टीडीआर-टीबी की सभी दवाएं बेअसर!

नई दिल्ली.
टोटल ड्रग रेजिस्टेंस (टीडीआर) टीबी को दबाने की केंद्र सरकार की कोशिश
नाकाम हो गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच रिपोर्ट में खुलासा
हुआ है कि मुंबई में टीडीआर-टीबी के 12 में से 6 मरीजों पर रोकथाम की सभी
दवाएं बेअसर हैं। ये मामले जनवरी में पहली बार सामने आने पर मंत्रालय की
जांच टीम ने इन्हें एक्सट्रीम ड्रग रेजिस्टेंस (एक्सडीआर) टीबी का नाम देकर
रफा-दफा करने की कोशिश की थी।




हाल ही में बेंगलुरू स्थित राष्ट्रीय टीबी संस्थान की ओर से मंत्रालय को
सौंपी गई रिपोर्ट में लिखा है कि मुंबई के हिंदुजा अस्पताल से जुटाए गए आठ
मरीजों के सैंपलों में से 6 में पहली और दूसरी पंक्ति की सभी 11 दवाएं
असरहीन हो चुकी हैं। अन्य दो मरीजों में भी 11 दवाओं में से सिर्फ एक ही
दवा ‘मॉक्सीफ्लोक्सेसीन’ ही थोड़ी बहुत काम कर रही है।




अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल हेल्थ एडवोकेट्स के कार्यकारी निदेशक और टीबी
विशेषज्ञ डा. बॉबी जॉन का कहना है कि रिपोर्ट को पहली नजर में देखते ही कोई
भी बता सकता है कि यह टीडीआर-टीबी ही है। लेकिन केंद्र सरकार के अधिकारी
और वैज्ञानिक इसे तकनीकी बातों में उलझाते हुए टीडीआर-टीबी होने की बात
नकारते रहे हैं। डा. बॉबी के मुताबिक, केंद्र सरकार को टीबी नियंत्रण के
लिए जन स्वास्थ्य और निजी अस्पतालों के बीच मौजूद असमानता और संवाद को खत्म
करने के लिए नई रणनीति बनाने की जरूरत है।




मुंबई में एक्स-एक्सडीआर-टीबी: सरकार




मुंबई के हिंदूजा अस्पताल में टीडीआर-टीबी के मामले सामने आने के बाद
स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच टीम ने इसे एक्सडीआर-टीबी घोषित करते हुए
‘सामान्य स्थिति’ करार दिया था। लेकिन सोमवार को केंद्रीय स्वास्थ्य
मंत्रालय के वैज्ञानिक और टीबी विभाग ने नई रिपोर्ट को देखते हुए इसे
‘एक्स-एक्सडीआर-टीबी’ कहना शुरू कर दिया है।




इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के प्रमुख डॉ. वीएम कटोच का
कहना है, ‘6 मरीजों में सभी दवाओं के निष्क्रिय होने की अवस्था को
एक्स-एक्सडीआर-टीबी ही कहा जाए, क्योंकि कुछ मरीजों में मौजूदा दवाएं थोड़ा
बहुत काम कर रही हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में टीबी विभाग के
प्रमुख डॉ. अशोक कुमार का कहना है कि टीबी समेत अन्य बीमारियों में भी
दवाएं निष्क्रिय होती रही हैं। भारत में पहली बार पाए गए
एक्स-एक्सडीआर-टीबी में भी दवाएं निष्क्रिय हुई हैं। लेकिन सरकार को उम्मीद
है कि इस स्थिति का मौजूदा दवाओं और सुविधाओं से उपचार कर लिया जाएगा।




क्या : टोटल ड्रग रेजिस्टेंस यानी टीडीआर-टीबी ऐसी अवस्था है, जब
क्षय रोग से बचाने के लिए दुनिया की सभी दवाएं बेअसर हो जाती हैं। बचाव का
कोई भी रास्ता नहीं रह जाता। आखिरकार मरीज की मौत तय हो जाती है।




कैसे: टीबी की पहली अवस्था में इलाज पूरा नहीं कराने पर मल्टी-ड्रग
रेजिस्टेंस (एमडीआर) टीबी हो जाती है। यानी कुछ दवाएं इलाज में कारगर नहीं
होती हैं। इस स्थिति में इलाज बीच में छोडऩे वाले मरीजों में भी कुछ दवाएं
काम करनी बंद कर देती है। यह एक्सट्रीम ड्रग रेजिस्टेंस (एक्सडीआर) टीबी
की अवस्था है। इस समय दवाएं नहीं खाने से ही टीडीआर-टीबी हो जाती है।




कहां : टीबी की सबसे खतरनाक अवस्था के पूरी दुनिया में बहुत ही कम
मामले सामने आए हैं। जानकारों का कहना है कि 2003 में इटली की दो महिलाओं
में टीडीआर-टीबी का पहला मामला सामने आया था। इसके बाद 2009 में ईरान के
लगभग 15 लोग इस अवस्था में पहुंच गए थे।




क्यों खतरनाक : विशेषज्ञों का कहना है कि टीडीआर-टीबी से ग्रसित
मरीजों के संपर्क में आने वालों को भी यही रोग फैलेगा। जिन मरीजों में
टीडीआर-टीबी पाया गया है वे सभी स्लम एरिया में रहने वाले थे। विशेषज्ञ
आशंका जताते हैं कि भारत में इसका संक्रमण काफी तेजी से फैल सकता है।

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