खुदकुशी को अपराध के दायरे से बाहर करने पर विचार

नई दिल्ली [जासं]। किसी परेशानी के चलते आत्महत्या का प्रयास करने वालों
को जल्द ही कानूनी प्रक्रिया से राहत मिल सकती है। केंद्र सरकार आत्महत्या
के प्रयास को अपराध की श्रेणी में लाने वाली भारतीय दंड संहिता [आइपीसी]
की धारा 309 को हटाने पर विचार कर रही है। इस धारा के तहत किसी व्यक्ति को
एक साल की साधारण कैद, जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ के
समक्ष केंद्र सरकार के वकील ने बताया कि आइपीसी मूल आपराधिक न्याय कानून
है। इसलिए लॉ कमीशन की 210वीं रिपोर्ट में आइपीसी की धारा 309 को हटाने की
अनुशंसा पर उस समय विचार किया जाएगा, जब आइपीसी में व्यापक संशोधन किया
जाएगा।

कानून मंत्रालय की तरफ से अदालत में दायर हलफनामे में बताया गया है कि
क्रिमनल लॉ संयुक्त सूची में शामिल है। जिस पर विभिन्न राज्यों की सरकारों
की तरफ से भी विचार मांगा गया था। बिहार, सिक्किम, मध्य प्रदेश को छोड़कर
अन्य राज्य इस धारा को हटाने के पक्ष में हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर में
आइपीसी लागू नहीं होती है।

केंद्र सरकार ने यह हलफनामा इस संबंध में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई
के दौरान दायर किया है। यह याचिका मेंटल हेल्थ फाउंडेशन ने 11 मई को उच्च
न्यायालय में दायर की थी। इसमें बताया गया था कि अक्टूबर 2008 में लॉ कमीशन
ऑफ इंडिया ने अपनी 210वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी, कि भारतीय दंड
संहिता की धारा 309 [आत्महत्या का प्रयास] को निरस्त किया जाए, मगर अभी तक
सरकार ने इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया है।

रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या का प्रयास कोई व्यक्ति तभी करता है, जब
किसी न किसी कारण वह मानसिक तौर पर परेशान होता है। ऐसे में अगर वह जिंदा
बच जाता है तो उसे अपराध की श्रेणी में रख कर और परेशान किया जाता है जो कि
गलत है। ऐसे लोगों को काउंसलिंग, सहानुभूति व उचित इलाज की जरूरत होती है।
इसलिए धारा 309 को हटा दिया जाना चाहिए।

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