विश्व बैंक या अमेरिका बैंक? : केविन रैफर्टी

जो हुआ,
वह अप्रत्याशित नहीं था। चिकित्सक, मानवविज्ञानी और डार्टमाउथ कॉलेज के
संचालक डॉ जिम योंग किम को रॉबर्ट जोएलिक के उत्तराधिकारी के रूप में विश्व
बैंक का नया अध्यक्ष चुन लिया गया। लेकिन क्या इस पद के लिए किम का चयन
उचित था?






अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने किम को अध्यक्ष बनवाने के लिए एड़ी-चोटी
का जोर लगा दिया, लेकिन क्या किम स्वयं ओबामा के ‘येस वी कैन’ के
परिवर्तनकामी आदर्शो पर खरे उतरते हैं? विश्व बैंक के अनेक महत्वपूर्ण
दायित्वों में से एक यह सुनिश्चित करना भी है कि जो देश उससे ऋण ले रहे
हैं, वहां सुप्रशासन हो। यह पूरी तरह से उचित है, क्योंकि सुप्रशासन के
बिना ऋण देने की कोई तुक ही नहीं होगी। भ्रष्टाचार के सबसे पुराने तरीकों
में भाई-भतीजावाद और लाभ के पद पर अपने किसी कृपापात्र की नियुक्ति करना भी
है। क्या किम का चयन भी इसी श्रेणी में नहीं आता है?






टिप्पणीकारों का कहना था कि इस बार के विश्व बैंक चुनाव इन अर्थो में
ऐतिहासिक थे, क्योंकि इसमें तीन उम्मीदवारों के बीच कांटे का मुकाबला था।
लेकिन क्या वाकई मुकाबला कांटे का था? कड़ी टक्कर तो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा
के माहौल में ही संभव है।








अगर उम्मीदवार एक-दूसरे से वाद-विवाद-संवाद नहीं करते, एक-दूसरे की नीतियों
पर सवालिया निशान नहीं लगाते और अगर निर्वाचन खुली और पारदर्शितापूर्ण
प्रक्रिया के तहत नहीं होता है तो फिर प्रतिस्पर्धा स्वस्थ कहां रह जाती
है? ब्रुकिंग्स इंस्टिट्यूशन एंड कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के ईश्वर प्रसाद ने
तो ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में पूछ ही लिया कि क्या किम का चयन केवल इस आधार
पर किया गया कि वे अमेरिकी हैं?




वास्तव में किम की कैम्पेनिंग अमेरिकी राजकोष की सहायता से की गई थी और
पुख्ता तौर पर माना जा रहा है कि किम के ‘वर्ल्ड लिसनिंग टूर’ को भी
अमेरिका द्वारा ही प्रायोजित किया गया था।




जापान ने कम से कम इतनी ईमानदारी तो दिखाई कि उसने खुलेआम यह स्वीकार किया
कि वह अमेरिका के इशारों पर नाच रहा है, लेकिन डेविड कैमरन, एंजेला मर्केल,
निकोलस सरकोजी के बारे में क्या, जो हमेशा यह कहते हैं कि सुप्रशासन के
अभाव में सहायता राशि देने का मतलब पैसों की बर्बादी है, लेकिन उसके बावजूद
उन्होंने अपने कार्यकारी निदेशकों को निर्देश दिए कि वे किम के पक्ष में
वोट डालें। भला क्यों? सवालिया निशान बीजिंग की खामोशी पर भी लगाए जा सकते
हैं। ड्रैगन चाहता तो एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप कर सकता था।






विश्व बैंक अमेरिका, यूरोप या चीन की बपौती नहीं है। वह अमेरिका बैंक या
यूरोप बैंक नहीं है। विश्व बैंक में निचले स्तरपर नौकरियां पाने के लिए
कड़ी प्रतिस्पर्धा है। इसके लिए अब केवल एमबीए होना ही काफी नहीं, पीएचडी
की डिग्री भी जरूरी मानी जा रही है। हालांकि राष्ट्रीयता अब भी विश्व बैंक
के लिए कोई अवरोध नहीं है, लेकिन उपाध्यक्ष या प्रबंध निदेशक जैसे उच्च
पदों पर राजनीतिक हस्तक्षेपों के कारण बैंक की छवि को ठेस पहुंची है। यह
परिपाटी जापान ने शुरू की थी, लेकिन उसके बाद चीन ने तेजी से इसे अपनाया।
आईएमएफ में भी यही स्थिति है।




ओबामा के पास एक बेहतरीन अवसर था और वे विश्व बैंक के दरवाजे दुनिया के लिए
खोल सकते थे। वे कह सकते थे कि अमेरिका किसी की भी हिमायत नहीं कर रहा है,
बल्कि वह किसी ऐसे योग्य व्यक्ति को निमंत्रित कर रहा है, जो विश्व बैंक
अध्यक्ष पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करे।






इस प्रतिष्ठित पद के लिए सही मायनों में योग्य व्यक्ति वही माना जाएगा, जो
इससे पहले एक बेहतरीन, दक्ष और बहुसांस्कृतिक-बहुराष्ट्रीय स्टाफ वाले किसी
बड़े संस्थान का कुशलतापूर्वक संचालन कर चुका हो, जिसे 250 अरब डॉलर की ऋण
पुस्तिका के मायने पता हों, जिसे बैंकिंग और वित्तीय जगत की गहरी समझ हो,
जिसने राजनीति के प्रपंचों और विकासशील देशों में व्याप्त भ्रष्टाचार जैसी
समस्याओं का सामना किया हो, जिसे पता हो कि जमीनी स्तर पर आर्थिक विकास की
डगर कितनी कंटकाकीर्ण होती है, जो साहसी हो, मानसिक रूप से सशक्त हो,
कल्पनाशील हो, जिसमें भोजन, पानी, बिजली, बेरोजगारी, शहरीकरण जैसी विकट
आधुनिक समस्याओं से जूझने की काबिलियत हो।




वॉशिंगटन खुली प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित कर सकता था, लेकिन इसके बावजूद
जैसा कि ‘न्यूयॉर्कर’ में जॉन कैसिडी लिखते हैं, यह न्यूयॉर्क या शिकागो
में सौ साल पहले होने वाले निर्वाचनों की तर्ज पर हुआ चुनाव था, जिसमें
अमेरिकी सरकार न्यूयॉर्क के स्थानीय सियासी संगठन टैमेमी हॉल जैसी भूमिका
निभाने से भी नहीं कतराती थी।




सबसे बड़ा समायोजन तो खुद जिम योंग किम को ही करना पड़ेगा। वे अभी तक 6
हजार विद्यार्थियों (जिनमें से अधिकांश उद्दंड थे) वाला आईवी लीग कॉलेज
चलाते थे, जिसे बजट की समस्या से जूझना पड़ता था और अब अचानक वे खुद को 250
अरब डॉलर के पोर्टफोलियो वाले एक वैश्विक संस्थान में पाएंगे, जिसके
ग्राहकों की संख्या अरबों में है और दुनिया की तमाम विकास संबंधी चुनौतियां
उसके सामने मुंह बाए खड़ी हैं। कुछ प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने
स्वास्थ्य के क्षेत्र में किम द्वारा किए गए कार्यो की सराहना की है, लेकिन
हेल्थ केयर उनके नए जॉब का महज एक छोटा-सा हिस्सा है।






अब दुनिया भर की सरकारों से उनका आमना-सामना होगा, क्योंकि 187 देश विश्व
बैंक के शेयरधारक हैं। विश्व बैंक के अधिकांश ऋण इन सरकारों के ही खाते में
जाते हैं और वे आलोचना सुनने की अभ्यस्त नहीं हैं। इन देशों में
भ्रष्टाचार कोरोकनेका विश्व बैंक के पास यही तरीका होता है कि उन्हें ऋण
देना बंद कर दे।




किम का चयन कर ओबामा ने राष्ट्रीयता के तकाजों के सामने घुटने टेक दिए हैं।
उनके इस कदम से दूसरे देशों को भी गलत प्रेरणा मिलेगी। लेकिन लाख टके का
सवाल तो यही है कि हमें एक अम




ेरिकी बैंक चाहिए, या चीनी, या भारतीय, या जापानी, या यूरोपियन बैंक चाहिए, या एक विश्व बैंक चाहिए? -लेखक विश्व बैंक के पूर्व मैनेजिंग एडिटर व प्लेनवर्डस मीडिया के एडिटर इन चीफ हैं।

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