भोपाल.
लोकसभा में बीते सप्ताह पेश राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक गरीबों के लिए
रोटी सुनिश्चित कर सकेगा, इसमें संदेह है। इसके पारित होने और कानून बनने
के बाद भी प्रदेश के कम से कम 28 फीसदी जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ नहीं
मिल पाएगा।
यानी करीब दो करोड़ लोगों को रोटी नसीब नहीं हो पाएगी। गरीबी के आंकड़ों के
लिए एन्साइक्लोपीडिया मानी जाने वाली अर्जुन सेन गुप्ता समिति की रिपोर्ट
के मुताबिक देश के 84 करोड़ लोग प्रतिदिन 20 रुपए या उससे भी कम में गुजारा
करते हैं।
मध्य प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या करीब 77 फीसदी आंकी गई है। लेकिन
केंद्रीय योजना आयोग के मानदंडों के अनुसार मप्र में अधिकतम 48.6 फीसदी लोग
ही गरीबी की रेखा से नीचे (बीपीएल) माने जाएंगे। इससे प्रदेश के वे 28
फीसदी लोग भी इस कार्यक्रम के दायरे से बाहर रहेंगे, जिन्हें सस्ते अनाज की
सख्त जरूरत है।
खजाने पर अतिरिक्त बोझ
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार प्रस्तावित बिल में स्पष्ट
नहीं किया गया है कि राज्यों को इसकी प्रतिपूर्ति कैसे होगी। साथ ही क्या
इस कानून को पूरी तरह लागू करने के लिए जो अतिरिक्त बुनियादी सुविधाओं का
निर्माण करना होगा, उसके लिए पैसे कौन देगा। इससे राज्य के खजाने पर
अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इसमें कई अन्य खामियां भी हैं।
भोजन भी मिलेगा आधा
तथ्य इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के निर्धारित मानदंडों
के अनुसार एक वयस्क व्यक्ति को एक माह में औसतन 14 किलो अनाज की जरूरत होती
है।
हकीकत प्रस्तावित मसौदे में एक व्यक्ति के लिए सात किलो अनाज का प्रावधान
किया गया है। यानी मप्र के जिन 48.6 फीसदी बीपीएल लोगों को इसका लाभ
मिलेगा, उन्हें भी सात किलो अनाज से ही काम चलाना पड़ेगा। एपीएल श्रेणी के
भी कुछ लोगों को इसका लाभ मिलेगा, लेकिन उन्हें माह में महज तीन किलो अनाज
ही मिल सकेगा।
पोषण की चिंता नहीं
तथ्य : तेंदुलकर समिति ने न्यूट्रीशनल स्टेटस ऑफ इंडिया नामक रिपोर्ट में
कहा है कि कैलोरी के मानदंडों पर मप्र के 84 फीसदी लोगों का पोषण स्तर
निर्धारित स्तर से कम है। गौरतलब है कि शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन प्रति
व्यक्ति 2100 कैलोरी और गांव में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी जरूरी
है। वहीं, राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार
मप्र के 52 फीसदी बच्चे कुपोषित (अंडरवेट) हैं।
हकीकत : राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत परिवारों को केवल गेहूं,
चावल और मोटे अनाज जैसे मक्का ज्वार ही मिलेंगे। इसमें दालों और खाद्य तेल
को शामिल करने की सामाजिक संगठनों की मांग ठुकरा दी गई, जबकि प्रोटीन और
वसा की कमी कुपोषण का बड़ा कारण है।
सामाजिक संगठनों की आपत्ति
1. यह लोगों के भोजन के अधिकार को सीमित करता है। इससे बीपीएल के एक व्यक्तिको महज सात किलो अनाज ही मिल पाएगा।
2. वास्तविक गरीबों का बड़ा हिस्सा भोजन के अधिकार से वंचित रह जाएगा। इससे इस कानून का क्या मतलब रह जाएगा?
3. सरकारों को अनाज के बदले नकद सब्सिडी की योजना शुरू करने की अनुमति मिल जाएगी, जो गरीबों के लिए घातक होगी।
(बकौल कविता श्रीवास्तव, कन्वीनर,राइट टू फूड कैंपेन, नई दिल्ली )
एक व्यक्ति पर खर्च होगे 2.85 रुपए
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रस्तावित मसौदे के अनुसार इस
कार्यक्रम पर हर साल 80 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसका लाभ देश के 77
करोड़ लोगों को मिलेगा (इसमें वे लोग भी शामिल जिन्हें हर माह सिर्फ तीन
किलो खाद्यान्न मिलेगा)।
इस तरह इस सब्सिडी पर हर साल प्रति व्यक्ति 1,039 रुपए खर्च होंगे, यानी
सरकारों को प्रतिदिन एक व्यक्ति पर महज 2.85 रुपए खर्च करने होंगे। पीडीएस
पर देश 67,370 करोड़ रुपए पहले ही खर्च कर रहा है।
(बकौल सचिन जैन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा राइट टू फूड पर नियुक्त कमिश्नर के प्रदेश एडवाइजर)