एक उपाय जिसने असंतुलित लिंगानुपात के लिए बदनाम हरियाणा के झज्जर जिले को सुधार की राह पर डाल दिया. बिजेंद्र कुमार की रिपोर्ट.
महिलाओं की बात पर हरियाणा एक विरोधाभास-सा लगता
है. अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला कल्पना चावला इसी राज्य की थी,
लेकिन बेटी के जन्म से पीछा छुड़ाने वाले भी सबसे ज्यादा इसी राज्य में
हैं. महिला और पुरुष की संख्या का अंतर हरियाणा में खतरे की सीमा को पार कर
गया है.
दिल्ली से सटा हुआ जिला है हरियाणा का झज्जर. गृह मंत्रालय के
रजिस्ट्रार जनरल एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय से जारी साल 2011 की जनगणना के
आंकड़े बताते हैं कि शून्य से छह वर्ष आयु वर्ग के लड़के-लड़कियों के
अनुपात के मामले में यह जिला अंतिम पायदान पर था. समाज की इस बिगड़ती
तस्वीर के पीछे लड़कियों के प्रति सदियों से चले आ रहे पूर्वाग्रह को एक
वजह माना जा सकता है. दुर्भाग्य यह कि सदियों पुराने पूर्वाग्रह को बल दिया
आधुनिक विज्ञान की खोज सोनोग्राफी मशीन ने. लेकिन तकनीक की इस मार से बचने
का रास्ता भी तकनीक ने ही खोज निकाला है.
अरसे से हरियाणा अपने बिगड़ते स्त्री-पुरुष अनुपात के लिए लोगों का
ध्यान खींच रहा था. 2011 की जनगणना के आंकड़ों ने सबके होश उड़ा दिए. शून्य
से छह वर्ष के बीच झज्जर में प्रति हजार लड़कों पर सिर्फ 774 लड़कियां
थीं. यह आंकड़ा इस मामले में देश के अब तक के सबसे खराब माने जाने वाले
हरियाणा के ही एक अन्य जिले महेंद्रगढ़ से भी चार कम था. सवाल उठने लगे कि
तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद लड़कियों के प्रति इतना पूर्वाग्रह
क्यों है और क्या सिर्फ जागरूकता के भरोसे ही इस गंभीर समस्या से निपटा जा
सकता है.
पानी सिर से गुजर चुका था, इसलिए उपाय जरूरी था. तकनीक की काट तकनीक के
जरिए ही खोजी गई. झज्जर जिले में पहली बार एडवांस एक्टिव ट्रैकर सिस्टम का
इस्तेमाल किया गया. देश में पहली बार इस्तेमाल किए जा रहे इस सिस्टम को
झज्जर जिले के सभी 29 अल्ट्रासाउंड सेंटरों में सोनोग्राफी मशीन पर लगाया
गया. 2001 के जनगणना के आंकड़ों में झज्जर का स्त्री-पुरुष अनुपात 1000-847
था जो 2011 में थोड़ा सुधर कर 1000-861 हो गया. पर यह कहीं से भी सुखद
स्थिति नहीं थी. सिर्फ राज्य के आंकड़ों से तुलना करें तो यह औसत से 16 कम
थी. इसके बाद सरकार और जिला प्रशासन के माथे पर भी चिंता की लकीरें खिंच
गईं. ये आंकड़े पूरे देश और मीडिया में झज्जर और हरियाणा के लिए बदनामी की
वजह बन गए थे.
पुणे की मैग्नम ऑपस कंपनी द्वारा ईजाद किए गए इस यंत्र से मिले नतीजे
बेहद उत्साहवर्धक रहे हैं. इसकी सफलता से उत्साहित जिला प्रशासन ने राज्य
सरकार से अब इसे पूरे राज्य में लागू करने की सिफारिश कर दी है. एक्टिव
ट्रैकर के इस्तेमाल के बाद से लिंगानुपात में आया सुधार इसकी सफलता की
कहानी बयान करता है. साल 2011 में जनवरी से दिसंबर महीने के बीच पैदा हुए
बच्चों का लिंगानुपात जहां 1000-815 था वहीं साल 2012 की शुरुआत में
सोनोग्राफी मशीनों पर एक्टिवट्रैकर के इस्तेमाल के बाद दो महीने के भीतर
ही लड़कों और लड़कियों का अनुपात 1000-837 पर पहुंच गया. दो महीने के भीतर
आए नतीजों ने सिर्फ बड़े अंतर को जाहिर नहीं किया बल्कि यह बात भी साबित की
कि किस तरह से यहां के सोनोग्राफी सेंटर अवैध रूप से बालिका भ्रूण हत्या
का काम कर रहे थे.
आगे के महीनों यानी मार्च-अप्रैल में स्वास्थ्य विभाग ने जो आंकड़े
जारी किए वे और भी उत्साहजनक रहे हैं. इस दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में
लिंगानुपात प्रति हजार 876 रहा, जबकि झज्जर नगर पालिका क्षेत्र में यह
अनुपात प्रति हजार 959 तक पाया गया. ठीक एक साल पहले इसी अवधि के दौरान के
आंकड़ों पर आप नजर डालेंगे तब आपको हालात की भयावहता का अंदाजा लगेगा. 2011
में पूरे साल झज्जर नगर पालिका क्षेत्र में लिंगानुपात प्रति हजार 788
था.
झज्जर में एडवांस एक्टिव ट्रैकर का प्रयोग करने वाले जिले के उपायुक्त
अजित बालाजी जोशी कहते हैं, ‘संतुलन के प्रयास अगर अभी से नहीं हुए तो
भविष्य में समाज की तस्वीर बेहद भयावह हो सकती है. जागरूकता के प्रयास तो
जारी रहने ही चाहिए, लेकिन तकनीक के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए तकनीक का
सहारा लेना भी बेहद जरूरी है. अब हमारे यहां इसकी कामयाबी के बाद राज्य के
दूसरे हिस्सों में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है.’ उम्मीद की जानी चाहिए
कि इस तकनीक का दायरा और भी ज्यादा फैले.
योजना एक नजर में
एडवांस ऐक्टिव ट्रैकर यंत्र को सोनोग्राफी मशीनों से जोड़ दिया जाता है.
यह ऐसी मशीन है जो एक बार सोनोग्राफी मशीन से जुड़ने के बाद उसकी हर एक
गतिविधि को रिकॉर्ड करती है. गर्भवती महिला जब पहली बार सोनोग्राफी जांच
करवाती है उसी समय उसका सारा डेटा मशीन में कैद हो जाता है. इसके आधार पर
प्रशासन हर महिला की जचगी तक निगरानी रख सकता है. बच्चे की पैदाइश नियत समय
पर हुई या नहीं, अगर कोई गड़बड़ी हुई तो क्या उसके लिए कोई पुख्ता कारण थे
आदि बातों पर नजर रखी जाती है. एक्टिव ट्रैकर एक सर्वर से जुड़ा रहता है
और अपने यहां दर्ज सारी जानकारी एक मुख्य सर्वर में भेज देता है. मुख्य
सर्वर तक जिले के आला चिकित्सा और प्रशासनिक अधिकारियों की पहुंच होती है.
वे इन आंकड़ों का विश्लेषण करते रहते हैं. एक्टिव ट्रैकर के साथ किसी तरह
की छेड़छाड़ संभव नहीं है. इसका डिजाइन ऐसा है कि पहले ट्रैकर ऑन होता है
फिर यहां से पावर आगे बढ़ती है और सोनोग्राफी मशीन चालू होती है. बिना
ट्रैकर के ऑन हुए सोनोग्राफी मशीन ऑन ही नहीं हो सकती है. इसमें जीपीआरएस
सिस्टम भी लगा है. ट्रैकर के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ होने पर यह तुरंत
एक एसएमएस संबंधित अधिकारी को भेजकर चेतावनी जारी कर देता है.