जमशेदपुर. 193 किलोमीटर क्षेत्र में फैले दलमा प्राकृतिक खूबसूरती
के लिए झारखंड समेत पूरे देश भर में मशहूर है। यहां जंगली जीव-जंतु के साथ
अनेक दुर्लभ किस्म के औषधीय पौधे मौजूद हैं। यह मनुष्य और पशु-पक्षियों के
भोजन व स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी है।
इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी के द्वारा
पौधों को संरक्षित करने के साथ पैदावार बढ़ाने की दिशा में लगातार काम किए
जा रहे हैं। इसकी खासियत से लोगों को अवगत कराने की कोशिश की जा रही है।
चिटचिटी, बसाक, कालमेघ, कुरची, सोनपाता, इचाक जैसे पौधे लोगों के सिरदर्द,
बुखार, डायरिया, कटने व जलने में रामबाण की माफिक साबित होता है। वैज्ञानिक
शोध में मालूम हुआ है कि यह पौधे प्राथमिक उपचार के रूप में काफी कारगर
है। यहां 50 से भी अधिक किस्म के औषधीय गुणों से भरपूर पेड़-पौधे उपलब्ध
हैं।
बीज के रूप में विकसित
औषधीय गुणों से भरपूर पौधों और वृक्षों को संरक्षित करने की दिशा में दलमा
वन्य आश्रयणी काम कर रहा है। ऐसे पौधों को बीज व चारा के रूप में विकसित
किए जा रहे हैं।
पर्यटकों को मिलेगी जानकारी
दलमा आश्रयणी आने वाले पर्यटकों को यहां पाए जाने वाले दुर्लभ पेड़-पौधों
की जानकारी दी जाएगी। साथ ही साथ पौधों को संरक्षण प्रदान करने के बारे में
बताया जाएगा। खासकर औषधीय पौधों की पूरी जानकारी देने के मकसद से बुकलेट
प्रकाशित किए जा रहे हैं।
बढ़ेगी दुर्लभ पौधों की पैदावार
दुर्लभ किस्म के पेड़-पौधों की पैदावार बढ़ाने के लिए वन विभाग प्रयासरत
है। दलमा में ही इन पौधों व वृक्षों के बीजों को लगाया जा रहा है। दलमा के
अलग-अलग हिस्सों में इसकी पैदावार की जा रही है।
हमारा प्रयास जारी है
दलमा के जंगलों में अनेक प्रकार के ऐसे औषधीय व फलदार वृक्ष हैं, जो मानव
जीवन के लिए काफी लाभकारी है। ऐसे पौधों को चिन्हित किया गया है। फिलहाल
दलमा वन्य आश्रयणी के द्वारा जंगल में औषधीय गुणों से भरपूर पौधों की तलाश
जारी है। इन पौधों और वृक्षों को संरक्षित व विकसित करने का प्रयास हो रहा
है। इसके प्रचार-प्रसार के लिए बुकलेट प्रकाशित किए गए हैं। – मंगल कच्छप, रेंज अफसर, दलमा वन्य प्राणी आश्रयणी