गोपालगंज।
ब्रेन ट्यूमर के कारण आंखों की रोशनी चली गई, पर सकलदीप के इरादे टस से मस
नहीं हुए। ट्यूमर से जूझते हुए नेत्रहीन सकलदीप गांवों में घर-घर शिक्षा
का उजियारा फैला रहे हैं। वे चाहते हैं कि हर घर का चिराग रौशन हो। इसके
लिए वह नेत्रहीनता को मात देते हुए भी बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उनका मानना
है कि ज्ञान दान से बड़ा कुछ भी नहीं। उनकी पाठशाला बगीचे में लगती है।
तपती धूप के बावजूद बच्चे उनकी पाठशाला में आते हैं और सकलदीप उन बच्चों
में ज्ञान की ज्योति जला रहे हैं। सकलदीप को ईश्वर पर पूरा भरोसा है। तभी
तो वह कहते हैं कि वे मानते हैं कि मानव सेवा ही ईश्वर की असली सेवा है और
मुक्ति का सही मार्ग भी यही है।
पढ़ाने की शैली से खासे प्रभावित हैं बच्चे
सकलदीप के मुताबिक मैट्रिक परीक्षा के समय ब्रेन ट्यूमर का असर सामने आया
और दोनों आंखों की रोशनी जाती रही। गोपालगंज जिला मुख्यालय से पांच किमी
दूर कोन्हवां गांव के बच्चों के लिए गुरुजी का नेत्रहीन होना कोई मायने
नहीं रखता, बल्कि वे अपने गुरु की पढ़ाई की शैली से खासे प्रभावित हैं।
विपत्ति में पत्नी ने भी छोड़ दिया साथ
बीमारी के कारण सकलदीप मैट्रिक की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाए। बदहाली व
आर्थिक तंगी के कारण उनकी पत्नी ने भी साथ छोड़ दिया। । मां के पेंशन से
परिवार का खर्च चलता है। बावजूद सकलदीप की नि:शुल्क शिक्षा से आज उनके
छात्र सफलता का परचम लहरा रहे हैं।
ब्रेन ट्यूमर के कारण आंखों की रोशनी चली गई, पर सकलदीप के इरादे टस से मस
नहीं हुए। ट्यूमर से जूझते हुए नेत्रहीन सकलदीप गांवों में घर-घर शिक्षा
का उजियारा फैला रहे हैं। वे चाहते हैं कि हर घर का चिराग रौशन हो। इसके
लिए वह नेत्रहीनता को मात देते हुए भी बच्चों को पढ़ा रहे हैं। उनका मानना
है कि ज्ञान दान से बड़ा कुछ भी नहीं। उनकी पाठशाला बगीचे में लगती है।
तपती धूप के बावजूद बच्चे उनकी पाठशाला में आते हैं और सकलदीप उन बच्चों
में ज्ञान की ज्योति जला रहे हैं। सकलदीप को ईश्वर पर पूरा भरोसा है। तभी
तो वह कहते हैं कि वे मानते हैं कि मानव सेवा ही ईश्वर की असली सेवा है और
मुक्ति का सही मार्ग भी यही है।
पढ़ाने की शैली से खासे प्रभावित हैं बच्चे
सकलदीप के मुताबिक मैट्रिक परीक्षा के समय ब्रेन ट्यूमर का असर सामने आया
और दोनों आंखों की रोशनी जाती रही। गोपालगंज जिला मुख्यालय से पांच किमी
दूर कोन्हवां गांव के बच्चों के लिए गुरुजी का नेत्रहीन होना कोई मायने
नहीं रखता, बल्कि वे अपने गुरु की पढ़ाई की शैली से खासे प्रभावित हैं।
विपत्ति में पत्नी ने भी छोड़ दिया साथ
बीमारी के कारण सकलदीप मैट्रिक की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाए। बदहाली व
आर्थिक तंगी के कारण उनकी पत्नी ने भी साथ छोड़ दिया। । मां के पेंशन से
परिवार का खर्च चलता है। बावजूद सकलदीप की नि:शुल्क शिक्षा से आज उनके
छात्र सफलता का परचम लहरा रहे हैं।