ठान लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं

भारतीय समाज एक पितृप्रधान समाज होने के नाते अमूमन घर-परिवार की
जिम्मेदारियां पुरुष ही उठाते चले आ रहे हैं. पुरुषों का वर्चस्व होने के
बावजूद यहां नारी का अस्तित्व और गरिमा अब भी बरकरार है. महिलाएं खुद को हर
परिस्थिति में ढाल सकती हैं. एक गृहिणी के रूप में वह पूरे घर को
भली-भांति संवारती हैं लेकिन मुश्किल की घड़ी में वे बाहरी परिवेश को भी
अपनाने में सक्षम रहती हैं.

 

कुछ ऐसी ही कहानी है रामगढ़ की रहने वाली रेखा की, जो बलसगरा जैसे छोटे
गांव से नाता रखती हैं. पति की मौत के बाद भी उसने हार नहीं मानी और बुरे
हालातों को जिंदगी का हिस्सा समझकर स्वीकार कर लिया.

छोटी उम्र में हो गयी शादी

रेखा का जन्म हजारीबाग जिला स्थित बलसगरा में हुआ था. घर की आर्थिक स्थिति
ठीक न होने के कारण उसे आठवीं के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा. जब वह 13 वर्ष की
थी तभी उसकी शादी रामगढ़ के रहने वाले जुगला से हो गयी. कम उम्र में ही
रेखा को शादी का बोझ और परिवार की जिम्मेदारियां उठानी पड़ी.

विपरीत हालातों ने किया मजबूत

रेखा के पति एक होटल में काम किया करते थे. तीन बेटे और एक बेटी के साथ
पूरा परिवार खुशहाल जिंदगी जी रहा था. लेकिन दो वर्ष पूर्व एक सड़क हादसे
में रेखा के पति की मौत हो गयी. इस घटना के बाद पूरा परिवार सदमे में था.
घर पर अब कोई कमाने वाला नहीं था. घर की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी.

 

रेखा के बच्चे भी काफी छोटे-छोटे थे. घर पर बूढ़ी सास और बच्चों को भी
छोड़ कर वह कहीं बाहर काम करने नहीं जा सकती थी. घर चलाने के लिए कोई
रास्ता नजर नहीं आ रहा था. अंतत: बच्चों को भूखा देख उससे रहा नहीं गया और
उसने खुद ही कुछ करने का फैसला लिया. रेखा ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं थी
इसलिए उसने अपने पति के ही व्यापार को आगे बढ़ाने का फैसला लिया.

हालात में आने लगा सुधार

किसी औरत के लिए लाइन होटल में काम करना बेहद कठिन होता है, लेकिन रेखा ने
सारी बाधाओं को तोड़ते हुए यह काम करने का फैसला लिया. शुरुआती दौर में
उसे कई सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. पैसे के अभाव के कारण वह अपने
साथ किसी कर्मचारी को भी नहीं रख सकती थी.

 

सुबह से उठकर होटल की साफ-सफाई करना और फिर खाना बनाना, ये सारे काम रेखा
अकेले ही करती थी. रेखा के बुलंद हौसले और परिश्रम के आगे सारी मुश्किलें
छोटी दिखने लगी. धीरे-धीरे सब कुछ नियंत्रित हो गया. एक बार फिर से होटल
में लोगों की आवाजाही शुरू हो गयी. अब होटल से इतने पैसे आ जा रहे हैं,
जिससे रेखा अपना घर भी चला लेती है और साथ ही बच्चों को स्कूल भी भेज रही
है.

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