आदिवासी युवतियों में बढ़ी स्वरोजगार की ललक- संजय सिंह

झारखंड के खांटी आदिवासी गांवों में आदिवासी महिलाओं में स्वरोजगार के प्रति जागरूकता आई है.

वे ‘स्वयं सहायता समूह’ बनाकर अपने छोटे-छोटे खेतों में गेंदा के फूल और आलू इत्यादि की खेती कर जीविकोपार्जन कर रही हैं.

इस कार्य में ग्राम पंचायतें प्रखंड मुख्यालयों के मार्फत उनका सहयोग कर
रही हैं. राज्य में पिछले साल सम्पन्न पंचायत चुनावों के बाद झारखंड के
नक्सल प्रभावित कुछ गांवों में, खासकर आदिवासी गांवों की महिलाओं में स्व
रोजगार के प्रति रुझान देखा जा रहा है.

इस संवाददाता ने लोहरदगा जिले में आदिवासी गांव- पाखनटोली का भ्रमण किया
तो वहां की आदिवासी महिलाओं और पुरुषों ने परम्परागत खेती से हटकर फूलों
और आलू की कई तरह की वेराइटी, जो उन्होंने अपने खेतों में पैदा की थी, बहुत
ही उत्साह से दिखाई.

उन्होंने बताया कि गांव की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बनाकर इसे
स्वरोजगार के रूप में अपनाया है. इसे बेचकर उन्हें कुछ नगदी प्राप्त होती
है और वे अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं. स्वयं सहायता समूहों को ग्राम
पंचायतों और प्रखंड मुख्यालयों से मदद मिलती है.

सवर्ण जातियों और मिश्रित आबादी वाले गांवों की तुलना में आदिवासी गांव
में अपेक्षाकृत ज्यादा खुशहाली दिखी. सरकार ने उनके लिए अलग से कुछ
छोटी-मोटी योजनायें भी चला रखी हैं. आदिवासी महिलाओं ने रास्ते के दोनों
तरफ कतारबद्ध होकर परम्परागत वेशभूषा तथा संथाली बोली में गीत गायन के साथ
नृत्य करते हुए स्वागत किया.

पुरुष वाद्ययंत्र (बड़ा सा ढोल) बजा रहे थे और अपने परम्परागत रंगबिरंगे
बड़े से छाते को आगंतुकों के सिर पर लगाकर उन्हें गांव के बीचोबीच स्थित
चौपाल और पंचायत भवन तक ले आये. गांव में उत्सव का माहौल था, जो कि
स्वत:स्फूर्त था. गांव के लोगों से बातचीत में आभास हुआ कि आदिवासियों को
अपनी मेहनत पर भरोसा है और यही उनकी खुशी का राज भी है. छोटी-छोटी खुशियां
भी उनके लिए एक बड़ा अवसर है. उन्होंने अपनी जरूरतें भी ज्यादा नहीं बढ़ा
रखी हैं.

सरकार की सामुदायिक शौचालय योजना फ्लाप

झारखंड के गांवों में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की सामुदायिक
शौचालय योजना फ्लाप नजर आई. हालांकि झारखंड के प्रिंसिपल सेक्रेटरी- पेयजल
एवं स्वच्छता विभाग- सुधीर प्रसाद ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ से बातचीत में दावा
किया कि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में 42 फीसद सेनिटेशन है.

लेकिन भ्रमण के दौरान गांवों के सामुदायिक शौचालय टूटे-फूटे नजर आए. कई
स्थानों पर तो उनमें खेती-किसानी से संबंधित सामान रखे हुए थे. केन्द्र
सरकार राज्य मशीनरी के मार्फत गांवों में प्रत्येक घर में शौचालय निर्माण
के लिए 32 सौ रुपये का अनुदान दे रही है.

इतनी कम धनराशि से शौचालय का निर्माण हो पाना महज एक कल्पना ही है.
महिलायें तो चाहती हैं कि उनके घर में शौचालय हो, लेकिन वहां पिछड़े गांवों
के पुरुषों के लिए यह काम फिजूलखर्ची ही है. ग्रामीण विकास मंत्रालय की यह
महत्वाकांक्षी योजना वहां वास्तव में फलीभूत होते नहीं दिख रही है.

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