मधेपुरा, निप्र : सूचना मांगने के अधिकार को लेकर सरकार एक तरफ जहां यह
दावा करती फिर रही है कि इस कानून ने पूरी व्यवस्था को बदल कर रख दिया है।
वहीं दूसरी ओर इस कानून को इस्तेमाल करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को घोर
मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ मामलों में देश के अंदर कई सामाजिक
कार्यकर्ताओं को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है सूचना मांगने पर । कुछ ऐसी ही
परेशानी इन दिनों कुमारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता श्याम नंदन सिंह भी फेश
कर रहे है। उन्हें भी जान से मारने की धमकी कतिपय असमाजिक तत्वों ने घर
चढ़कर दी है। इस बात की शिकायत जब उन्होंने राज्य सूचना आयोग से की तो आयोग
ने 12 अप्रैल 2012 को जिले डीएम और एसपी को पत्र प्रेषित कर मामले की जांच
15 दिनों के अंदर कराकर कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए। लेकिन एक पखवारे
से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई
प्रभावकारी कदम नहीं उठाया गया। गौरतलब रहे कि श्रीसिंह ने वर्ष 2008 में
आई बाढ़ के बाद सरकार की ओर से जारी करोड़ों रुपए मुआवजा की राशि में
हेराफेरी का आरोप लगाते हुए कई बिन्दुओं पर सूचना मांग ली। फिर अंचलाधिकारी
सहित अन्य कई अधिकारी और कर्मचारी उनके खिलाफ हो गए। सभी ने उनका मुंह बंद
कराने के लिए कतिपय गुंडों के सहारे उन पर दबाव डालना शुरु कर दिया कि वे
सूचना मांगने से बाज आएं नहीं तो अंजाम बुरा होगा। स्थानीय पुलिस की भूमिका
भी इस मामले में नकारात्मक है। बहरहाल उन्होंने अभी भी कदम पीछे नहीं
हटाया है और वांछित सूचना को लेकर उनका संघर्ष जारी है। इस मामले में
श्रीसिंह ने स्थानीय थाने को भी लिखित रुप से सूचना दे रखी है।
दावा करती फिर रही है कि इस कानून ने पूरी व्यवस्था को बदल कर रख दिया है।
वहीं दूसरी ओर इस कानून को इस्तेमाल करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को घोर
मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। कुछ मामलों में देश के अंदर कई सामाजिक
कार्यकर्ताओं को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है सूचना मांगने पर । कुछ ऐसी ही
परेशानी इन दिनों कुमारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता श्याम नंदन सिंह भी फेश
कर रहे है। उन्हें भी जान से मारने की धमकी कतिपय असमाजिक तत्वों ने घर
चढ़कर दी है। इस बात की शिकायत जब उन्होंने राज्य सूचना आयोग से की तो आयोग
ने 12 अप्रैल 2012 को जिले डीएम और एसपी को पत्र प्रेषित कर मामले की जांच
15 दिनों के अंदर कराकर कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए। लेकिन एक पखवारे
से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई
प्रभावकारी कदम नहीं उठाया गया। गौरतलब रहे कि श्रीसिंह ने वर्ष 2008 में
आई बाढ़ के बाद सरकार की ओर से जारी करोड़ों रुपए मुआवजा की राशि में
हेराफेरी का आरोप लगाते हुए कई बिन्दुओं पर सूचना मांग ली। फिर अंचलाधिकारी
सहित अन्य कई अधिकारी और कर्मचारी उनके खिलाफ हो गए। सभी ने उनका मुंह बंद
कराने के लिए कतिपय गुंडों के सहारे उन पर दबाव डालना शुरु कर दिया कि वे
सूचना मांगने से बाज आएं नहीं तो अंजाम बुरा होगा। स्थानीय पुलिस की भूमिका
भी इस मामले में नकारात्मक है। बहरहाल उन्होंने अभी भी कदम पीछे नहीं
हटाया है और वांछित सूचना को लेकर उनका संघर्ष जारी है। इस मामले में
श्रीसिंह ने स्थानीय थाने को भी लिखित रुप से सूचना दे रखी है।