‘स्लमडॉग मिलेनियर’ फिल्म में हमने गरीबी में जी रहे
बच्चों की अमीर बनने से कहानी देखी है. अब भारत की कुछ बड़ी झुग्गी झोपड़ी
बस्तियों के बच्चों का एक समूह ब्रिटेन में अपने जीवन पर आधारित एक
म्यूज़िकल पेश कर रहा है. इनमें से अधिकतर बच्चे कूड़ा बीनने का काम करते
हैं और बाकियों के माता-पिता लोगों के घर काम करते हैं.
दस से चौदह साल के बीच के इन बच्चों को अभिनय सिखाकर एक बढ़िया अवसर दिया गया है.
ये बच्चे अपने म्यूज़िकल के साथ सारी दुनिया में घूम रहे हैं.
मंच के पीछे सोलह बच्चों का उत्साही समूह शो शुरू होने से पहले अपने रंगीन भारतीय वस्त्रों और गहनों को पहन रहा है.
ये बच्चे खचाखच भरे थियेटर में अपना अभिनय कौशल
दिखाने से पहले रिहर्सल कर रहे हैं. वे एक बड़े-से मंच का चक्कर लगाते हुए
नृत्य कर रहे हैं. ये नब्बे मिनट के शोल ‘एकत्व’ का एक दृश्य है.
इसी समूह का हिस्सा निकिता को नाच गाना अच्छा लगता है और भाविक को ड्रम बजाने का शौक है.
झुग्गी झोपड़ियों के बच्चे
बस्तियों से चुना गया है और इन्हें पिछले दो वर्षों से एक बड़ी थियेटर
कंपनी ने प्रशिक्षण दिया है.
इन सबने मिलकर एक ऐसा शो तैयार किया है जो गुरबत
में जी रहे बच्चों की दास्तान बयान करता है. ये बच्चे भारत और अमरीका के
बाद ब्रिटेन पहुंचे हैं.
इस प्रोजेक्ट जुड़े निमेष पटेल कहते हैं, “हम
दिखाना चाहते हैं कि दुनिया में जिन लोगों के पास सबसे कम संसाधन हैं उनमें
संभावनाएं भरपूर हैं. क्योंकि एक बार अगर आप ये देख लेते हैं तो आप समाज
को कुछ वापस देने के बारे में प्रेरित होते हैं. हम ऐसी ही ऊर्जा का संचार
करना चाहते हैं.”
नई उम्मीद
गरीब बच्चों के जीवन को अभिनय के ज़रिए बदलना चाहते हैं. इस म्यूज़िकल इन
बच्चों के मन में भविष्य के लिए कई उम्मीद जगाई हैं.
भारतीय बच्चों के इस समूह की पंद्रह साल की आशा
कहती हैं, “मैं नौवीं में पढ़ती हूं. मेरा सपना है कि मैं बड़ी होकर डॉक्टर
बनूं और गरीबों की सेवा करूं.”
बारह साल की चांदनी का सपना भी डॉक्टर बन कर बच्चों की सेवा करना है.
ब्रिटेन की यात्रा के दौरान ये बच्चों स्थानीय
बच्चों से भी मिल रहे हैं. वे लंदन के बच्चों के खेल के एक मैदान स्थानीय
गरीब बच्चों से मिल भी चुके हैं. इस मुलाकात ने कई ब्रितानी बच्चों की आंखो
खोल दी हैं.
स्थानीय बच्चों ने बताया कि वे खुशकिस्मत हैं कि वो स्कूल जा पाते हैं..पढ़ पाते हैं.
एक अन्य ब्रितानी बच्चे ने कहा कि चाहे उनकी अलग-अलग पृष्ठभूमि हो लेकिन फिर भी दोनों एक-दूसरे से काफी कुछ सीख सकते हैं.
जब ये टूअर खत्म होगा तो बच्चो दोबारा भारत जाकर
अपनी रोजमर्रा की जद्दोजहद में जुट जाएंगे लेकिन उम्मीद है कि यात्रा के
दौरान मिले अनुभव उनके बेहतर भविष्य कारास्ता सुझाएंगे.