बुंदेलखंड के लिए भी खराब संकेत मिल रहें है। पिछले साल के मानसून से गदगद किसानों को इस साल मायूसी का सामना करना पड़ सकता है। मौसम वैज्ञानिकों ने भी इस साल औसत से कम बारिश होने की संभावना जताई है। पांच साल में औसतन तीन बार सूखा झेलने वाले बुंदेलखंड में इस बार सूखे के आसार हैं। बुंदेलखंड एग्रो क्लाइमेट जोन-6 में है। इस जोन में मानसून की अनियमितता वाले जिले रखे गए हैं। मानसूनी वर्षा न होने या कम बारिश होने पर जलाशय खाली रहते हैं, जिससे नहरों से सिंचाई नहीं हो पाती। जिले के 55 प्रतिशत क्षेत्र खेतों की सिंचाई नहरों से होती है। क्षेत्र में जून के तीसरे सप्ताह से बारिश शुरू होती है, लेकिन जून में अधिक तापमान के कारण भूमि की परत कड़ी होती है, जिससे किसी भी फसल की बुआई नहीं हो पाती।
रबी की बंपर फसल के बाद खरीफ की फसल के आसार अच्छे नही है। बारिश कम हुई तो धान की उपज पर सीधा असर पड़ेगा। राज्य सरकार ने वर्ष 2012-13 में धान के क्षेत्रफल को बढ़ा कर 5947 हजार हेक्टेयर और उत्पादन 14559 हजार मीट्रिक टन करने का सपना बुना था। दस सालों में सबसे कम जून 2010 में 20ण्3 मिमी बरसात दर्ज हुई थी। ऐसे में पिछले वर्ष पैदा हुए 13963 हजार मीट्रिक टन धान की बराबरी करना भी मुश्किल होगा।
हालांकि कृषि विभाग ने सूखा की संभावना से निपटने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। कम पानी चाहने वाली तिल, अरहर, उरद एवं सोयाबीन की खेती करने तथा 30 जून के बाद मानसून के सRिय होने पर धान की अधिक उपज देने वाली प्रजाति बोने, मानसून 10 जुलाई के बाद सRिय होने पर धान की जल्दी पकने वाली प्रजाति नरेंद्र की बुआई करने की सलाह दी है। यदि धान की बुआई संभव न हो तो खाली खेत में बाजरा, उरद, मूंग व तिल की कम समय में पकने वाली प्रजाति बोने की सलाह दी है।