मुबंई.
सिंचाई विभाग में 35 हजार करोड़ रुपए के कथित घोटाले के बारे में राज्यपाल
के. शंकरनारायणन के निर्देशों को राज्य सरकार गंभीरता से नहीं ले रही है।
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को पांच महीने पहले जांच के लिए
पत्र लिखा था पर अब तक सरकार की ओर से इस बारे में कोई पहल नहीं की गई।
जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर रहे विजय पांढरे ने करीब छह महीने पहले
मुख्यमंत्री को 15 पन्नों का पत्र भेजा था। इसमें विस्तार से बताया गया था
कि पिछले दस साल में राजनेताओं, अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से कम
से कम 35 हजार करोड़ का चूना राज्य सरकार को लगाया गया। इस पत्र की कॉपी
नागपुर हाईकोर्ट में गैर सरकारी संगठन लोक मंच की ओर से दायर याचिका में
शामिल की गई है। श्री पांढरे ने मुख्यमंत्री के साथ ही राज्यपाल को भी इस
भंडाफोड़ की प्रति भेजी थी। राजभवन के अधिकारियों की ओर से इस पत्र का
अध्ययन किया गया और इसके बाद 3 अप्रैल 2012 को राज्यपाल की ओर से
मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया।
राज्यपाल के पत्र में पूरे मामले को गंभीर बताते हुए जल्द से जल्द गहराई से
जांच कराने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा गया कि जांच के बाद इसके
निष्कषों की रिपोर्ट राजभवन को भेजी जाए। सूत्रों के अनुसार, अब तक राजभवन
को इसकी रिपोर्ट नहीं मिली है। इस बीच मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि
वरिष्ठ अधिकारी विजय पांढरे के पत्र के बाद मुख्यमंत्री ने इस बारे में
सक्रियता दिखाई थी और इसी वजह से उन्होंने सिंचाई विभाग का श्वेतपत्र जारी
करने के आदेश दिए थे। लेकिन राष्ट्रवादी के नेताओं की सख्त नाराजगी के बाद
मुख्यमंत्री ने इस बारे में नरमी बरती।
सूत्रों का मानना है कि अगर गंभीरता से जांच कराई जाए तो राज्य के वरिष्ठ
मंत्रियों के साथ ही कई दिग्गज अधिकारी भी संकट में पड़ जाएंगे। फिलहाल जल
संसाधन विभाग सुनील तटकरे के पास है लेकिन पिछले कई साल से इस विभाग के
सर्वेसर्वा उपमुख्यमंत्री अजित पवार थे। माना जाता है कि जब से
कांग्रेस-राष्ट्रवादी की सरकार राज्य में बनी है तभी से अजित पवार की
निगरानी में ही बांधों के ठेके दिए गए। यही वजह है कि जब श्वेतपत्र की बात
की गई तो सबसे ज्यादा आपत्ति अजित दादा की तरफ से की गई।
सूत्रों के अनुसार, सिंचाई विभाग में भारी भ्रष्टाचार के कारण सबसे ज्यादा
नुकसान विदर्भ व कोंकण को हुआ। इस परिसर की कई बाँध परियोजनाओं पर दो-तीन
गुना रकम खर्च की गई जिसके कारण सरकारी तिजोरी पर तो बोझ पड़ा लेकिन सिंचाई
का विकास नहीं हो पाया। अब राजभवन क ी ओर से सरकार के जवाब का इंतजार किया
जा रहा है।
सिंचाई विभाग में 35 हजार करोड़ रुपए के कथित घोटाले के बारे में राज्यपाल
के. शंकरनारायणन के निर्देशों को राज्य सरकार गंभीरता से नहीं ले रही है।
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को पांच महीने पहले जांच के लिए
पत्र लिखा था पर अब तक सरकार की ओर से इस बारे में कोई पहल नहीं की गई।
जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर रहे विजय पांढरे ने करीब छह महीने पहले
मुख्यमंत्री को 15 पन्नों का पत्र भेजा था। इसमें विस्तार से बताया गया था
कि पिछले दस साल में राजनेताओं, अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से कम
से कम 35 हजार करोड़ का चूना राज्य सरकार को लगाया गया। इस पत्र की कॉपी
नागपुर हाईकोर्ट में गैर सरकारी संगठन लोक मंच की ओर से दायर याचिका में
शामिल की गई है। श्री पांढरे ने मुख्यमंत्री के साथ ही राज्यपाल को भी इस
भंडाफोड़ की प्रति भेजी थी। राजभवन के अधिकारियों की ओर से इस पत्र का
अध्ययन किया गया और इसके बाद 3 अप्रैल 2012 को राज्यपाल की ओर से
मुख्यमंत्री को पत्र भेजा गया।
राज्यपाल के पत्र में पूरे मामले को गंभीर बताते हुए जल्द से जल्द गहराई से
जांच कराने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा गया कि जांच के बाद इसके
निष्कषों की रिपोर्ट राजभवन को भेजी जाए। सूत्रों के अनुसार, अब तक राजभवन
को इसकी रिपोर्ट नहीं मिली है। इस बीच मंत्रालय सूत्रों का कहना है कि
वरिष्ठ अधिकारी विजय पांढरे के पत्र के बाद मुख्यमंत्री ने इस बारे में
सक्रियता दिखाई थी और इसी वजह से उन्होंने सिंचाई विभाग का श्वेतपत्र जारी
करने के आदेश दिए थे। लेकिन राष्ट्रवादी के नेताओं की सख्त नाराजगी के बाद
मुख्यमंत्री ने इस बारे में नरमी बरती।
सूत्रों का मानना है कि अगर गंभीरता से जांच कराई जाए तो राज्य के वरिष्ठ
मंत्रियों के साथ ही कई दिग्गज अधिकारी भी संकट में पड़ जाएंगे। फिलहाल जल
संसाधन विभाग सुनील तटकरे के पास है लेकिन पिछले कई साल से इस विभाग के
सर्वेसर्वा उपमुख्यमंत्री अजित पवार थे। माना जाता है कि जब से
कांग्रेस-राष्ट्रवादी की सरकार राज्य में बनी है तभी से अजित पवार की
निगरानी में ही बांधों के ठेके दिए गए। यही वजह है कि जब श्वेतपत्र की बात
की गई तो सबसे ज्यादा आपत्ति अजित दादा की तरफ से की गई।
सूत्रों के अनुसार, सिंचाई विभाग में भारी भ्रष्टाचार के कारण सबसे ज्यादा
नुकसान विदर्भ व कोंकण को हुआ। इस परिसर की कई बाँध परियोजनाओं पर दो-तीन
गुना रकम खर्च की गई जिसके कारण सरकारी तिजोरी पर तो बोझ पड़ा लेकिन सिंचाई
का विकास नहीं हो पाया। अब राजभवन क ी ओर से सरकार के जवाब का इंतजार किया
जा रहा है।