आखिर कब पूरा होगा बाल मजदूर मुक्त समाज का सपना

नई दिल्ली। एक मई देश की उत्साहजनक विकास दर और शहरीकरण के बीच लाखों
बच्चे अपने बचपन को भूल दयनीय स्थिति में मजदूरी करने को विवश हो रहे है।
कई गैर सरकारी संगठन इस काम में जुटे हुए है कि बाल मजदूरी से देश व समाज
को जल्द से जल्द मुक्त किया जा सकें। तमाम सरकारी नीतियों और गैर सरकारी
प्रयासों के बावजूद बाल मजदूरों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।

गैर सरकारी संगठन के प्रयास के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर भारत में बाल मजदूर मुक्त समाज का सपना कब तक पूरा हा जाएगा।

वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक भारत में 14 साल से कम उम्र के करीब
1.26 करोड़ बच्चें बाल मजदूरी कर रहे हैं, हालाकि गैर सरकारी संगठन इस आकड़े
से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि देश में बाल मजदूरों की संख्या चार करोड़
के आसपास है।

बाल अधिकारों को लेकर काम करने वाले संगठन चेतना के वरिष्ठ पदाधिकारी
संजय गुप्ता कहते हैं कि सरकार के पास अनुमानित आकड़े ही हैं। उनका मानना है
कि करीब चार करोड़ बच्चें बाल मजदूरी कर रहे हैं। तेजी से विकास करते किसी
भी देश के लिए यह आकड़ा चिंताजनक है।

गैर सरकारी संगठनों की मानें तो देश की राजधानी दिल्ली में ही करीब पाच
लाख बाल मजदूर हैं और इनमें से एक लाख से अधिक के पास रहने का कोई ठिकाना
नहीं है। इन दिनों दिल्ली में बाल मजदूर मुक्त समाज बनाने को लेकर चेतना की
ओर से एक मुहिम चलाई जा है और इसका असर सबसे पहले दक्षिणी दिल्ली के लाजपत
नगर बाजार में दिखा है।

लाजपत नगर मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन ने फैसला किया है कि यहा किसी भी
दुकान अथवा स्टोर में बाल मजदूर नहीं रखे जाएंगे। इस संगठन के उपाध्यक्ष
विवेक गुप्ता ने कहा कि संगठन इस इलाके को बाल मजदूरी से मुक्त कराने के
लिए भरपूर प्रयास करेगा।

इसके बारे में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य डॉक्टर
योगेश दुबे ने कहा कि सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर प्रयास हो रहे हैं,
लेकिन अभी इसे लेकर बहुत कुछ किया जाना है। पूरे समाज को इसमें भागीदारी
देनी होगी।

देश में छोटी दुकानों और स्टोर के अलावा बड़ी संख्या में घरों में बतौर
नौकर बाल मजदूर काम कर रहे हैं। हाल ही में बाल आयोग के एक दल ने सिक्किम
का दौरा किया तो पाया कि राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के घरों पर बाल
मजदूर काम कर रहे हैं। आयोग ने इसको लेकर अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई
थी।

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