स्कूलों को शिक्षा अधिकार कानून की परवाह नहीं

नई दिल्ली।
स्कूलों में नर्सरी दाखिले को लेकर दिल्ली सरकार की ओर से लागू मुफ्त एवं
अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून (आरटीई एक्ट) का उल्लंघन किया जा रहा है।
एक्ट के तहत साफ है कि आयु संबंधी दस्तावेजों के मामले में स्कूलों को
माता-पिता या संरक्षक की आयु घोषणा ही मान्य होगी, लेकिन इसके विपरीत
स्कूलों ने नर्सरी, प्री-प्राइमरी व पहली कक्षा के दाखिलों के लिए नगर निगम
की ओर से जारी आयु प्रमाण पत्र को अनिवार्य कर दिया है।








लाजपत नगर स्थित फ्रैंक एंथोनी स्कूल की ओर से घोषित दाखिला नियमों में साफ
किया गया है कि उनके यहां पहुंचने वाले अभिभावकों को आयु सीमा संबंधी
दस्तावेज के तौर पर एमसीडी की ओर से जारी सर्टिफिकेट पेश करना जरूरी है। इस
दस्तावेज के स्थान पर स्कूल अस्पताल या अन्य किसी शपथपत्र को स्वीकार नहीं
करेगा। इसी तरह, होली चाइल्ड सीनियर सेकेंडरी स्कूल, टैगोर गार्डन, माउंट
सेंट मेरी स्कूल और दिल्ली कैंट ने एमसीडी की ओर से जारी सर्टिफिकेट को ही
अनिवार्य किया है। कारमल कांवेंट स्कूल ने भी प्री-प्राइमरी के लिए एमसीडी
का प्रमाणपत्र मांगा है, जबकि माउंट फोर्ट स्कूल अशोक विहार ने नगर निगम या
पंचायत से जारी आयु प्रमाण पत्र को ही मान्य बताया है। स्कूलों की
ज्यादतियों के चलते अभिभावक दाखिलों से पहले ही आयु प्रमाण पत्र के चलते
परेशान नजर आ रहे हैं।








ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट अशोक अग्रवाल का कहना है
कि सरकार की ओर से लागू आरटीई में कहा गया है कि जन्म, मृत्यु एवं विवाह
प्रमाण पत्र अधिनियम 1866 के अन्तर्गत जन्म प्रमाणपत्र उपलब्ध नहीं होने पर
अस्पताल/सहायक नर्स और दाई का रजिस्टर, आंगनबाड़ी अभिलेख और माता-पिता व
संरक्षक की ओर से लिखित घोषणा को आयु प्रमाण का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन
जिस तरह से स्कूलों ने एमसीडी के प्रमाणपत्र को ही अनिवार्य कर रहे हैं, उस
स्थिति ऐसे में उन बच्चों का क्या होगा जो अनाथ हैं। उन्होंने कहा कि यदि
जल्द ही स्कूलों में आयु संबंधी दस्तावेज को लेकर आरटीई पर अमल शुरू नहीं
किया तो वह इसके खिलाफ अभियान शुरू करेंगे।

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