मुंबई.राज्य
के पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूदा केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख नए विवाद
में फंस गए हैं। मामला लातूर के एक भूखंड का है। यह भूखंड मतिमंद बच्चों के
स्कूल के लिए आरक्षित था पर जीवन विकास प्रतिष्ठान ट्रस्ट के अनुरोध पर
श्री देशमुख ने भूखंड के व्यावसायिक इस्तेमाल की अनुमति दी।
श्री
देशमुख इस ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं। 2006 में जब भूखंड के व्यावसायिक
इस्तेमाल को हरी झंडी दी गई थी, उस समय श्री देशमुख ने पहले ट्रस्ट के
अध्यक्ष के रूप में भूखंड के आरक्षण को बदलने से संबंधित पत्र पर हस्ताक्षर
किए। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में भी हस्ताक्षर किया। बांबे
हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान गंभीरता से इस
तथ्य का संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायधीश मोहित शाह व न्यायमूर्ति गिरीश
गोडबोले की खंडपीठ ने लातूर के भूखंड से जुड़े सारे दस्तावेजों का निरीक्षण
करने के बाद कहा कि भूखंड का आरक्षण बदलने के लिए श्री देशमुख ने दो बार
हस्ताक्षर किए हैं।
उनका यह रुख कई सवाल खड़े करता
है। लातूर महानगरपालिका ने 1981 में ट्रस्ट को मतिमंद बच्चों के स्कूल के
लिए काफी कम दर पर 5130 वर्ग फुट का एक भूखंड दिया था। यह भूखंड व्यावसायिक
दृष्टि से काफी अच्छी जगह होने के कारण वहां स्कूल बनाने की बजाय एक
कामशिर्यल कांप्लेक्स बना दिया गया।
दो मंजिला इस
कांपलेक्स के पहले कुछ हिस्से का व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू किया गया। पर
2006 में जब श्री देशमुख मुख्यमंत्री बने तो उन्होंेने पूरी तरह से भूखंड
के व्यावसायिक इस्तेमाल को मंजूरी दे दी। इस दौरान ट्रस्ट की ओर से नगर
विकास विभाग को दो पत्र लिखे गए। जिसमें श्री देशमुख ने हस्ताक्षर किए हैं।
खंडपीठ ने राज्य के महाधिवक्ता रवि कदम को अपना
रुख स्पष्ट करने को कहा। श्री कदम ने इस पर कहा कि जब तक इस संबंध में
हाईकोर्ट की ओर से कोई लिखित आदेश जारी नहीं किया जाएगा तब तक वे कुछ नहीं
बोलेंगे। खंडपीठ ने फि लहाल इस मामले की सुनवाई गुरुवार तक के लिए टाल दी
है।