आर्थिक
सर्वे 2011-12 में आम आदमी और महंगाई को फिलहाल कोई राहत नहीं मिलती दिख
रही है। हालांकि सरकार सकारात्मक विकास और महंगाई को कम करने के लिए लगातार
प्रयासरत है। ऐसे में वित्त वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही के बाद महंगाई
पर काफी हद तक कंट्रोल देखने को मिल सकता है। वहीं बाजार में नकदी भी भारी
मात्रा में आने की संभावना है।
दिलचस्प है कि सरकार ने 2013 में
जीडीपी विकास दर 7.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। ऐसे में इस अनुमान तक
पहुंचने के लिए सरकार के सामने महंगाई को घटाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। ऐसा
न करने पर ये विकास दर सपना ही रह जाएगी।
वहीं सरकार ने इस आर्थिक
सर्वे में मनरेगा जैसी सामाजिक योजनाओं को बढ़ावा देने के संकेत भी दिये
हैं। वहीं इस संकेत का सीधा फायदा इसके तहत काम करने वाले मजदूरों को मिलने
की संभावना है। इसके अलावा सरकार मनरेगा में कुल 100 मजदूरी दिवस की
संख्या को भी बढ़ा सकती है।
पूरे आर्थिक सर्वे के दौरान सरकार की सबसे
बड़ी चिंता घाटे को कम करने के रूप में दिखी। इसके लिए सरकार ने सोने जैसे
गैर-उत्पादन वाले आयातित सामानों पर निर्भरता कम करने की जरूरत महसूस की
है। वहीं भूमि अधिग्रहण मसले पर भी सरकार खासा ध्यान देने की उम्मीद जता
रही है। ऐसे में सरकार के खाते में काफी हद तक पैसा वापस आ सकता है।
आर्थिक
सर्वे में रियल एस्टेट की सुस्ती पर भी गहरी चिंता जताई है। इस क्षेत्र को
लेकर सरकार की चिंता है कि अगर ब्याज दरें और बढ़ती हैं, तो घरों की मांग
और भी घट जाएगी। इससे रियल एस्टेट सेक्टर गहरी मंदी में जा सकता है।
ईरान
मसले के बाद कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने पर भी सरकार अपना ध्यान केंद्रित
करने में लगी हुई है। ऐसे में इसके असर से बचने के लिए अन्य विकल्पों की
तलाश के साथ-साथ स्थितियों को बेहतर करने पर जोर दिया जा रहा है।
सरकार
ने यूरोपीय संकट के भारतीय असर को भी कम करने का प्रयास किया है। सरकार की
चिंता भारत में मौजूद विदेशी बैंकों को लेकर भी बढ़ी हुई है। सरकार का
मानना है कि इन विदेशी बैंकों पर उनके देश में संकट बढ़ने पर भारत में भी
असर देखने को मिलेगा। ऐसे में इस असर को कम करने के लिए विदेशी बैंकों पर
ध्यान देने के संकेत भी आर्थिक सर्वे में दिए गए हैं।
वहीं सरकार गैर
योजनागत व्ययों में इस वित्त वर्ष में कटौती कर सकती है। इससे अर्थव्यवस्था
पर काफी हद तक बोझ कम होगा। इसके अलावा ढ़ांचागत परियोजनाओं पर भी सरकारी
खर्च में इजाफा किया जाएगा। इसके चलते विकास संबंधी निर्माण कार्यों में
गति आयेगी, जो सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का काम करेगी।
सर्वे 2011-12 में आम आदमी और महंगाई को फिलहाल कोई राहत नहीं मिलती दिख
रही है। हालांकि सरकार सकारात्मक विकास और महंगाई को कम करने के लिए लगातार
प्रयासरत है। ऐसे में वित्त वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही के बाद महंगाई
पर काफी हद तक कंट्रोल देखने को मिल सकता है। वहीं बाजार में नकदी भी भारी
मात्रा में आने की संभावना है।
दिलचस्प है कि सरकार ने 2013 में
जीडीपी विकास दर 7.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। ऐसे में इस अनुमान तक
पहुंचने के लिए सरकार के सामने महंगाई को घटाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। ऐसा
न करने पर ये विकास दर सपना ही रह जाएगी।
वहीं सरकार ने इस आर्थिक
सर्वे में मनरेगा जैसी सामाजिक योजनाओं को बढ़ावा देने के संकेत भी दिये
हैं। वहीं इस संकेत का सीधा फायदा इसके तहत काम करने वाले मजदूरों को मिलने
की संभावना है। इसके अलावा सरकार मनरेगा में कुल 100 मजदूरी दिवस की
संख्या को भी बढ़ा सकती है।
पूरे आर्थिक सर्वे के दौरान सरकार की सबसे
बड़ी चिंता घाटे को कम करने के रूप में दिखी। इसके लिए सरकार ने सोने जैसे
गैर-उत्पादन वाले आयातित सामानों पर निर्भरता कम करने की जरूरत महसूस की
है। वहीं भूमि अधिग्रहण मसले पर भी सरकार खासा ध्यान देने की उम्मीद जता
रही है। ऐसे में सरकार के खाते में काफी हद तक पैसा वापस आ सकता है।
आर्थिक
सर्वे में रियल एस्टेट की सुस्ती पर भी गहरी चिंता जताई है। इस क्षेत्र को
लेकर सरकार की चिंता है कि अगर ब्याज दरें और बढ़ती हैं, तो घरों की मांग
और भी घट जाएगी। इससे रियल एस्टेट सेक्टर गहरी मंदी में जा सकता है।
ईरान
मसले के बाद कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने पर भी सरकार अपना ध्यान केंद्रित
करने में लगी हुई है। ऐसे में इसके असर से बचने के लिए अन्य विकल्पों की
तलाश के साथ-साथ स्थितियों को बेहतर करने पर जोर दिया जा रहा है।
सरकार
ने यूरोपीय संकट के भारतीय असर को भी कम करने का प्रयास किया है। सरकार की
चिंता भारत में मौजूद विदेशी बैंकों को लेकर भी बढ़ी हुई है। सरकार का
मानना है कि इन विदेशी बैंकों पर उनके देश में संकट बढ़ने पर भारत में भी
असर देखने को मिलेगा। ऐसे में इस असर को कम करने के लिए विदेशी बैंकों पर
ध्यान देने के संकेत भी आर्थिक सर्वे में दिए गए हैं।
वहीं सरकार गैर
योजनागत व्ययों में इस वित्त वर्ष में कटौती कर सकती है। इससे अर्थव्यवस्था
पर काफी हद तक बोझ कम होगा। इसके अलावा ढ़ांचागत परियोजनाओं पर भी सरकारी
खर्च में इजाफा किया जाएगा। इसके चलते विकास संबंधी निर्माण कार्यों में
गति आयेगी, जो सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का काम करेगी।