट.

कुछ महीनों पहले जब मध्य प्रदेश में गीता को
अनिवार्य रूप से स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया गया तब यह
चौतरफा विवाद का विषय बन गया था. शिक्षाविदों का कहना था कि ऐसे कदमों से
शिक्षा का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप बिगड़ सकता है तो वहीं भाजपा इसे पहले से एक
तरफ झुकी शिक्षा व्यवस्था को संतुलित और बेहतर करने का प्रयास बता रही
थी.  हालांकि बाद में यह विवाद धीरे-धीरे परिदृश्य से गायब हो गया. लेकिन
इस घटना के पहले और बाद में अपेक्षाकृत कई ऐसी कम चर्चित लेकिन महत्वपूर्ण
घटनाएं हुई हैं जो बताती हैं कि भाजपा सरकार ने बीते सालों में लगातार
स्कूली शिक्षा में संघ की विचारधारा को पोषित करने का काम किया है. सर्व
शिक्षा अभियान को निशाने पर रखने वाली इस सरकारी कवायद का सबसे चौंकाने
वाला पहलू यह है कि अब इससे जुड़ी आर्थिक अनियमितताओं के मामले भी सामने आने
शुरू हो गए हैं.

इस कड़ी में सबसे ताजा मामला प्रदेश की स्कूल शिक्षा मंत्री अर्चना
चिटनीस को प्रदेश लोकायुक्त द्वारा जारी नोटिस है. यह नोटिस राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ की पत्रिका देवपुत्र को अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर दिए
गए सरकारी अनुदान को लेकर है. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश सरकार ने देवपुत्र
पत्रिका को 2009 में सभी स्कूलों में अनिवार्य तौर पर पढ़ाए जाने का फैसला
लिया था. इस फैसले में हैरान करने वाली बात यह थी कि पत्रिका की सदस्यता के
लिए 13 करोड़ 27 लाख रुपये का ड्राफ्ट पहले ही जारी कर दिया गया जबकि
अनुबंध के लिए समिति का गठन बाद में किया गया. यह रकम प्रदेश के एक लाख 12
हजार से अधिक स्कूलों में देवपुत्र का सदस्य बनाने के नाम पर जारी की गई
है. सन 2024 तक लागू इस फैसले का मतलब है कि यदि भविष्य में भाजपा सत्ता
में न भी रहे तो भी सालों तक प्रदेश के सभी स्कूलों में संगठन की विचारधारा
पढ़ाई जाती रहेगी. 
विचारधारा की आड़ में रेवड़ियां बांटने का दूसरा
मामला सूर्य नमस्कार से जुड़ा है. विवेकानंद जयंती के मौके पर 12 जनवरी के
दिन प्रदेश के सभी स्कूलों में अनिवार्य रुप से करवाए जाने वाले सूर्य
नमस्कार में हर साल 12 करोड़ रुपये का खर्च आता है. यह काम सरकार खुद न
करके संघ से जुड़ी विद्या भारती से करवाकर उसे लाभ पहुंचाती है. इतना ही
नहीं, विचारधारा को पोषित करने के लिए सरकारी नीतियों को भी तोड़ने-मरोड़ने
का काम किया गया है. जैसे कि प्रदेश सरकार ने केंद्र की कस्तूरबा गांधी
बालिका विद्यालय के योजना संचालन का सारा काम संघ की ही ग्रामीण महिला संघ
को सौंप दिया है. दरअसल इस योजना के तहत जहां भी बालिका विद्यालय स्थापित
किए जाते हैं उनका प्रबंधन स्थानीय महिलाओं की एक समिति करती है, मगर
प्रदेश सरकार ने इस प्रावधान को न मानतेहुए ग्रामीण महिला संघ को ही
नियुक्त कर दिया.

संघ से जुड़े विवेकानंद केंद्र के जरिए शिक्षकों के शिक्षण-प्रशिक्षण का
कार्यक्रम भी अपने आप में अनोखा है. इसी के अंतर्गत पिछले साल एक
प्रशिक्षण कार्यक्रम में सरकार ने शिक्षकों को 500 रुपये साहित्य और
स्टेशनरी खरीदने के लिए तो दिए लेकिन उनसे संघ का साहित्य खरीदने के लिए
तीन सौ रुपये काट भी लिए. इस तरह नौ जिलों के 21 हजार शिक्षकों को 65 लाख
रुपये से अधिक का संघ साहित्य बेच दिया गया. प्रदेश के स्कूली शिक्षा राज्य
मंत्री नानाभाऊ माहौड़ को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगता. उनके मुताबिक, ‘यह
साहित्य शिक्षकों को खरीदना इसलिए अनिवार्य था ताकि उन्हें भारतीय संस्कृति
के गुर सीखने को मिलें.’ वहीं शिक्षकों के एक तबके का मानना है कि भारतीय
संस्कृति को लेकर कइयों का नजरिया संघ के मापदंडों से मेल नहीं खाता. इसके
बावजूद उन पर संघ साहित्य खरीदने का आदेश थोपा जा रहा है. मध्य प्रदेश
शिक्षक कांग्रेस के अध्यक्ष रामनरेश त्रिपाठी इसे तानाशाही मानते हैं. उनका
आरोप है, ‘प्रशिक्षण के नाम पर आया पैसा भी भाजपा सरकार संघ के खाते में
डाल रही है.’

इसके अलावा अनगिनत ऐसे मामले भी हैं जिनमें प्रदेश सरकार ने कभी
पुस्तकालय तो कभी छात्रावास आदि के नाम पर संघ से जुड़ी संस्थाओं को लाभ
पहुंचाया. मसलन, उसने भोपाल के ही कालापानी स्कूल में रामकृष्ण शिक्षा
समिति (संघ से संबद्ध) को सौ सीटर छात्रावास चलाने के लिए 30 लाख रुपये का
चेक जारी किया. हालांकि शिक्षा अधिकारियों ने इससे पहले इसी स्कूल में
छात्रावास के लिए पर्याप्त जगह न होने की बात कही थी. शिक्षा का अधिकार
कानून के विशेषज्ञ बताते हैं कि कानून के भीतर राज्य सरकारों के लिए कहीं
भी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि वे सर्व शिक्षा अभियान के कामों में
स्वयंसेवी संस्थाओं को भागीदार नहीं बना सकतीं. इसी का फायदा उठाकर कोई भी
सरकार अपने अनुकूल विचारों वाली संस्थाओं को शामिल कर सकती है. इस मायने
में प्रदेश की भाजपा सरकार ने निचले स्तर तक राजनीतिक विचारधारा को पुख्ता
बनाने के लिए जबरदस्त घेराबंदी की है. यहां पर भाजपा राष्ट्रीय चुनावी
रणनीति के योजनाकार अनिल माधव दवे ने जन अभियान परिषद को संगठित करके
निर्णायक भूमिका निभाई है.

उन्होंने सरकार से वित्त पोषित इस परिषद के बैनर तले प्रदेश की सभी
स्वयंसेवी संस्थाओं को एकत्रित करके एक ऐसा छत्र तैयार किया है जिसने सरकार
और संस्थाओं के बीच की दूरी पाटकर अनुकूल विचारों वाली तकरीबन एक लाख
संस्थाओं को वित्तीय सहायता पहुंचाई है. सरकार की इस घेराबंदी से प्रदेश की
शिक्षा व्यवस्था में जिस तरह से संघ की विचारधारा हावी हुई उससे होने वाली
अनियमितताओं के मामलों में बाढ़ आ गई है. मसलन, स्कूलों में मिड-डे मील के
लिए खाद्य सामग्री की आपूर्ति करने के लिए केंद्र सरकार की योजना का ठेका
भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू के बेटे की संस्था नांदी फाउंडेशन को
दिया गया है. हालांकि प्रदेश के दूसरे विभाग सभी कामों के लिए टेंडर जारी
करते हैं लेकिन इस मामले में सर्व शिक्षा अभियान का संचालन करने वाली
संस्था राज्य शिक्षा केंद्र ने केवलशोधकार्यों के लिए ही संस्थाओं को
सूचीबद्ध किया है. इसके अलावा बाकी सभी बड़े कामों के लिए निर्धारित
प्रक्रिया अपनाए बिना संस्थाओं की सीधे तैनाती की जा रही है. राष्ट्रीय बाल
अधिकार संरक्षण आयोग में राज्य की चेयरमैन आशा मिश्रा बताती  हैं, ‘सर्व
शिक्षा जैसे अहम अभियान में संघ से जुड़ी संस्थाओं की तैनाती से शिक्षा
विभाग पर एक ही नजरिया रखने वालों का कब्जा हो गया है.’

राजनीतिक विचारधारा के प्रति समर्थन के नाम पर शिक्षा विभाग में कई
फर्मों को भी संरक्षण मिल गया है. विभाग में अनियमितता का आलम यह है कि
स्कूलों में छुटपुट मरम्मत कार्यों के लिए 2010 में केंद्र से आया साढ़े 11
करोड़ रुपये का बजट ब्लैकबोर्ड को ग्रीनबोर्ड बनाने के नाम पर खर्च हुआ.
इस काम का ठेका उज्जैन की क्लासिक टेंडर्स को टेंडर के बिना ही दे दिया
गया. तहलका से बातचीत में प्रदेश की स्कूली शिक्षा मंत्री अर्चना चिटनीस
बताती हैं, ‘बोर्डों पर हमने हरा रंग इसलिए पुतवाया कि प्रकृति के साथ यह
अधिक एकाकार है.’ चिटनीस के इस ‘इकोफ्रेंडली’ जुनून को पूरा करने के लिए
विभाग ने बोर्डों को ब्लैक से ग्रीन बनाने में एक बोर्ड पचास रुपये की जगह
800 रुपये में पोता. इसी तरह, प्रदेश के स्कूलों में अग्निशमन यंत्र भी
बड़े पैमाने पर लगाए गए हैं. बाजार में अग्निशमन की कीमत 700 रुपये है
लेकिन स्कूली शिक्षा विभाग ने इन्हें पांच गुना अधिक कीमत पर खरीदा. इस
कीमत पर प्रदेश के स्कूलों में 18 करोड़ के अग्निशमन यंत्र लगाए गए. ये
अग्निशमन यंत्र उन्हीं स्कूलों में लगाए जाने थे जिनमें एक या उससे अधिक
मंजिल हो, लेकिन भिंड जिले के लहार गांव के सरकारी स्कूल जैसे कई स्कूलों
में जहां एक भी मंजिल नहीं थी वहां भी अग्निशमन यंत्र लगाए गए.

राजनीतिक विचारधारा लागू करने की जद्दोजहद में शीर्ष स्तर पर
अनियमितताओं को संरक्षण दिए जाने का नतीजा अब प्रशासन के भीतर भ्रष्टाचार
के रूप में दिखाई देने लगा है. प्रदेश मे इस समय 50 में से 43 जिला शिक्षा
अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के संगीन मामले हैं, लेकिन इसके बावजूद
इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई. इन सबके बीच शिक्षा और शिक्षकों की हालत
की बात करें तो मध्य प्रदेश जैसे बीमारू प्रदेश के ग्रामीण स्कूलों में
सवा लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं. वहीं यहां की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़
माने जाने वाले संविदा शिक्षाकर्मियों (प्राथमिक शाला) को हर महीने मात्र
3,500 रुपये मिलते हैं. आदिवासी बहुल मध्य प्रदेश में 6 से 14 साल के
आयु-वर्ग के आधे से अधिक बच्चे स्कूलों से बाहर हैं. शिक्षा से जुड़े
कार्यकर्ताओं की राय में ऐसे हाल में प्रदेश सरकार को बुनियादी समस्याओं से
निजात पाने की ओर ध्यान देना चाहिए था, लेकिन उसने अपने राजनीतिक एजेंडे
को आगे बढ़ाने में ही अधिक रुचि ली.

बीते दो साल में भाजपा सरकार अपने एजेंडे को लेकर तेजी से आगे बढ़ी है.
इस दौरान स्कूलों के उन्नयन और भवन निर्माण के लिए केंद्र से 479 करोड़
रुपये आए. इस मद से घोषित हुए तकरीबन एक हजार स्कूलों में से 85 प्रतिशत
भाजपा के मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों पर खर्चकिए गए. उदाहरण के लिए,
टीकमगढ़ जिले के भाजपा विधानसभा क्षेत्र जतारा में 19 उन्नयन और भवन
निर्माण हुए. वहीं गैर भाजपा विधानसभा क्षेत्र टीकमगढ़ में एक भी उन्नयन या
भवन निर्माण मंजूर नहीं हुआ. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि स्कूलों
का गांव-गांव से लेकर घर-घर में दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है और यही वजह है
कि भाजपा सरकार स्कूलों के जरिए संघ की पकड़ मजबूत बना रही है. यानी सत्ता
वापसी के लिए अपना राजनीतिक भविष्य भी सुरक्षित बना रही है.

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