किसानों की आत्महत्या में महाराष्ट्र की स्थिति बदतर

महाराष्‍ट्र में किसानों के आत्महत्या की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011 में 3,337 किसानों ने आत्महत्या की है। यह पिछले साल 2010 की अपेक्षा और भी बदतर है, जहां पिछले साल 3,141 किसानों ने खुदकुशी की जो इस साल बढ़कर 3,337 जा पहुंची है।

ताजा मामले में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पिछले 72 घंटे के अंदर छह और किसानों ने आत्महत्या कर ली। एक गैर सरकारी संगठन द्वारा रविवार को जारी आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष अब तक 422 किसान आत्महत्याएं कर चुके हैं। मानसून में देरी के कारण जिन किसानों ने बुवाई कर दी है उनमें घबराहट फैल गई है।

छत्तीसगढ़ में किसानों ने नहीं की खुदकुशी
एनसीआरबी के मुताबिक देश भर में 2011 में 14,004 किसानों ने आत्महत्या की है। यह संख्या पिछले साल 2010 में हुई 15,933 मौत की अपेक्षा कम है। रिपोर्ट कि माने तो पिछले साल छत्तीसगढ़ में किसी भी किसान ने खुदकुशी नहीं की। जबकि ‌अकेले वर्ष 2010 में छत्तीसगढ़ के 1412 किसानों ने आत्महत्या की थी।

गुजरात, कर्नाटक की हालत सोचनीय
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2004-2011 के बीच की अवधि में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृति में कमी आई है। साल 2004 में हाल के वर्षों में सबसे ज्यादा 18,241 किसानों ने आत्महत्या की थी। यूपीए सरकार के 2004 में देश की बागडोर संभालने के बाद कुल 1.18 लाख किसानों ने अब तक आत्महत्या की है। गुजरात, कर्नाटक और उत्तरप्रदेश कुछ ऐसे राज्यों के नाम हैं जहां वर्ष (2004-2011) के दौरान किसानों के बीच आत्महत्या करने की प्रवृति बढ़ी है।

दिखावा ‌साबित हुए विशेष पैकेज
खेती की समस्या से जूझते इन राज्यों के अलावा सबसे चौकाने वाले तथ्य तो असम जैसे पूर्वोतर राज्य से सामने आए हैं जहां 2010 में 269 किसानों ने आत्महत्या की थी जो 2011 में बढ़कर 312 तक पहुंच गई है। साथ ही इन आंकड़ों से इस बात का पता चलता है कि बुंदेलखंड और विदर्भ जैसे सूखा प्रभावित राज्यों को दिए जाने वाले विशेष पैकेज महज मात्र एक दिखावा साबित हो रही है।

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