नयी दिल्ली : दुनिया के करीब सात अरब लोगों को प्राणवायु ( ऑक्सीजन )
प्रदान करनेवाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर
रहे हैं. यदि जल्द ही इन्हें बचाने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाये गये तो
ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं विकराल रूप ले लेंगी.
पटना में लंबे समय से जंगलों को बचाने के लिए काम कर रही संस्था
तरूमित्र के प्रमुख फ़ादर राबर्ट ने बताया कि एक व्यक्ति को जिंदा रहने के
लिए उसके आस पास 16 पेड़ों की जरूरत होती है लेकिन भारत में स्थिति इसके
उलट है. फ़ादर राबर्ट ने कहा, भारत में 36 लोग एक पेड़ पर आश्रित हैं.
वैज्ञानिकों का कहना है कि जमीन के एक तिहाई हिस्से पर वन होना चाहिए, जबकि
भारत में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के 23 फ़ीसदी हिस्से पर वन हैं.
एक गैर सरकारी संस्था की रिपोर्ट बताती है कि भारत के केवल 11 प्रतिशत
हिस्से पर वन हैं. उन्होंने कहा, यह स्थिति गंभीर है. कई सौ वर्षो में
तैयार हुए जंगलों को काट देने से एक पूरा जीवन चक्र समाप्त हो जाता है.
उन्होंने सीएसइ की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया कि देश में 18 पेड़ काटे
जाते हैं तो एक पेड़ लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि सूचना के अधिकार के
तहत बिहार के वन विभाग ने बताया कि पटना में पांच हजार पेड़ काटे गये तो
केवल 1200 पेड़ लगाये गये.
पर्यावरण संरक्षण के दिशा में काम कर रही संस्था वातावरण की निदेशक अलका
तोमर ने बताया कि सरकार ने वनों के संरक्षण की दिशा में काफ़ी काम किया है
और पर्यावरण मंत्रालय की नो गो नीति काफ़ी अच्छा असर दिखायी दिया है.
उन्होंने बताया कि सरकार ने ग्रीन इंडिया मिशन के तहत देश के उन
क्षेत्रों में काम किया है जहां जंगल काटे जा चुके हैं. ब्राजील के
राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान के मुताबिक दुनिया के इस सबसे बड़े
वर्षावन में 12 महीने में 11 प्रतिशत की कमी आयी है.
लोगों को जागरूक करने के लिए 21 मार्च का दिन विश्व वानिकी दिवस के रूप
में मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का सबसे पहले विचार वर्ष 1971 में
यूरोपीय कृषि परिसंघ की 23वीं बैठक में आया था.