जगदलपुर.
ईधन की लगातार कमी से जूझने वाले लाक मुख्यालय बड़ेराजपुर से करीब 15
किमी दूर मारंगपुरी के ग्रामीणों ने बायोगैस को वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में
अपना लिया है। गांव के तकरीबन हर घर में बायोगैस के प्लांट बिना किसी
रूकावट के पिछले एक दशक से लगातार चल रहे हैं। अब ग्रामीण इसकी तकनीक से भी
वाकिफ हो चुके हैं।
नहीं मिलती जलाऊ लकड़ी
ओडिशा सीमा से लगे मारंगपुरी की जनसंख्या 1820 है। कहने को तो सभी सुविधाएं
उपलध हैं, लेकिन चूल्हा जलाने के लिए धमतरी जिले के बोरई व ओडिशा राज्य
के धनोरा से जलाऊ लकड़ी खरीदनी पड़ती थी। घर लाने तक इसकी कीमत दोगुनी हो
जाती थी। पंचायत ने क्रेडा से जुड़कर बायोगैस प्लांट स्थापित करना शुरू कर
दिया देखते ही देखते लगभग सभी घरों में बायोगैस के प्लांट स्थापित हो चुके
हैं। जो पहले गैस से डरते थे वे अब इसका बेधड़क इस्तेमाल कर रहे हैं।
क्या कहते हैं ग्रामीण
पिछले 12 साल से बायोगैस से खाना बना रही सरोज पटेल बताती हैं गैस बनाने
में ज्यादा समय नहीं लगता। सुबह -शाम को गोबर का घोल डालना पड़ता है।
मालती नेताम बताती हैं उसे पहले इसकी कोई जानकारी नहीं होने से डर लगता
था, लेकिन बीते तीन साल से बेझिझक गैस का नाभ बंद-चालू करती हैं। 8 सदस्यों
वाले परिवार के मुखिया भारत लाल पटेल की मानें तो बायोगैस उपयोग के बाद से
लकड़ी खरीदने में खर्च होने वाले हजारों रुपए की बचत होने लगी है। खेतों
के लिए खाद भी मिल जाती है।
सरपंच प्रभु राम नेताम ने बताया कि गांव के लगभग सभी के घरों में गोबर गैस
से खाना बनने लगा है। जिनके घर गाय-बैल नहीं हैं वो भी अब अपने घरों में
प्लांट स्थापित कराने के लिए आवेदन कर रहे हैं। क्रेडा के जूनियर इंजीनियर
निलेश श्रीवास्तव ने बताया कि पंचायत में जिनके घर में पशुधन है उन घरों
में बायोगैस लगे हुए हैं। क्लस्टर के अंतर्गत आने वाले इलाके में 220 से
अधिक प्लांट स्थापित किए गए हैं।
सचिव धन्दुराम गांव में लकड़ी की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं, लेकिन अब इसके लिए उन्हें और ग्रामीणों को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
निर्मल ग्राम का पुरस्कार मिला
ग्राम पंचायत को वर्ष 2007 में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अदुल कलाम ने निर्मल
ग्राम के रूप में पुरस्कृत किया था। पूर्व सरपंच बंशीराम मरकाम ने बताया
लकड़ी की कमी के चलते गांव वाले खुद ही अबगोबर गैस का उपयोग कर रहे हैं।
जिससे गाय-बैल से मिलने वाले गोबर का उपयोग अब दो तरह से करने लगे हैं। एक
तो प्लांट के लिए और दूसरा खाद के रूप में। इस खाद से पैदावार भी बढ़ती है
और इसके उपयोग से ईधन की समस्या से छुटकारा मिला है।
ईधन की लगातार कमी से जूझने वाले लाक मुख्यालय बड़ेराजपुर से करीब 15
किमी दूर मारंगपुरी के ग्रामीणों ने बायोगैस को वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में
अपना लिया है। गांव के तकरीबन हर घर में बायोगैस के प्लांट बिना किसी
रूकावट के पिछले एक दशक से लगातार चल रहे हैं। अब ग्रामीण इसकी तकनीक से भी
वाकिफ हो चुके हैं।
नहीं मिलती जलाऊ लकड़ी
ओडिशा सीमा से लगे मारंगपुरी की जनसंख्या 1820 है। कहने को तो सभी सुविधाएं
उपलध हैं, लेकिन चूल्हा जलाने के लिए धमतरी जिले के बोरई व ओडिशा राज्य
के धनोरा से जलाऊ लकड़ी खरीदनी पड़ती थी। घर लाने तक इसकी कीमत दोगुनी हो
जाती थी। पंचायत ने क्रेडा से जुड़कर बायोगैस प्लांट स्थापित करना शुरू कर
दिया देखते ही देखते लगभग सभी घरों में बायोगैस के प्लांट स्थापित हो चुके
हैं। जो पहले गैस से डरते थे वे अब इसका बेधड़क इस्तेमाल कर रहे हैं।
क्या कहते हैं ग्रामीण
पिछले 12 साल से बायोगैस से खाना बना रही सरोज पटेल बताती हैं गैस बनाने
में ज्यादा समय नहीं लगता। सुबह -शाम को गोबर का घोल डालना पड़ता है।
मालती नेताम बताती हैं उसे पहले इसकी कोई जानकारी नहीं होने से डर लगता
था, लेकिन बीते तीन साल से बेझिझक गैस का नाभ बंद-चालू करती हैं। 8 सदस्यों
वाले परिवार के मुखिया भारत लाल पटेल की मानें तो बायोगैस उपयोग के बाद से
लकड़ी खरीदने में खर्च होने वाले हजारों रुपए की बचत होने लगी है। खेतों
के लिए खाद भी मिल जाती है।
सरपंच प्रभु राम नेताम ने बताया कि गांव के लगभग सभी के घरों में गोबर गैस
से खाना बनने लगा है। जिनके घर गाय-बैल नहीं हैं वो भी अब अपने घरों में
प्लांट स्थापित कराने के लिए आवेदन कर रहे हैं। क्रेडा के जूनियर इंजीनियर
निलेश श्रीवास्तव ने बताया कि पंचायत में जिनके घर में पशुधन है उन घरों
में बायोगैस लगे हुए हैं। क्लस्टर के अंतर्गत आने वाले इलाके में 220 से
अधिक प्लांट स्थापित किए गए हैं।
सचिव धन्दुराम गांव में लकड़ी की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं, लेकिन अब इसके लिए उन्हें और ग्रामीणों को इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता।
निर्मल ग्राम का पुरस्कार मिला
ग्राम पंचायत को वर्ष 2007 में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अदुल कलाम ने निर्मल
ग्राम के रूप में पुरस्कृत किया था। पूर्व सरपंच बंशीराम मरकाम ने बताया
लकड़ी की कमी के चलते गांव वाले खुद ही अबगोबर गैस का उपयोग कर रहे हैं।
जिससे गाय-बैल से मिलने वाले गोबर का उपयोग अब दो तरह से करने लगे हैं। एक
तो प्लांट के लिए और दूसरा खाद के रूप में। इस खाद से पैदावार भी बढ़ती है
और इसके उपयोग से ईधन की समस्या से छुटकारा मिला है।