सिंगूर मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर टिप्पणी करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘सिंगूर फैसले पर टिप्पणी करने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं जीवनभर किसानों, मजदूरों और पिछड़ों के हितों के लिए संघर्ष करती रही हूं। गरीबों के साथ खड़े रहने की हमारी प्रतिबद्धता बनी रहेगी चाहे मैं सत्ता में रहूं या न रहूं। मैं किसानों के हितों के लिए हमेशा लड़ती रहूंगी, लोकतंत्र में अंत में लोगों की पसंद की ही जीत होगी।’
शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट की दो जजों की एक पीठ ने कहा कि तृणमूल सरकार द्वारा पारित सिंगूर लैंड रिहैबिलिटेशन और डेवलपमेंट एक्ट 2011 संविधान के अनुरूप नहीं है। ममता ने यह अधिनियम तब पारित किया था जब वह सत्ता में आईं थीं।
इस अधिनियम के जरिए सरकार को यह अधिकार मिला कि सिंगूर में टाटा मोटर्स को लीज पर दी गई एक हजार एकड़ की जमीन वह उन 400 किसानों को लौटा सके जिन्होंने जमीन देने में अनिच्छा जाहिर की थी।
इससे पहले कोर्ट की एकल पीठ ने पिछले साल सितम्बर में इस अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा था, लेकिन टाटा ने इसके खिलाफ अपील दायर की और आज का फैसला टाटा के हक में गया।
ममता ने अदालत के फैसले पर सीधी प्रतिक्रिया देने से बचते हुए कहा कि उनकी सरकार किसानों के साथ है और उनके साथ बनी रहेगी। राज्य सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा जो किसान जमीन बेचने के इच्छुक नहीं हैं उनको उनकी जमीन वापस मिलेगी। इसमें किसान अंत में विजयी होकर उभरेंगे।
विपक्ष के नेता सूर्य कांत मिश्रा ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से साबित हो गया है कि पार्टी का इस मामले में रुख सही था।
जस्टिस पिनाकी चंद्रा घोष और जस्टिस एम के चौधरी ने अपने फैसले में कहा कि सिंगूर एक्ट का क्षतिपूर्ति सेक्शन, जमीन अधिग्रहण एक्ट 1894 के अनुरूप नहीं है। इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल सरकार ने इसे पारित करने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति भी नहीं ली।
ममता से पहले राज्य में सत्तारूढ़ वाम मोर्चा सरकार ने टाटा मोटर्स को टाटा मोटर्स को हुगली जिले में सिंगूर में 997 एकड़ भूमि लीज पर दी थी। इस जमीन पर टाटा की दुनिया की सबसे सस्ती कार नैनो का निर्माण करने की योजना थी।
उस वक्त विपक्षी दल की भूमिका निभा रहे तृणमूल कांग्रेस ने इस योजना का विरोध किया और किसानों की जमीन वापस करने की मांग सरकार से की। जिन किसानों की जमीन ली गयी थी उनमें से 400 किसान चाहते थे कि उनकी जमीन उन्हें वापस की जाए।
तृणमूल के आंदोलन के कारण टाटा मोटर्स 2008 में गुजरात के साणंद चली गई और उसने वहां कामकाज शुरू कर दिया। सिंगूर से विदाई के बाद टाटा मोटर्स ने वहां की जमीन काकब्जा नहीं छोड़ा।
सत्ता में आने के बाद ममता सरकार ने सबसे पहले सिंगूर एक्ट पारित किया। जिसे टाटा मोटर्स ने अदालत में चुनौती दी।