गोइलकेरा (जमशेदपुर).
नक्सलवाद प्रभावित झारखंड के 10 गांवों ने सरकार के आगे हाथ फैलाने बंद कर
दिए हैं। इन गांवों के 600 लोगों ने प्रशासनिक मुख्यालय गोइलकेरा तक
पहुंचने के लिए बदहाल 20 किलोमीटर सड़क अपने ही दम पर बना ली है। महज तीन
दिनों में।
नक्सलवादियों के आतंक और सरकारी मशीनरी की उपेक्षा के बीच यह आत्मनिर्भरता
का अनूठा उदाहरण है। यह प्रयास गोइलकेरा के सबसे पिछड़े व सुदूरवर्ती
पंचायत गमहरिया में अंजाम दिया गया है। पंचायत के पराल, खजुरिया, कारा,
रेला, बडग़ुवा, कुमारतोडांग, पोपकादा समेत 10 गांवों के 600 लोगों ने
दिन-रात मेहनत कर बदहाल सड़क को चलने लायक बना दिया। चीनीबाड़ी से
कुमारतोडांग तक बनी इस सड़क में कभी भी सरकारी अनुदान नहीं दिया गया।
सड़क की खराब के कारण ग्रामीणों को मुख्यालय आने में परेशानी होती थी। इसे
ठीक करने के लिए कई बार सरकारी विभागों व जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, पर
सब बेकार। बाद में स्थानीय आदिवासी मानकी-मुंडाओं के नेतृत्व में लोगों ने
सामूहिक तौर पर सड़क बनाने का निर्णय लिया।
कहते हैं ग्रामीण –
"गमहरिया पंचायत के गांवों में सड़क संपर्क नहीं रहने के कारण ही विकास
अवरूद्ध है। नए निर्माण कार्यों के लिए सामग्री गांवों में नहीं पहुंच पाती
है। बरसात में स्थिति नारकीय हो जाती थी।" – संतोष अंगरिया, ग्रामीण.
"मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए भी साइकिल का सहारा लेना पड़ता था। सड़क
पर वाहन नहीं चल पाते थे। कम से कम प्रखंड मुख्यालय तक संपर्क ठीक हो गया
है।" – कमलेश्वर चेरोवा, ग्रामीण.
नक्सलवाद प्रभावित झारखंड के 10 गांवों ने सरकार के आगे हाथ फैलाने बंद कर
दिए हैं। इन गांवों के 600 लोगों ने प्रशासनिक मुख्यालय गोइलकेरा तक
पहुंचने के लिए बदहाल 20 किलोमीटर सड़क अपने ही दम पर बना ली है। महज तीन
दिनों में।
नक्सलवादियों के आतंक और सरकारी मशीनरी की उपेक्षा के बीच यह आत्मनिर्भरता
का अनूठा उदाहरण है। यह प्रयास गोइलकेरा के सबसे पिछड़े व सुदूरवर्ती
पंचायत गमहरिया में अंजाम दिया गया है। पंचायत के पराल, खजुरिया, कारा,
रेला, बडग़ुवा, कुमारतोडांग, पोपकादा समेत 10 गांवों के 600 लोगों ने
दिन-रात मेहनत कर बदहाल सड़क को चलने लायक बना दिया। चीनीबाड़ी से
कुमारतोडांग तक बनी इस सड़क में कभी भी सरकारी अनुदान नहीं दिया गया।
सड़क की खराब के कारण ग्रामीणों को मुख्यालय आने में परेशानी होती थी। इसे
ठीक करने के लिए कई बार सरकारी विभागों व जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाई, पर
सब बेकार। बाद में स्थानीय आदिवासी मानकी-मुंडाओं के नेतृत्व में लोगों ने
सामूहिक तौर पर सड़क बनाने का निर्णय लिया।
कहते हैं ग्रामीण –
"गमहरिया पंचायत के गांवों में सड़क संपर्क नहीं रहने के कारण ही विकास
अवरूद्ध है। नए निर्माण कार्यों के लिए सामग्री गांवों में नहीं पहुंच पाती
है। बरसात में स्थिति नारकीय हो जाती थी।" – संतोष अंगरिया, ग्रामीण.
"मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए भी साइकिल का सहारा लेना पड़ता था। सड़क
पर वाहन नहीं चल पाते थे। कम से कम प्रखंड मुख्यालय तक संपर्क ठीक हो गया
है।" – कमलेश्वर चेरोवा, ग्रामीण.