कोलकाता : यूपी-बिहार के लोगों का पसंदीदा आहार सत्तू को हर तबके में
लोकप्रिय बनाने का उन्होंने जिम्मा उठाया.उन्होंने पारंपरिक सत्तू में औषधि
मिला कर एक नये रूप में बाजार में उतारा, जो जंक फूड के आदी लोगों के लिए
बेहतर पौष्टिक विकल्प बना और आज लाखों लोग उनकी चक्की का सत्तू पीकर दिन की
शुरूआत करते हैं.
यह कहानी है एनवीआर ग्रुप के सीएमडी संजय सिंह राठौर का.महज एक लाख
रुपये से शुरू उनका व्यापार आज 10 करोड़ रुपये का हो गया है. वह केवल यहीं
ठहरे रहना नहीं चाहते बल्कि उनके सपनों की उड़ान कहीं आगे की है. विश्व भर
को वह सत्तू का स्वाद चखाने के लिए तैयार हैं.
शुरुआत
संजय मूल रूप से बिहार के छपरा के मुकरेला गांव के रहने वाले हैं.उनके पिता
दिवंगत रामदयाल सिंह 1964 में बंगाल में आये.हावड़ा के घुसुड़ी में
उन्होंने अपना डेरा बनाया. वह कई सामाजिक संगठनों के साथ भी जुड़
गये.समाजसेवा का बीज शायद बालक संजय में उन्होंने ही डाला था.1969 में संजय
का जन्म हुआ था.भवानीपुर कॉलेज से बारहवीं तक की पढ़ाई की.
इसके बाद अपने पैरों पर खड़ा होने का जुनून उन पर सवार हो गया, लेकिन वह
चाहते थे कि पिताजी के व्यवसाय में नहीं बल्कि पूरी तरह से कुछ नया किया
जाये.इसके लिए वह लोहे के स्क्रैप के धंधे के साथ जुड़ गये. बड़ी कंपनियों
के स्क्रैप खरीद कर उन्हें बेचने का व्यवसाय शुरू कर दिया. मेहनत का जज्बा
शुरू से था. आगे बढ़ते गये. एनवीआर ग्रुप की नींव उन्होंने इसके बाद ही
डाली.
पारिवारिक व सामाजिक जीवन
1991 में संजय की शादी निशा सिंह के साथ हुई. निशा के पिता एचएमवी में
प्रोडक्शन के हेड थे. संजय का एक बेटा व एक बेटी है. संजय भारत क्षत्रिय
समाज, राउंड टेबल इंडिया जैसे सामाजसेवी संस्थाओं से जुड़े हैं. राउंड टेबल
के पूर्वी भारत के कार्यो को वह देखते हैं. यह संस्था देश भर में आठ लाख
बच्चों को शिक्षा का प्रबंध करा चुकी है.
नयी सोच
मूल रूप से बिहार के होने के कारण संजय को सत्तू के साथ हमेशा ही लगाव रहा.
वह हमेश ही सोचते थे कि सत्तू को कैसे ऊपरी तबके में लोकप्रिय बनाया जाये.
वह हमेशा ही पढ़ते थे कि बाजारू फास्ट फूड से शरीर को कितना नुकसान
पहुंचता है, लेकिन सत्तू की पौष्टिकता और लाभ के संबंध में उच्च वर्ग अनजान
ही था. लिहाजा उन्होंने एनवीआर रेडीमिक्स प्रीमियम सत्तू को निकाला.
इसमें हर्ब को मिलाया गया.आर एंड डी के जरिये यह सुनिश्चित किया गया कि
इसकी पौष्टिकता और स्वाद दोनों ही सवरेत्तम हो. हावड़ा के बजरंगबली में
उन्होंने एक यूनिट भी बनाया. इसमें सत्तू की पिसाई से लेकर पैकेजिंग तक की
जाती है. बाजार से श्रेष्ठ क्वालिटी का चना खरीद कर उसमें आयुव्रेदिक हर्ब
मिलाया जाता है. छोटे पाउच में इसे बाजार में उतारा गया. देखते ही देखते यह
उत्पाद पसंद किया जाने लगा.फिलहाल उनकी फैक्टरी में रोजाना 25 हजार पाउच
तैयार किये जा रहे हैं. इसकी क्षमता एक लाख पाउच की है.इसमें प्रिजरवेटिव
नहीं मिलाया गया है. उनका दावा है कि यह मधुमेह, आर्थराइटिस, कोलेस्ट्रोल,
गैस्ट्रिक आदि केरोगियों के लिए फायदेमंद है.
सत्तू को पूरी दुनिया में लोकप्रिय बनाना लक्ष्य : संजय
संजय सिंह राठौर का कहना है कि सत्तू की मार्केटिंग के लिए उन्होंने कई
वितरक बनाये हैं और कई बनाने वाले हैं. उनका लक्ष्य पहले पूरे पश्चिम बंगाल
और फिर धीरे-धीरे देश और दुनियाभर में सत्तु को लोकप्रिय बनाना है. इसके
लिए कई सरकारी व निजी संस्थानों से वह संपर्क में हैं.श्री राठौर अपनी
बुलंदी के लिए अपने माता-पिता के आशीर्वाद और अपनी मेहनत को जिम्मेदार
मानते हैं. वह कहते हैं कि व्यवसाय के साथ-साथ समाजसेवा भी पुरजोर करते
रहेंगे.
-आनंद सिंह