चीनी मिलों की बढ़ रही मिठास

पटनाः चीनी उत्पादन के मामले में अपना खोया गौरव प्राप्त करने की ओर
बिहार धीरे-धीरे बढ़ रहा है. पिछले कुछ वर्षो से बिहार में चीनी उत्पादन
में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है. इस वर्ष 15 मार्च तक राज्य की 11
चीनी मिलों में 40.44 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन हुआ.

यह पिछले वर्ष इस अवधि तक हुए उत्पादन से 3.62 लाख क्विंटल अधिक है.
इसी वर्ष शुरू हुई दो बंद चीनी मिलों में सवा लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन
हुआ. इनमें पूर्वी चंपारण की सुगौली में 69 हजार क्विंटल व पश्चिमी चंपारण
की लौरिया में 55 हजार क्विंटल चीनी का उत्पादन हुआ. यदि सभी बंद चीनी
मिलों में उत्पादन फिर शुरू हो जाये, तो बिहार कम-से-कम चीनी उत्पादन में
आत्मनिर्भर हो जायेगा. उक्त सभी मिलों में 15 मार्च के बाद भी उत्पादन जारी
है.
हर वर्ष दिसंबर में गन्ने की पेराई शुरू होती है और मार्च के अंत से लेकर 15 अप्रैल तक मिलों से चीनी का उत्पादन होता है.

इस वर्ष मिलें बंद होने तक दो-तीन लाख क्विंटल और चीनी के उत्पादन की
उम्मीद है, जो अब तक का रिकॉर्ड होगा. वर्ष 2009-10 में 27.45 व 2010-11
में 38.57 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन हुआ था. हालांकि, अब भी खपत के
बराबर चीनी उत्पादन से बिहार काफी पीछे है. बिहार में करीब 80 लाख क्विंटल
चीनी की सालाना खपत है.

दो बंद मिलों के खुलने के साथ-साथ पहले से चालू नौ मिलों की क्षमता में
भी वृद्धि की गयी है. यही कारण है कि ईख की पेराई क्षमता में वृद्धि हुई
है. छह वर्ष पहले बिहार की सभी चीनी मिलों को मिला कर प्रतिदिन 37200
क्विंटल ईख की पेराई होती थी, जो अब बढ़ कर 58300 क्विंटल हो गयी है.

निगम की 15 मिलों में आठ निजी हाथों में-बिहार राज्य चीनी निगम की 15
मिलों में आठ को निजी हाथों में दी गयी हैं. इन आठ में पांच को चीनी मिलों
को और अन्य स्थलों को दूसरे उद्योग के लिए दिया गया है. चीनी उत्पादन के
लिए दिये गये पांच में दो में उत्पादन शुरू हो गया है. इनमें सुगौली व
लौरिया की चीनी मिलें शामिल हैं. अन्य जिन तीन मिलों को चीनी उत्पादन के
लिए निजी कंपनी को दिया गया है, उनमें रैयाम, मोतीपुर व लोहट की मिलें
शामिल हैं. शेष सात बंद मिलों को भी निजी हाथों में देने की प्रक्रिया चल
रही है.
-ब्रजेश-

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