नई दिल्ली. नांगलोई जल संयंत्र के निजीकरण का बखेड़ा बढ़ता ही जा
रहा है। कुछ एनजीओ और हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस राजेंद्र सच्चर ने
पटना प्रोजेक्ट से तुलना करते हुए आरोप लगाया है कि इस मामले में दिल्ली जल
बोर्ड ने करीब एक हजार करोड़ रुपए का घोटाला किया है, जिसके जवाब में
गुरुवार को बोर्ड ने एक बयान जारी कर विस्तार से अपना पक्ष रखा।
आरोप था कि पटना व नांगलोई के प्रोजेक्ट एक से हैं पर दोनों के बजट में
जमीन आसमान का अंतर है। बोर्ड ने निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए यह
कदम उठाया है।
जबकि बोर्ड ने अपनी सफाई में कहा है कि पटना और नांगलोई प्रोजेक्ट की
आपस में तुलना गलत है। बोर्ड का यह भी दावा है कि इस परियोजना का मकसद
सेवा मानकों में बढ़ोतरी, गैर राजस्व जल में कमी, ऊर्जा संरक्षण, गुणवत्ता
बढ़ाना है जिसका सीधा लाभ उपभोक्ताओं को ही होगा।
जलबोर्ड की तरफ से सफाई दी गई है कि दोनों परियोजनाओं के कार्यक्षेत्र,
वातावरण, आकार, पाइपलाइन विस्तार और परियोजनाओं के उद्देश्य में कोई समानता
नहीं।
जबकि सिटीजंस फ्रंट फॉर वाटर डेमोक्रेसी के सदस्यों का दावा है कि जल
बोर्ड की सारी दलीलें गलत तथ्यों पर टिकी हैं जिसका सबूत जल्द ही जनता के
बीच लाया जाएगा। संस्था ने इसकी सीएजी से जांच कराने की भी मांग की है।
क्या है आरोप : आरोप है कि दिल्ली जलबोर्ड के पीपीपी परियोजनाओं के तहत शुरू की गई तीन परियोजनाओं में अनावश्यक खर्च किया जा रहा है।
इसकी जानकारी सरकार को परियोजनाओं को निजी कंपनियों के हाथ में सौंपने
से एक दिन पहले ही दे दिया गया था। इसके बावजूद सरकार अगले ही दिन निजी
कंपनियों के लिए परियोजनाओं को जारी कर दी थी।
दिल्ली जल बोर्ड के पक्ष रखे जाने के जवाब में सिटीजंस फ्रंट फॉर वाटर
डेमोक्रेसी के कन्वेनर एसए नकवी ने कहा कि नांगलोई मामले पर जल बोर्ड से
जून में ही हमने जवाब मांगा था लेकिन वह अब तक हमारे सवालों का सही जवाब
नहीं दे पा रही है।
जल बोर्ड की ओर से जारी विज्ञप्ति में कई तथ्यों और आंकड़ों को गलत
तरीके से पेश किया गया है। इनके जवाब में हमारे पास पर्याप्त सबूत मौजूद
है. यह कोई छोटा मोटा घोटाला नहीं है, इसलिए इसकी जांच सीएजी से करानी ही
चाहिए, जांच के बाद जलबोर्ड इस घोटाले पर जवाब दे।
जल बोर्ड ने दीं ये दलीलें
:नांगलोई परियोजना का कार्यक्षेत्र 129 वर्ग किलोमीटर है जबकि पटना परियोजना का 99 वर्ग किलोमीटर।
:नांगलोई परियोजना की कुल 2000 किलोमीटर वितरण प्रणाली में 1300 किलोमीटर
में नई पाइप लाइन होगी, जबकि पटना में केवल 700 किलोमीटर। इस तरह परिचालन
और अनुरक्षण के लिए ज्यादा संसाधन की जरूरत होगी।
:नांगलोई परियोजना की जलापूर्ति व्यवस्था स्वचालित होगी जबकि पटना परियोजना में यह प्रणाली ओवर हेड टैंक तक सीमित होगी।
:नांगलोई परियोजना में 2.37 लाख कनेक्शन हैं जबकि पटना में 1.2लाख कनेक्शन का अनुमान है।
:नांगलोई परियोजना 17 मीटर के रेसिडूअल दबाव पर आधारित है जबकि पटना परियोजना 12 मीटर के रेसिडूअल दबाव पर आधारित है।
:नांगलोई परियोजना में मीटरिंग, बिलिंग, वितरण, संचयन, शुल्कों की वसूली
ऑपरेटर के कार्यक्षेत्र में होगा जबकि पटना परियोजना में सिर्फ मीटर
रीडिंग, वह भी तिमाही स्तर पर।
:नांगलोई परियोजना से चौबीसों घंटे जलापूर्ति होगी जबकि पटना परियोजना में ऐसा नहीं है।
:बोर्ड का अनुमानित बजट 652.32 करोड़ रुपए है जिसमें से 193.78 करोड़ रुपए सड़क पुनर्निर्माण पर खर्च होगा।