हालांकि जानकारों के अनुसार आमिर का जेनेरिक दवाइयों वाला आईडिया ‘बहुत साधारण’ है और इसके नुकसान भी हो सकते हैं। डाक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि देश में बिकने वाली करीब 40 फीसदी दवाईयां नकली हैं और अगर केवल जेनेरिक दवाई ही लिखने को दबाव डाला गया तो नुकसान भी हो सकता है। इतना ही नहीं अगर इससे साइड एफेक्ट हो गये तो फिर दस दवाइयां और देनी पड़ेगीं जिससे पहले से कहीं ज्यादा नुकसान और खर्चा हो जाएगा।
लेकिन जेनेरिक दवाइयों की वकालत करने वाले डॉ. समीत शर्मा इस तरह की बातों को सीधे-सीधे दवा कंपनियों के बड़े कारोबार से जोड़ कर देखते हैं। उनका कहना है कि जो दवा बाजार में चार-पांच सौ रुपए की बिकती है, वही असर करने वाली जेनेरिक मेडिसीन चार-पांच रुपये में उपलब्ध है।उदाहरण के लिए ‘सिपरन’ नामक ब्रांडेड दवा छह रुपये प्रति टैबलेट आती है। यही टैबलेट, जेनेरिक दवा के रूप में सिपरोफ्लेक्सासिन के नाम से 95 पैसे का मिल जाता है। डॉ. शर्मा राजस्थान में जेनेरिक मेडीसीन ज्यादा से ज्यादा लोगों को मुहैया करवा कर महंगी दवाओं से आम जनता को निजात दिलाने की मुहिम चला रहे हैं।
क्यों सस्ती होती हैं जेनेरिक दवाएं
ब्रांडेड दवाओं के दाम कंपनियां उत्पादन लागत के अलावा रिसर्च, प्रचार-प्रसार और डाक्टरों के प्रशिक्षण के लिए सीएमई (कंटिन्यूड मेडिकल एजुकेशन) आदि के खर्च जोड़कर तय करती हैं। ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर (डीपीसीओ) के अधीन रहने के कारण एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य)पर सरकार की नजर भी रहती है। लेकिन जेनेरिक दवा के दाम केवल उत्पादन लागत पर तय किए जाते हैं।
यह भी गोरखधंधा
कुछ जगह सरकारी अस्पतालों में केवल जेनेरिक दवाएं देने और डॉक्टरों के लिए मरीजों को यही दवाएं लिखने को जरूरी बना दिया गया है। पर बुनियादी सुविधाओं, जैसे टेस्टिंग लैब वगैरह की कमी के चलते मरीजों को इसका फायदा नहीं हो पाता।
जेनेरिक दवाएं सस्ती होने के बावजूद कई बार कंपनियां इनकी एमआरपी लगभग ब्रांडेड दवाइयों जितना ही तय कर देती हैं। ये दवाएं ड्रग प्राइस कंट्रोल आर्डर (डीपीसीओ) के अधीन नहीं होने के चलते भी कंपनियां मनमाने ढंग से इनकी कीमत तय करती हैं।
जेनेरिक दवाओं पर विशेषज्ञों की राय
जेनेरिक उत्पादों पर कॉपीराइट का मुकदमा सबसे अधिक लगता है। यही वजह है कि कंपनियों को जेनेरिक दवाएं बनाने और इनकी सप्लाई करने में डर लगता है। – डॉ उन्नी प्रभाकर इंटरनेशनल कौंसिल प्रेसीडेंट, मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स
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अब जेनेरिक दवाइयां बनाने वाली कंपनियां भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग ले रही हैा। जेनेरिक दवाओं को लेकर पश्चिमी देशों के लोगों ने काफ़ी शोर मचाया था पर दुनिया भर में इसका महत्व बढ़ रहा है। – संदीप जुनेजा, रैनबैक्सी के एड्स प्रोजेक्ट मैनेजर
जेनेरिक दवाओं के कारण कई बड़ी कंपनियों को नुकसान होता है। इसलिए डॉक्टर ऐसी दवा लिखने से बचते हैं। वजह साफ है। इससे कंपनियों के साथ डॉक्टरों को भी नुकसान होता है। – डॉ वी पी पांडेय, सरकारी डॉक्टर