जालंधर. शीतल
फाइबर्स के मलबे में क्या कोई नहीं बचा है? बचाव दल एनडीआरएफ (नेशनल
डिजास्टर रेस्क्यू फोर्स) ने जीवित लोगों की तलाश खत्म करने के साथ ही इसके
पिलरों पर लिख दिया है – नो विकटिम लाइव। यानी अब कोई मजदूर नहीं बचा है।
फोर्स ने वीरवार की रात नया ऑपरेशन शुरू किया। यह काम है शवों की निशानदेही
करना।
वैसे चमत्कार की आस खत्म नहीं हुई है। जीवित लोगों की तलाश के लिए इमारत
में पांच जगहों पर लेंटर काटकर छेद किया गया है। छठी जगह इमारत की बैकसाइड
से एक दीवार निकालने के बाद छत को सहारा दिया गया है। सबसे अधिक श्रमिक
भूतल पर ही थे। इसके बाद कुछ संख्या दूसरे माले पर मिली है। ऊपर के दोनों
मालों पर धागे, कंबल व केमिकल ठूंस-ठूंस कर भरे हुए थे।
टीम की अगुवाई कर रहे राजवेंद्र सिंह बताते हैं कि लेंटर काटकर छेद किए
हैं। फिर सेंसिंग सिस्टम लेकर बचाव दल अंदर जा रहा है। टीम के पास मिट्टी
खोदकर मलबे के नीचे से रास्ता बनाने का भी विकल्प है। बचाव दल के सदस्य
बताते हैं कि उनके लिए अच्छी बात यह है कि मशीनों के ऊपर लेंटर टिक चुका
है। जिससे काफी हद तक जगह मिली। अगर इमारत के अंदर ऊन के कंबल तथा धागा न
होता तो सरिया काटने की स्पीड अधिक होती। खतरा यह भी है कि कहीं लेंटर
काटने के दौरान चिंगारी से अंदर आग न लग जाए।
भास्कर टीम ने देखा कि इमारत के बीचो-बीच वाले पिलर पर लिख दिया गया है-नो
मोर लाइव-2 (दो मृतक)। एक अन्य पिलर पर नीचे की ओर तीर का निशान लगाकर लिखा
है: डी-1 (यानी एक मृतक। हालात काफी जटिल हैं। पूरा मलबा उठाने के लिए चार
दिन लग सकते हैं। इमारत का साइट प्लान होता तो काफी आसानी होती।
ऐसा होता है एनडीआरएफ का एक्शन
इमारत के फैले मलबे का आकलन।
केमिकल रिसाव हो तो सबसे पहले उसकी किस्म व मात्रा जानी जाती है।
इमारत का साइट प्लान देखना। साइट प्लान न होने पर लोगों से पता लगाना।
इमारत की बाहरी दीवारों के जरिए ड्रिल मशीन से कई सुराख किए जाते हैं।
सुराख करने से जानकारी मिल जाती है कि इमारत में कहां पर खाली जमीन है।
मलबा निकालने के बाद छत को गिरने से रोकने के लिए सहारा देना।
मलबे में फंसे लोगों का आक्सीजन देना।
उनकी गिनती और लोकेशन जानना।
शवों पर केमिकल का छिड़काव करके बीमारी रोकने का प्रबंध।
मलबे में फंसे किसी शख्स का अंग काटकर उसे निकाला जासकता है, तो इसका प्रबंधन।
फाइबर्स के मलबे में क्या कोई नहीं बचा है? बचाव दल एनडीआरएफ (नेशनल
डिजास्टर रेस्क्यू फोर्स) ने जीवित लोगों की तलाश खत्म करने के साथ ही इसके
पिलरों पर लिख दिया है – नो विकटिम लाइव। यानी अब कोई मजदूर नहीं बचा है।
फोर्स ने वीरवार की रात नया ऑपरेशन शुरू किया। यह काम है शवों की निशानदेही
करना।
वैसे चमत्कार की आस खत्म नहीं हुई है। जीवित लोगों की तलाश के लिए इमारत
में पांच जगहों पर लेंटर काटकर छेद किया गया है। छठी जगह इमारत की बैकसाइड
से एक दीवार निकालने के बाद छत को सहारा दिया गया है। सबसे अधिक श्रमिक
भूतल पर ही थे। इसके बाद कुछ संख्या दूसरे माले पर मिली है। ऊपर के दोनों
मालों पर धागे, कंबल व केमिकल ठूंस-ठूंस कर भरे हुए थे।
टीम की अगुवाई कर रहे राजवेंद्र सिंह बताते हैं कि लेंटर काटकर छेद किए
हैं। फिर सेंसिंग सिस्टम लेकर बचाव दल अंदर जा रहा है। टीम के पास मिट्टी
खोदकर मलबे के नीचे से रास्ता बनाने का भी विकल्प है। बचाव दल के सदस्य
बताते हैं कि उनके लिए अच्छी बात यह है कि मशीनों के ऊपर लेंटर टिक चुका
है। जिससे काफी हद तक जगह मिली। अगर इमारत के अंदर ऊन के कंबल तथा धागा न
होता तो सरिया काटने की स्पीड अधिक होती। खतरा यह भी है कि कहीं लेंटर
काटने के दौरान चिंगारी से अंदर आग न लग जाए।
भास्कर टीम ने देखा कि इमारत के बीचो-बीच वाले पिलर पर लिख दिया गया है-नो
मोर लाइव-2 (दो मृतक)। एक अन्य पिलर पर नीचे की ओर तीर का निशान लगाकर लिखा
है: डी-1 (यानी एक मृतक। हालात काफी जटिल हैं। पूरा मलबा उठाने के लिए चार
दिन लग सकते हैं। इमारत का साइट प्लान होता तो काफी आसानी होती।
ऐसा होता है एनडीआरएफ का एक्शन
इमारत के फैले मलबे का आकलन।
केमिकल रिसाव हो तो सबसे पहले उसकी किस्म व मात्रा जानी जाती है।
इमारत का साइट प्लान देखना। साइट प्लान न होने पर लोगों से पता लगाना।
इमारत की बाहरी दीवारों के जरिए ड्रिल मशीन से कई सुराख किए जाते हैं।
सुराख करने से जानकारी मिल जाती है कि इमारत में कहां पर खाली जमीन है।
मलबा निकालने के बाद छत को गिरने से रोकने के लिए सहारा देना।
मलबे में फंसे लोगों का आक्सीजन देना।
उनकी गिनती और लोकेशन जानना।
शवों पर केमिकल का छिड़काव करके बीमारी रोकने का प्रबंध।
मलबे में फंसे किसी शख्स का अंग काटकर उसे निकाला जासकता है, तो इसका प्रबंधन।