ये स्लम बता देते हैं विकास का जमीनी सच, रिपोर्ट में खुलासा- रोहित की रिपोर्ट

पटना।
भले ही राजधानी कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होती जा रही हो, लेकिन एक
सच्चाई यह भी है कि इसकी बड़ी जनसंख्या स्लम में रहने को विवश है। इन
स्लमों का हाल बहुत बुरा है। यह हाल तब है जब राजधानी में सबसे अधिक वोट
स्लम क्षेत्र में मिलते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक राजधानी के स्लम
क्षेत्रों में रहने वाले 90 प्रतिशत वयस्कों के पास मतदाता पहचान पत्र है
और वे अपने मताधिकार का खुलकर प्रयोग भी करते हैं। यह खुलासा प्रिया
(स्वयंसेवी संगठन) द्वारा कराए गए एक सर्वे में हुआ। इसके तहत राजधानी के
99 स्लम के 15,163 घरों में अध्ययन हुआ। इसके परिणाम काफी चौंकाने वाले
हैं।








प्राइवेट जमीन पर स्लम








पटना के 22 स्लम निजी जमीन पर हैं। जबकि पटना नगर निगम की जमीन पर मात्र 12
स्लम हैं। मजे की बात यह है कि निजी जमीन पर बसे स्लमों में मूलभूत
सुविधाएं मसलन बिजली, पेयजल आदि मौजूद हैं। जबकि पटना नगर निगम अथवा सरकारी
जमीन पर बने स्लमों में इन सुविधाओं का अभाव है।








जमीन पर नहीं उतरीं योजनाएं








प्रिया के राज्य अध्यक्ष विश्वरंजन ने बताया कि राजधानी को स्लम फ्री सिटी
बनाने में राज्य सरकार पूरी तरह विफल रही है। स्लम हटाने की योजनाएं जमीन
पर नहीं उतर पाईं। पटना नगर निगम के पास स्लम को लेकर कोई योजना नहीं है।
राजधानी का अपना कोई टाउनशिप मास्टर प्लान नहीं है।








पेयजल व्यवस्था की दिक्कत








सर्वे रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि मात्र 11 स्लम में पेयजल की पर्याप्त
यवस्था है। पटना नगर निगम निश्चित समय पर पानी की सप्लाई भी की जाती है और
चापाकल भी हैं। जबकि 30 स्लमों में बिजली की व्यवस्था है। आंगनबाड़ी
केंद्रों की पहुंच राजधानी के 68 स्लम तक है। 89 स्लमों में जनवितरण
प्रणाली व्यवस्था भी है।








56 स्लम से नहीं मिलता है टैक्स








राजधानी पटना के 99 स्लम में से 56 स्लमों से राज्य सरकार को किसी प्रकार
का टैक्स नहीं मिलता। ये स्लम नाला, तालाब, रेलवे ट्रैक, नदियों और सड़कों
के किनारे आदि जगहों पर मौजूद हैं। जबकि 36 स्लम टीनेबल लैंड पर मौजूद हैं।
चार स्लम को दूसरीजगह पर स्थानांतरित किया गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *