उन्होंने जिला सोलन के कंडाघाट ब्लाक की चार पंचायतों महोग,साजा,नगाली,
और कनौड़ी के तीस गांवों में वाटरशेड डवलपमेंट प्रोग्राम के तहत हुए कार्य
पर शोध किया। वर्मा ने अपने शोध में कहा है कि ये गांव सिंचाई के लिए अब
बारिश के पानी पर निर्भर नहीं है। सिंचाई का इंतजाम होने से खेती की
पैदावार में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है और किसानों की आर्थिकी में इजाफा हुआ
है। यही नहीं किसानों ने सब्जियों और खेती के लिए वैज्ञानिक तौर तरीके
अपनाने शुरू किए।फूलों की खेती कर ज्यादा पैसा कमा रहे है। आधुनिक तरीके से
खेती करने से छोटे किसानों को भी लाभ मिला है। खेती से आय बढऩे का असर
लोगों के रहन सहन पर भी पड़ा है और लोगों के घरों में चार और दो पहिया वाहन
पहुंच गए है। सड़क , शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सुधार हुआ है।
शोध में ये भी सामने आया है कि किसान पानी के महत्व को समझे है इसलिए वो
भूजल स्तर को बढ़ाने और पानी के संचय के लिए वृक्षारोपण करने लगे है।
शिमला। वाटरशेड
डवलपमेंट प्रोग्राम हिमाचल के कई गांवों के विकास में मील का पत्थर साबित
हुआ है। गैर सरकारी संगठनों,जलागम विकास समितियों और संघों के प्रयासों से
चलाए गए अभियान के चलते इन गांवों के लोगों की आर्थिकी मजबूत हुई है। ये
खुलासा राजकीय कन्या महाविद्यालय शिमला में लोक प्रशासन विभाग के
प्राध्यापक लक्ष्मी सिंह वर्मा के शोध में हुआ है। लक्ष्मी सिंह वर्मा को
इस शोध के लिए मंगलवार को हिमाचल प्रदेश विवि में पीएचडी की डिग्री प्रदान
की गई । वर्मा ने द रोल ऑफ एनजीओज इन सस्टेनेबल डवलपमेंट- ए स्टडी द
वाटरशेड प्रोग्राम इन सोलन डिस्ट्रिक्ट पर शोध किया था।