उन्होंने कहा भी है, "जो आरटीआई के एक्टिविस्ट हैं, उन्हें प्रताड़ित किया जाता है. अगर उन्होंने कोई सूचना मांगी, जिससे कोई बचना चाहता है, या उसे रोकना मुमकिन नहीं है, तो उसे धमकाया जाता है. उसको झूठे मामले में फंसाया जाता है. उस पर हमले किए जाते हैं. ऐसे मामलों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए और हो भी रही है."लेकिन कार्यकर्ता कह रहे हैं कि यह मुख्यमंत्री के सार्वजानिक भाषण यानी कथनी का अंश है, करनी का नहीं.वो कहते हैं कि करनी तो किसी और ही तरफ इशारा करती है. राज्य में जो चार आरटीआई एक्टिविस्ट मारे जा चुके हैं, उनके हत्यारों को सज़ा दिलाने की बजाए बचाने के आरोप नीतीश राज की पुलिस पर लग रहे हैं. बिहार में आरटीआई के बेहद सक्रिय माने जाने वाले कार्यकर्त्ता शिवप्रकाश राय बताते हैं, "बरौनी में शशिधर मिश्र, लखीसराय में रामविलास सिंह, हवेली खड़गपुर में मुरलीधर जायसवाल और मुजफ्फरपुर में राहुल कुमार जैसे समर्पित एक्टिविस्टों का कत्ल हो जाना इस शासन में भ्रष्टाचारियों की बढ़ती ताकत का सबूत है."खुद शिवप्रकाश राय को बक्सर में जिलाधिकारी द्वारा दायर मुकद्दमे के तहत 29 दिन जेल में रहना पड़ा. बाद में जांच के दौरान मुकद्दमा झूठा पाया गया तब जाकर राय रिहा हुए. दो साल पहले बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग ने सूचना मांगने वाले व्यक्तियों के खिलाफ लोक सूचना अधिकारियों यानी पीआइओ की तरफ से या उनकी मिलीभगत से दर्ज मामलों को झूठा पाया. चुप्पी
इसलिए आयोग की एक बेंच ने सम्बंधित 54 पीआइओ को निलंबित कर के उनके झूठे आरोपों पर दर्ज मुकद्दमे वापस लेने का आदेश दे दिया. लेकिन राज्य सरकार ने मामले पर चुप्पी साधी रही. हालांकि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एसएन झा ने इस संबंध में बिना नोटिस सीधे निलंबन के पहलू को विचाराधीन बताया है. हालात तो ऐसे बन गए हैं कि बिहार राज्य सूचना आयोग की निष्पक्षता पर ही सवाल उठने लगे हैं. आरोप है कि यह आयोग सूचना छिपाने वाले लोक सेवकों का संरक्षक बना हुआ है. खासकर राज्य मुख्य सूचना आयुक्त अशोक कुमार चौधरी पर यह सवाल उठा है कि जब वह स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी थे, तब उन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप से संबंधित जांच का नतीजा आना अभी बाक़ी है.ऐसे में उनकी विश्वसनीयता और उनके फैसले में पारदर्शिता का संदिग्ध हो जाना यहाँ चर्चा का विषय बना हुआ है. सम्मेलन
कहा जाता है कि श्री चौधरी पर यहाँ के मौजूदा सत्ता सूत्रधार का वरदहस्त है. हाल ही में सूचना के अधिकार पर खास चर्चा के लिए पटना में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में जस्टिस एपी शाह ने मुख्यमंत्री के सामने ही एक आपत्ति ज़ाहिर कर दी. उन्होंने कहा, "छत्तीसगढ़, कर्नाटक और बिहार में राज्य सरकार ने यह नियम बना दिया कि आरटीआई के एक आवेदन पत्र में सिर्फ एक ही सवाल पूछा जा सकता है. मेरे विचार से यह नियम आरटीआई प्रावधानों का उल्लंघन है और इसे वापस लेना चाहिए."नीतीश कुमार इसपर खामोश रहे. लेकिन उनकी खीज इसी सम्मलेन में दूसरे रंग में ज़ाहिर हुई. उन्होंने अपने शासन में अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की बात कही और कहा कि आरटीआई कार्यकर्ताओं को कष्ट उठाने की ज़रुरत नहीं है. इस पर जब एक कार्यकर्ता ने मुख्यमंत्री से कुछ पूछने का साहस जुटाया तो उसे मुख्यमंत्री ने डांटते हुए चुप करा दिया और जोर देकर बैठने को कहा. ‘जानकारी कॉल सेंटर’
आरटीआई के तहत टेलीफोन पर आवेदन की सुविधा वाला ‘जानकारी कॉल सेंटर’ सबसे पहले बिहार में खोले जाने का खुब प्रचार हुआ है. इस प्रयोग के लिए राज्य सरकार को पुरस्कृत भी किया गया. लेकिन इसकी हकीकत रवीन्द्र महतो कुछ यूं बयान करते हैं, "क्या बताऊँ कि मुझ पर क्या बीत रही है ? अभी हाल में यहाँ के अधिकारियों, पुलिस वालों और कुछ बदनाम लोगों ने साठगांठ करके मुझे दो झूठे मामलों में फंसाया और दो-दो बार जेल भिजवाया.किसी तरह ज़मानत पर छूट कर बाहर आया हूँ. लेकिन मैं भी थेथर हूँ और भ्रष्टाचारियों के आगे आरटीआई वाला अपना हथियार नहीं डालूँगा, चाहे जो हो जाय."मधुबनी के रवीन्द्र महतो वही आरटीआई कार्यकर्त्ता है जिनको मुख्यमंत्री ने पहला टेलीफ़ोन कॉल कर कॉल सेंटर का उदघाटन किया था. बिहार में सूचना के अधिकार की स्थिति को लेकर ‘सरकारी ढोल का खोलो पोल’ जैसी जो मुहिम चल रही है वो मीडिया की सुर्खियों में भी नहीं आ पा रही.