प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने की राह कुछ और आसान हो गई है।
रिजर्व बैंक ने अपने एक अध्यय के आधार पर बीमा, मल्टी ब्रांड रिटेल और
मीडिया सहित कुछ अन्य सेक्टरों में एफडीआई बढ़ाने की वकालत की है। इसमें
आरबीआई ने कहा है कि भारत को अगर ग्लोबल अर्थव्यवस्था के साथ कदम मिलाकर
चलना है, तो विदेशी निवेश के मामले में और खुलापन लाना होगा।
आरबीआई
ने एफडीआई पर अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि जिस तरह से देश की
अर्थव्यवस्था ग्लोबल अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ती जा रही है, ऐसे में अगर
घरेलू आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियां इजाजत दें, तो कुछ क्षेत्रों, खासकर
बीमा क्षेत्र के पूंजीगत ढांचे में विदेशी निवेश के जरिये विस्तार किए
जाने की जरूरत है।
मल्टी ब्रांड रिटेल के क्षेत्र में प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश को लेकर लागू पाबंदियों को भी ढीला किए जाने की जरूरत दिखाई
दे रही है। अध्ययन रिपोर्ट आगे कहती है कि कृषि जैसे कुछ क्षेत्रों में
एफडीआई की अनुमति नहीं है। दूसरी ओर बीमा और मीडिया जैसे कुछ क्षेत्रों में
हमारे देश में पूंजी का स्तर अंतरराष्ट्रीय स्तर से काफी कम है।
इस
संदर्भ में हमें यह समझना होगा कि इन क्षेत्रों में पूंजी की सीमा और अन्य
बंधन जरूरतों और हालात के अनुरूप तय किए जाने चाहिए। इनके लिए
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई बंधा बंधाया ढांचा नहीं है, जो सभी देशों
में समान रूप से लागू किया जा सके। इसके अलावा आरबीआई ने कहा है कि बीमा
क्षेत्र में एफडीआई की सीमा को 26 फीसदी से बढ़ाने की मांग पर घरेलू
जरूरतों को देखते हुए पुनर्विचार किया जा सकता है।
इस बारे में कोई
फैसला लेने के लिए बीमा कंपनियों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में लाई जा
रही दीर्घकालीन पूंजी के योगदान को भी देखा जाना चाहिए। आरबीआई ने अपने
अध्ययन में पाया है कि भारत में बीमा सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में ढांचागत
पूंजी (सेक्टोरियल कैप.) चीन जैसे सख्त नियम वाले देश से भी निचले स्तर पर
है। दूसरी ओर ब्रिक देशों में शामिल ब्राजील और रूस जैसे देश तो ज्यादातर
सेक्टरों में पूंजी के मामले में हमसे काफी आगे हैं।
मल्टी ब्रांड
रिटेल में एफडीआई को लेकर अध्ययन में आरबीआई ने इसके पक्ष और विपक्षमें पेश
किए जा रहे तर्कों का जिक्र करते हुए इस संबंध में एक संतुलित और वस्तुपरक
रवैया अपनाने की जरूरत जताई है। अध्ययन में कहा गया है कि मल्टी ब्रांड
रिटेल के पक्ष में कहा जाता है कि इसके आने से देश में आपूर्ति में सुधार
आएगा और किसानों को उनके उत्पाद के अच्छे दाम मिलेंगे।
इसके साथ ही
प्रतिस्पर्धा के चलते ग्राहकों को वाजिब दामों पर पर सामान मिलने का तर्क
दिया जाता है। दूसरी ओर इससे छोटे किराना व्यापारियों का कारोबार चौपट होने
और भारी संख्या में रोजगार प्रभावित होने की बात भी कही जाती है। अत: इस
मामले में सभी पहलुओं पर विचार करते हुए एक संतुलित नीति अपनाए जाने की
जरूरत है।