पंजाब सरकार शिक्षा का स्तर ऊंचा उठाने के नाम पर कितनी ही वाहवाही लूट
रही हो पर, अब भी यह हकीकत से कोसों दूर है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो
शिक्षा व्यवस्था का यह हाल है कि बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। स्थिति यह है कि
वहां बेहतर पढ़ाई की उम्मीद नहीं की जा सकती। यह खुलासा हुआ है हाल ही में
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की ओर से राज्य भर के 50 ग्रामीण क्षेत्रों
में किए गए शोध में। शोध में पाया गया है कि 33 फीसदी बच्चे अभी भी दसवीं
से पहले ही अपनी पढ़ाई छोड़ रहे हैं।
शोध में पाया गया है कि प्राइमरी स्तर पर लड़कों के मुकाबले लड़कियां अधिक
जल्दी स्कूल छोड़ रही हैं। प्राइमरी स्तर पर 26 फीसदी लड़कियां तथा 16 फीसदी
लड़के इसमें शामिल हैं। रिसर्च करने वाले डा. सुखपाल सिंह का कहना है कि
ग्रामीण क्षेत्रों में उक्त रिसर्च कुछ समय पहले ही की गई है। ग्रामीण
क्षेत्रों में विद्यार्थियों को पढ़ाई में अपना उज्ज्वल भविष्य दिखाई नहीं
दे रहा। उनके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के एक तिहाई बच्चे स्कूल ही नहीं
जाते, क्योंकि वह महसूस करते हैं कि शिक्षा उन्हें रोजगार के अच्छे अवसर
नहीं प्रदान करेगी।
पीएयू के इसी शोध के अनुसार यह तथ्य भी सामने आए हैं कि ग्रामीण
क्षेत्रों की एक-चौथाई जनसंख्या आर्थिक स्तर ठीक न होने के चलते स्कूल नहीं
जाती। 15 फीसदी ऐसे बच्चे भी हैं, जिनका स्कूल घर से अधिक दूरी पर होने के
चलते वह स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाते। इनमें लड़कों के मुकाबले लड़कियां
अधिक हैं। एक अन्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में यह भी आया है कि 39 फीसदी
लड़के तथा 26 फीसदी लड़कियां इसलिए भी स्कूल छोड़ देते हैं कि वह पढ़ाई में
काफी कमजोर होते हैं।
कैसे हो सकते हैं सुधार
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिए हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइमरी स्तर तक
सिंगल टीचर स्कूल को खत्म कर देना चाहिए तथा विद्यार्थी अध्यापक अनुपात
1.25 रखना चाहिए। जिला स्तर पर ग्रामीण टीचर का अलग कैडर होना चाहिए, ताकि
अध्यापक ग्रामीण क्षेत्रों में ही सेवा दे सकें। वहीं, शहरी क्षेत्रों में
आने से पहले अध्यापकों को ग्रामीण क्षेत्रों में ही कम से कम 10 साल तक
अपनी सेवाएं देनी चाहिए।
रिसर्च के तथ्य
– 33 फीसदी बच्चे दसवीं से पहले छोड़ रहे हैं पढ़ाई।
– एक-तिहाई जनसंख्या का मानना शिक्षा नहीं दे सकती रोजगार के अच्छे अवसर।
– एक-चौथाई जनसंख्या का है आर्थिक स्तर निम्न।
– 15 फीसदी बच्चों का स्कूल होता है घर से दूर।
– 39 फीसदी लड़के व 26 फीसदी लड़कियां पढ़ाई में पाई गई कमजोर।