राजधानी में लगेगी एक और ‘संसद’, जहां सिर्फ गंगा पर होगी बहस

नई दिल्ली. गंगा को बचाने के लिए गंगा महासभा ने सोमवार को एक प्रस्तावित कानून का प्रारूप मीडिया के सामने पेश किया।

 

राष्ट्र नदी गंगा जी (संरक्षण और प्रबंधन) अधिनियम 2012 नाम के इस
प्रारूप की जानकारी देते हुए प्रेसवार्ता में केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि
इस नए प्रारूप को न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय की अध्यक्षता में देश के कई
न्यायविदों, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता से
तैयार किया गया है।

 

उन्होंने कहा कि इस प्रारूप पर चर्चा के लिए 21 नवंबर को एनडीएमसी के
कनवेंशन हॉल में सर्वधर्म संसद आयोजित होगी जहां सभी संप्रदाय के करीब 100
शीर्षस्थ धर्माचार्य हिस्सा लेंगे।

 

लोगों की सहमति के बाद इस प्रारूप को भारत सरकार को सौंपा जाएगा ताकि कुंभ के पहले इसे भारतीय संसद में पारित किया जा सके।

 

इस अवसर पर मौजूद स्वामी ज्ञानस्वरूप ने कहा कि इस अधिनियम में गंगा का
भौतिक स्वरूप परिभाषित किया गया है, जिसमें तय किया गया है कि गंगा के साथ
क्या करना है और क्या प्रतिबंधित होगा।

 


जिसमें दंड का भी प्रावधान है। नीति निर्धारण के लिए केंद्र, राज्य और आठ
जोनल स्तर समितियां गठित होंगी जो इस प्रारूप के आधार पर गंगा की निगरानी
करेगी।

 

उन्होंने सरकार से अपील की कि नेताओं के साथ साधु-संत और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी समितियों का हिस्सा बनाया जाए।

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