राजस्थान
में बांसवाड़ा के बदरेल गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यभार
संभाला तो आसपास का क्षेत्र उजाड़ था। जहां ऐसे गांव में कोई पुरुष डॉक्टर
भी काम के लिए तैयार नहीं होता, वहां डॉ. रागिनी ने न सिर्फ ड्यूटी ज्वाइन
की बल्कि शहर के कई बड़े ऑफर्स ठुकरा दिए। ड्यूटी के बाद क्वार्टर में
मरीजों को देखना शुरू किया। उनसे मिलने वाली मामूली फीस को जमा किया और
गांव के बुजुर्गो को साथ लिया। गांव के मुख्य मार्ग के दोनों किनारों पर
500 पौधे लगवाए। उनकी लगन देख वन विभाग तथा जिला परिषद ने उन्हें बजट
उपलब्ध कराया। 1500 से अधिक पौधे लगावा चुकी हैं।
समाज और देश में योगदान
जहां आजकल कुछ डॉक्टर ऊंची से ऊंची फीस लेकर बैंक बैलेंस बढ़ाने में जुटे
रहते हैं, वहीं रागिनी शाह ने अपना पूरा जीवन गांव के लोगों के लिए समर्पित
किया। उनकी इस जिद में गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सब शामिल हो गए
हैं। इस लहर को गांव से पूरे देश तक ले जाने का इरादा रखती हैं।
प्रोफाइल:
डॉ. रागिनी शाह़, 45 साल
शिक्षा- एमबीबीएस
चिकित्साधिकारी . प्राथमिक स्वा. केंद्र, बदरेल
कहती हैं- पेड़-पौधे मेरे लिए बच्चों की तरह हैं..
में बांसवाड़ा के बदरेल गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यभार
संभाला तो आसपास का क्षेत्र उजाड़ था। जहां ऐसे गांव में कोई पुरुष डॉक्टर
भी काम के लिए तैयार नहीं होता, वहां डॉ. रागिनी ने न सिर्फ ड्यूटी ज्वाइन
की बल्कि शहर के कई बड़े ऑफर्स ठुकरा दिए। ड्यूटी के बाद क्वार्टर में
मरीजों को देखना शुरू किया। उनसे मिलने वाली मामूली फीस को जमा किया और
गांव के बुजुर्गो को साथ लिया। गांव के मुख्य मार्ग के दोनों किनारों पर
500 पौधे लगवाए। उनकी लगन देख वन विभाग तथा जिला परिषद ने उन्हें बजट
उपलब्ध कराया। 1500 से अधिक पौधे लगावा चुकी हैं।
समाज और देश में योगदान
जहां आजकल कुछ डॉक्टर ऊंची से ऊंची फीस लेकर बैंक बैलेंस बढ़ाने में जुटे
रहते हैं, वहीं रागिनी शाह ने अपना पूरा जीवन गांव के लोगों के लिए समर्पित
किया। उनकी इस जिद में गांव के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सब शामिल हो गए
हैं। इस लहर को गांव से पूरे देश तक ले जाने का इरादा रखती हैं।
प्रोफाइल:
डॉ. रागिनी शाह़, 45 साल
शिक्षा- एमबीबीएस
चिकित्साधिकारी . प्राथमिक स्वा. केंद्र, बदरेल
कहती हैं- पेड़-पौधे मेरे लिए बच्चों की तरह हैं..