मुजफ्फ़रपुर : केस 1. नाम-मो इमरान, पता-मिठनपुरा, बीमारी-पेट में दर्द
रहना (पुरजा नंबर 112) मरीज के पेट में करीब एक सप्ताह से दर्द था. मंगलवार
को वह चिकित्सा के लिए सदर अस्पताल पहुंचा.
मेडिसीन विभाग में उसने चिकित्सक से परामर्श लिया. डयूटी पर मौजूद
चिकित्सक ने मरीज की बात सुनी और झटपट दवाएं लिख दी. मरीज ने बताया कि
चिकित्सक ने आला लगा कर उसकी जांच नहीं की. सिर्फ़ बात सुनकर ही दो दवाएं
लिख दी. दवा काउंटर से तीन टैबलेट मिले हैं. दूसरी दवा नहीं मिली.
केस 2. नाम-रुखसाना खातून, पता-मिठनपुरा, बीमारी-कमजोरी रहना, (पुरजा
नंबर 113) मरीज पिछले कई सप्ताह से बीमार है. सदर अस्पताल में जब यह
चिकित्सा के लिए आयी तो चिकित्सक ने इनका मर्ज सुना व दवाएं लिख दी. मरीज
ने बताया कि चिकित्सक ने ब्लड प्रेशर की जांच नहीं की. बीमारी जानने के लिए
आला भी नहीं लगाया. बस दवाएं लिख दी. लेकिन वह दवाएं भी पूरी नहीं मिली.
केस 3. नाम-अजय कुमार, पता-सिकंदरपुर कुंडल, बीमारी-पैरों में सूजन
रहना, (पुरजा नंबर 101)मरीज इस मर्ज से लंबे से समय से पीड़ित था. बीमारी
के इलाज के लिए वह चिकित्सक के पास पहुंचा. चिकित्सक ने इनका भी मर्ज सुन
कर ही दवाएं लिख दी. शरीर के अंदरुनी हिस्सों की स्थिति जानने के लिए आला
का उपयोग नहीं किया.
मरीज का कहना था कि वह पहले भी यहां आया था तो चिकित्सक ने बीमारी के
बारे में पूछ की ही दवाएं लिख दी थी. आला लगा कर उसका चेकअप नहीं किया
गया.ये तीन मरीज उदाहरण भर हैं. सदर अस्पताल के आउटडोर में आने वाले मरीजों
की चिकित्सा इसी तरह होती है.
सामान्य मरीजों की बात छोड़ दें तो गंभीर मरीजों की चिकित्सा में आला का
उपयोग नहीं किया जाता. आउटडोर में बैठने वाले एक चिकित्सक तो आला रखते भी
नहीं हैं. मरीज का मर्ज सुन कर ही इलाज की दवाएं लिख देते हैं.
अब मरीजों को इससे भला नहीं हो तो इसकी जिम्मेवारी उनके ऊपर नहीं होती.
मरीजों को नहीं देखने का आरोप उन पर नहीं लगाया जा सकता. मरीजों का ठीक
होना भगवान की मरजी है. ऐसे में इलाज से अंसतुष्ट होने वाले मरीजों को निजी
चिकित्सकों का सहारा लेना पड़ता है.
– विनय –