भोपाल, 2 जनवरी (एजेंसी)। मध्य प्रदेश सरकार ने चिकित्सा महाविद्यालयों और
उनसे संबद्ध अस्पतालों में बच्चों व मानसिक रोगियों पर ‘ड्रग ट्रायल’ करने
वाले बारह चिकित्सकों पर पांच-पांच हजार रुपए जुर्माना लगाया है।
साथ ही उसने प्रदेश में ड्रग या क्लीनिकल ट्रायल पर पाबंदी लगाने के
निर्देश जारी किए हैं।
सरकारी तौर पर रविवार को यहां कहा गया कि ड्रग
ट्रायल मामले में सभी मामलों की समीक्षा के बाद प्रदेश में संचालित
चिकित्सा महाविद्यालयों और उनसे संबद्ध अस्पतालों में नए ड्रग या क्लीनिकल
ट्रायल को 25 अक्तूबर, 2010 से प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए गए हैं।
राज्य सरकार इस बारे में शिकायतों के प्रति गंभीर है और इस दिशा में शीघ्र
ही नए मापदंड तैयार कर दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
सरकार ने कहा है
कि हालांकि औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम 1945 की सूची में शेड्यूल ‘वाई’
में ड्रग या क्लीनिकल परीक्षणों की निगरानी या नियंत्रित करने के मामलों
में राज्यों को कोई अधिकार नहीं है, फिर भी चिकित्सकीय परीक्षणों की
जानकारी हासिल करने के लिए स्वास्थ्य आयुक्त या मुख्य चिकित्सा और
स्वास्थ्य अधिकारी इंदौर ने औषधि महानियंत्रक, भारत के रजिस्ट्रेशन आफ
क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्रेशन में पंजीकृत स्वास्थ्य विभाग के 38 संबंधित
डाक्टरों को इन परीक्षणों के बारे जानकारी पेश करने के निर्देश दिए हैं।
डाक्टरों ने औषधि व प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के प्रावधानों का हवाला देते
हुए ड्रग या वैक्सीन ट्रायल की जानकारी देने में असमर्थता जताई है। इंदौर
के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी ने इस बारे में इंदौर के नर्सिंग
होम एसोसिएशन के अध्यक्ष और वहां स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष
से भी इस मामले में जानकारी मांगी थी। उन्होंने आठ आचार समितियों से भी नौ बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी।
हालांकि औषधि व प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के तहत ड्रग ट्रायल पर कई तरह की
पाबंदियां हैं, फिर भी मध्य प्रदेश उपचर्या गृह व रुजोपचार संबंधी
स्थापनाएं (रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस) अधिनियम 1973 के तहत इन सभी बारह
डाक्टरों पर उपचार और जांच की जानकारी नहीं रखने और मुख्य चिकित्सा व
स्वास्थ्य अधिकारी को मांगी गई जानकारी नहीं देने के लिए पांच-पांच हजार
रूपए जुर्माना किया गया है। सरकार ने यह भी कहा है कि वैधानिक प्रावधानों
के तहत उन रोगियों की जानकारी गोपनीय रखी जाती है, जिन पर ड्रग ट्रायल किया
गया है। चिकित्सक इसी प्रावधान के हवाले से कह रहे हैं कि राज्य सरकार इन
रोगियों से सीधे कोई जांच पड़ताल नहीं कर सकती।
उधर, मध्य प्रदेश
विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ‘राहुल’ ने चिकित्सकों पर पांच-पांच
हजार रुपए जुर्माने को हास्यास्पद बताते हुए मामले की सीबीआई जांच कराने की
मांग की है। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों से उपकृत डाक्टरों ने
इंदौर में मानसिक रोगियों पर उनकी सहमति के बिना दवाओं के परीक्षण का संगीन
अपराध किया है। इसके लिए सिर्फ पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा पर्याप्त
नहीं है। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटना
की पुनरावृत्ति नहीं हो। उन्होंने कहा कि इंदौर का एक मामला तो उजागर हो
गया लेकिन पिछले सात साल से भोपाल, ग्वालियर और जबलपुरसहित प्रदेश के कई
जिलों में दवा परीक्षण के संगीन अपराध हो रहे हंै। सरकार को इसे गंभीरता से
लेकर इसकी जांच सीबीआई को सौंप देनी चाहिए क्योंकि यह मामला बहुराष्ट्रीय
कंपनियों से जुड़ा हुआ है।
उनसे संबद्ध अस्पतालों में बच्चों व मानसिक रोगियों पर ‘ड्रग ट्रायल’ करने
वाले बारह चिकित्सकों पर पांच-पांच हजार रुपए जुर्माना लगाया है।
साथ ही उसने प्रदेश में ड्रग या क्लीनिकल ट्रायल पर पाबंदी लगाने के
निर्देश जारी किए हैं।
सरकारी तौर पर रविवार को यहां कहा गया कि ड्रग
ट्रायल मामले में सभी मामलों की समीक्षा के बाद प्रदेश में संचालित
चिकित्सा महाविद्यालयों और उनसे संबद्ध अस्पतालों में नए ड्रग या क्लीनिकल
ट्रायल को 25 अक्तूबर, 2010 से प्रतिबंधित करने के निर्देश दिए गए हैं।
राज्य सरकार इस बारे में शिकायतों के प्रति गंभीर है और इस दिशा में शीघ्र
ही नए मापदंड तैयार कर दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।
सरकार ने कहा है
कि हालांकि औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम 1945 की सूची में शेड्यूल ‘वाई’
में ड्रग या क्लीनिकल परीक्षणों की निगरानी या नियंत्रित करने के मामलों
में राज्यों को कोई अधिकार नहीं है, फिर भी चिकित्सकीय परीक्षणों की
जानकारी हासिल करने के लिए स्वास्थ्य आयुक्त या मुख्य चिकित्सा और
स्वास्थ्य अधिकारी इंदौर ने औषधि महानियंत्रक, भारत के रजिस्ट्रेशन आफ
क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्रेशन में पंजीकृत स्वास्थ्य विभाग के 38 संबंधित
डाक्टरों को इन परीक्षणों के बारे जानकारी पेश करने के निर्देश दिए हैं।
डाक्टरों ने औषधि व प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के प्रावधानों का हवाला देते
हुए ड्रग या वैक्सीन ट्रायल की जानकारी देने में असमर्थता जताई है। इंदौर
के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी ने इस बारे में इंदौर के नर्सिंग
होम एसोसिएशन के अध्यक्ष और वहां स्थित इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष
से भी इस मामले में जानकारी मांगी थी। उन्होंने आठ आचार समितियों से भी नौ बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी।
हालांकि औषधि व प्रसाधन सामग्री नियम 1945 के तहत ड्रग ट्रायल पर कई तरह की
पाबंदियां हैं, फिर भी मध्य प्रदेश उपचर्या गृह व रुजोपचार संबंधी
स्थापनाएं (रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस) अधिनियम 1973 के तहत इन सभी बारह
डाक्टरों पर उपचार और जांच की जानकारी नहीं रखने और मुख्य चिकित्सा व
स्वास्थ्य अधिकारी को मांगी गई जानकारी नहीं देने के लिए पांच-पांच हजार
रूपए जुर्माना किया गया है। सरकार ने यह भी कहा है कि वैधानिक प्रावधानों
के तहत उन रोगियों की जानकारी गोपनीय रखी जाती है, जिन पर ड्रग ट्रायल किया
गया है। चिकित्सक इसी प्रावधान के हवाले से कह रहे हैं कि राज्य सरकार इन
रोगियों से सीधे कोई जांच पड़ताल नहीं कर सकती।
उधर, मध्य प्रदेश
विधानसभा में विपक्ष के नेता अजय सिंह ‘राहुल’ ने चिकित्सकों पर पांच-पांच
हजार रुपए जुर्माने को हास्यास्पद बताते हुए मामले की सीबीआई जांच कराने की
मांग की है। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों से उपकृत डाक्टरों ने
इंदौर में मानसिक रोगियों पर उनकी सहमति के बिना दवाओं के परीक्षण का संगीन
अपराध किया है। इसके लिए सिर्फ पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा पर्याप्त
नहीं है। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी घटना
की पुनरावृत्ति नहीं हो। उन्होंने कहा कि इंदौर का एक मामला तो उजागर हो
गया लेकिन पिछले सात साल से भोपाल, ग्वालियर और जबलपुरसहित प्रदेश के कई
जिलों में दवा परीक्षण के संगीन अपराध हो रहे हंै। सरकार को इसे गंभीरता से
लेकर इसकी जांच सीबीआई को सौंप देनी चाहिए क्योंकि यह मामला बहुराष्ट्रीय
कंपनियों से जुड़ा हुआ है।