कार्ड का उपयोग करने लग जाए। इस क्रम में अब तक 48 करोड़ किसानों को यह
कार्ड उपलब्ध करा दिया गया है। इस योजना की शुरुआत 2008-09 के दौरान
राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरा प्रबंधन परियोजना की ओर से की गई।
मिट्टी की गुणवत्ता की जांच के लिए पूरे देश में 1,049 प्रयोगशालाएं
स्थापित की गई हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद् भी इससे
जुड़े पहलुओं की जानकारी देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करती है।
दरअसल
खेतों से अधिक उत्पादन लेने की चाहत में रासायनिक उर्वरकों का अधिक
इस्तेमाल करने से जमीन की उर्वरा शक्ति दिनोंदिन क्षीण होती जा रही है।
इससे खेतों के बंजर हो जाने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए सरकार ने फैसला
किया कि किसानों को उनके खेत की मिट्टी की सेहत से संबंधित कार्ड उपलब्ध
कराया जाए। इस कार्ड में मिट्टी के लक्षण, नमी, उसके अनुकूल फसलों एवं अन्य
जैविक गुणों के रूप में उसकी गुणवत्ता का मूल्यांकन होता है। इससे किसानों
को यह जानकारी मिलती है कि उनके खेत में किस पोषक तत्व की कमी है और
उन्हें किस फसल की बुवाई करने से फायदा हो सकता है। इस कार्ड की मदद से
किसान अपने खेतों में उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल करके खेती को लाभप्रद
पेशा बना सकते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक,
गुजरात एवं आंध्र प्रदेश में तो यह योजना काफी सफल रही है, लेकिन देश के
पूर्वी राज्य मसलन, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड सहित खाद्यान्न का कटोरा
समझे जाने वाले पंजाब एवं हरियाणा इस दृष्टि से काफी पिछड़े हैं।