अब जनता से दूर नहीं होंगे पहाड़ों के जंगल : विनोद भावुक

मंडी.
पहाड़ के जंगल अब यहां की जनता के हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने
आदिवासी एवं अन्य परंपरागत वनवासी वनाधिकार मान्यता कानून 2006 अन्य वनवासी
समुदायों के लिए भी लागू कर दिया है। सरकार ने 27 मार्च को सरकारी आदेश
जारी कर दिए हैं।








प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में प्रदेश सरकार की ओर से 1 अप्रैल 2008 को
ही इस कानून को लागू कर दिया गया था। अब अन्य वनवासी समुदाय के लिए भी वनों
के प्रबंधन, विकास और वन उपज के प्रयोग का संवैधानिक अधिकार मिल गया है।






अब प्रदेश में सामुदायिक व निजी वन अधिकार सैटल करने की प्रक्रिया शुरू
होगी। प्रदेश के 90 प्रतिशत लोगों को इस कानून के लागू होने से लाभ होगा।
गौरतलब है कि यह कानून देश की संसद में 15 दिसंबर 2006 को पारित हुआ है और 1
जनवरी 2008 से इसे जम्मू कश्मीर को छोड़ सारे देश में लागू किया गया है।






विकसित होंगे लोकमित्र वन


इस कानून के लागू होने के बाद सामुदायकि वनों का प्रबंधन ग्रामीण वन अधिकार
समितियां करेंगी। ब्लॉक स्तर व जिला स्तर तक ऐसी समितियां होगी और प्रदेश
स्तर पर मॉनीटरिंग कमेटी होगी। वनों के सामुदायिक प्रबंधन से लोग अपनी
जरूरत और पसंद के वनों का विकास कर सकेंगे। फल, ईंधन, चारा, दवाई और जड़ी
बूटी के जंगलों का विकास व विस्तार संभव होगा।






प्रचार और प्रशिक्षण की जरूरत


हिमालय नीति अभियान के संयोजक कुलभूषण उपमन्यु का कहना है कि इस कानून का
जोर – शोर से प्रचार प्रसार होना चाहिए। वन अधिकार सैटल करने के लिए
पंचायती राज संस्थाओं और समाजिक कार्यकर्ताओं को सरकार की ओर से प्रशिक्षित
किया जाना चाहिए। पहले सामुदायिक वनों के अधिकार की मान्यता की प्रकिया
शुरू होनी चाहिए। राजस्व विभाग और वन विभाग को एक्शन प्लान बनाना चाहिए।
प्रदेश के संदर्भ में कुछ रूल्ज बनाने की भी जरूरत है।






पहाड़ का तीसरा हिस्सा जंगल


हिमाचल प्रदेश के 38.3 प्रतिशत भाग पर जंगल हैं। यानी 21325 वर्ग किलोमीटर
में यहां जंगल हैं। प्रदेश में 11 वाइल्ड लाईफ सेंच्यूरीज और दो नेशनल
पार्क हैं। 1895 वर्ग किलोमीटर रिजर्व फॉरेस्ट, 43043 वर्ग किलोमीटर
प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट, 975 वर्ग किलोमीटर अनक्लोज्ड फॉरेस्ट, 370 वर्ग
किलोमीटर अन्य वन, 748 वर्ग किलोमीटर वन विभाग के बिना नियंत्रण वाला जंगल
है।


वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुदृप्तो राय ने कहा कि सरकार ने जनजातीय
क्षेत्रों केअलावा अन्य दस जिलों में भी इस कानून को लागू कर दिया है। वन
अधिकार सेटेलमेंट की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी।






इस आधार पर मिलेगा लाभ


13 दिसंबर 2005 से पहले के घोषित आदिवासी और अन्य वनवासी श्रेणी में तीन
पीढ़ियों से वनों से बर्तनदारी करते आ रहे हैं यानी 1930 से पहले से जंगलों
पर निर्भर लोग इस कानून के तहत पात्र होंगे। कानून के तहत वे लोग शामिल
होंगे जो आजीविका के लिए वनों में खेती करते रहे हैं अथवा वन भूमि में घर
बनाए हैं। जीविका के लिए लघु वन उपज व गृह निर्माण के लिए वन की लड़की का
प्रयोग करते हैं।




18 में से चाहिए 2 साक्ष्य




वन अधिकार सैटल करने की प्रक्रिया में पात्रता के लिए 18 साक्ष्यों में से
न्यूनतम 2 साक्ष्य पेश करने पर भी व्यक्ति पात्र होगा। गांव के बुजुर्ग की
लिखित गवाही भी साक्ष्य के तौर पर शामिल होगी। पति-पत्नी दोनों के नाम से
रिकॉर्ड दर्ज होगा और इस भूमि को बेचा नहीं जा सकेगा। जमीन पीढ़ी दर पीढ़ी
हस्तांरतरित होगी।




हिमालय नीति अभियान ने वन अधिकार कानून के लिए पहले भी लड़ाई लड़ी है।
प्रदेश में इस कानून के लिए सरकारी आदेश लागू होने के बाद हिमालय नीति
अभियान जन जागरण अभियान चलाएगी। -गुमान, सदस्य, हिमालय नीति अभियान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *