भोपाल। यूनियन
कार्बाइड के जहरीले कचरे का निपटान करने से जर्मन कंपनी के इनकार के बाद
सरकार की उम्मीदें टूट गई हैं। जहरीला कचरा कारखाने के वेयर हाउस में रखा
है। यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार को कचरा निपटान के मामले में झटका लगा
हो। इससे पहले भी तीन मर्तबा कचरे के खात्मे के लिए राज्य सरकार द्वारा
शुरू की गई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। अब सरकार के सामने फिर वहीं सवाल है
कि आखिर यूका के जहरीले कचरे से मुक्ति कब मिलेगी ?
भोपाल गैस
पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार का कहना है कि कचरा
अमेरिकन कंपनी डाऊ केमिकल्स का है। इस कारण सरकार को जहरीले कचरे के निपटान
के लिए डाऊ केमिकल्स पर दबाव बनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जर्मन कंपनी
द्वारा इनकार करने के बाद अब जहरीले कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया फिर 28
साल पिछड़ गई है।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार देश के जिन 27
स्थानों पर जहरीले कचरे का निपटान करने की बात कर रही है, उन स्थानों पर अब
तक कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। वहीं भोपाल गैस
पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की साधना कार्णिक ने जर्मन कंपनी के कचरा निपटान
से इनकार करने को अमेरिका का रासायनिक युद्ध करार दिया है। उन्होंने बताया
कि डाऊ केमिकल्स कचरा निपटान की जिम्मेदारी लेने से पीछे हट रही है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार दोबारा जहरीले कचरे का निपटान पीथमपुर में
कराने पर विचार कर रही है। इसके लिए पीथमपुर से लोगों को विस्थापित करने का
प्रस्ताव बना रही है।
कहानी कचरे की
– 1990 में यूका परिसर में फैले कचरे के निपटान की मांग उठी।
– 1993-95 तक परिसर में फैले जहरीले कचरे को पॉलीबैग में पैक कर गोदाम में रखवाया।
– 1996-97 में प्रदूषण निवारण मंडल के निर्देश पर कारखाने के आसपास फैले लिक्विड वेस्ट को जमीन में दफन कराया गया।
– 2004-05 जहरीले कचरे के निपटान को लेकर जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा के आलोक प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
–
2007 में हैदराबाद की रामकी एनवायरो कंपनी लिमिटेड को पीथमपुर में कचरा
जलाने की मंजूरी दी। चार ट्रक जहरीला कचरा जलाने के लिए भेजा गया।
– पीथमपुर में विरोध होने पर प्रक्रिया को बंद कर दिया गया।
– 2009 में अंकलेश्वर में कचरा जलाने की पहल की। गुजरात सरकार का विरोध।
– 2010 में कचरे को डीआरडीओ नागपुर के इंसीनरेटर में जलाने की पहल महाराष्ट्र सरकार का विरोध।
– जनवरी 2012 में जर्मन कंपनी से कचरे के निपटान पर राज्य सरकार से सहमति बनी।
– सितंबर 2012 में जर्मन कंपनी ने कचरा निपटान से मना किया।
कार्बाइड के जहरीले कचरे का निपटान करने से जर्मन कंपनी के इनकार के बाद
सरकार की उम्मीदें टूट गई हैं। जहरीला कचरा कारखाने के वेयर हाउस में रखा
है। यह पहला मौका नहीं है, जब सरकार को कचरा निपटान के मामले में झटका लगा
हो। इससे पहले भी तीन मर्तबा कचरे के खात्मे के लिए राज्य सरकार द्वारा
शुरू की गई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। अब सरकार के सामने फिर वहीं सवाल है
कि आखिर यूका के जहरीले कचरे से मुक्ति कब मिलेगी ?
भोपाल गैस
पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार का कहना है कि कचरा
अमेरिकन कंपनी डाऊ केमिकल्स का है। इस कारण सरकार को जहरीले कचरे के निपटान
के लिए डाऊ केमिकल्स पर दबाव बनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जर्मन कंपनी
द्वारा इनकार करने के बाद अब जहरीले कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया फिर 28
साल पिछड़ गई है।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार देश के जिन 27
स्थानों पर जहरीले कचरे का निपटान करने की बात कर रही है, उन स्थानों पर अब
तक कचरे के निष्पादन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। वहीं भोपाल गैस
पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति की साधना कार्णिक ने जर्मन कंपनी के कचरा निपटान
से इनकार करने को अमेरिका का रासायनिक युद्ध करार दिया है। उन्होंने बताया
कि डाऊ केमिकल्स कचरा निपटान की जिम्मेदारी लेने से पीछे हट रही है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार दोबारा जहरीले कचरे का निपटान पीथमपुर में
कराने पर विचार कर रही है। इसके लिए पीथमपुर से लोगों को विस्थापित करने का
प्रस्ताव बना रही है।
कहानी कचरे की
– 1990 में यूका परिसर में फैले कचरे के निपटान की मांग उठी।
– 1993-95 तक परिसर में फैले जहरीले कचरे को पॉलीबैग में पैक कर गोदाम में रखवाया।
– 1996-97 में प्रदूषण निवारण मंडल के निर्देश पर कारखाने के आसपास फैले लिक्विड वेस्ट को जमीन में दफन कराया गया।
– 2004-05 जहरीले कचरे के निपटान को लेकर जहरीली गैस कांड संघर्ष मोर्चा के आलोक प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
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2007 में हैदराबाद की रामकी एनवायरो कंपनी लिमिटेड को पीथमपुर में कचरा
जलाने की मंजूरी दी। चार ट्रक जहरीला कचरा जलाने के लिए भेजा गया।
– पीथमपुर में विरोध होने पर प्रक्रिया को बंद कर दिया गया।
– 2009 में अंकलेश्वर में कचरा जलाने की पहल की। गुजरात सरकार का विरोध।
– 2010 में कचरे को डीआरडीओ नागपुर के इंसीनरेटर में जलाने की पहल महाराष्ट्र सरकार का विरोध।
– जनवरी 2012 में जर्मन कंपनी से कचरे के निपटान पर राज्य सरकार से सहमति बनी।
– सितंबर 2012 में जर्मन कंपनी ने कचरा निपटान से मना किया।