नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। सरकार की तमाम कोशिशों और दावों को धता बताते
हुए खाद्य वस्तुओं की महंगाई काबू से बाहर होने लगी है। खाने-पीने की
चीजों के महंगा होने से आम लोगों की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। सब्जियों, फल
और दूध के मूल्य बढ़ने से थोक मूल्यों पर आधारित खाद्य महंगाई की दर 11
फीसदी के पार पहुंच गई है। दालें और मोटे अनाज के स्थिर मूल्य भी चढ़ने लगे
हैं। महंगाई के इस रुख से सरकार व रिजर्व बैंक पर स्थिति से तेजी से
निपटने का दबाव और बढ़ सकता है।
महंगाई को लेकर सरकार नित नए उपायों की घोषणा करती रही है, लेकिन उसकी
कोशिशों का असर महंगाई को काबू करने में नहीं दिख रहा है। रिजर्व बैंक मांग
पर लगाम लगाने और महंगाई पर काबू के लिए मार्च, 2010 से 13 बार ब्याज दरों
में बढ़ोतरी कर चुका है। खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर पाबंदी और घरेलू
जिंस बाजार में स्टॉक सीमा जैसे प्रावधान भी नाकाफी साबित हुए हैं।
महंगी दालों की जगह मौसमी सब्जियों पर गुजारा करने वालों की मुश्किलें
फिर बढ़ गई हैं। सब्जियों के मूल्य में 25 फीसदी से अधिक की वृद्धि हो गई
है। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में बेमौसम बारिश से
सब्जियों की आपूर्ति पर बुरा असर पड़ा है। इससे उपभोक्ता मंडियों में कीमतें
बहुत अधिक बढ़ी हैं। हालांकि, आलू और प्याज के मूल्य में कोई खास अंतर
नहीं आया है।
15 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान खाद्य वस्तुओं की महंगाई दर
11.43 फीसदी पहुंच गई। यह इसके पहले वाले सप्ताह में 10.60 फीसदी थी।
दरअसल, अक्टूबर, 2010 में यह दर 14.20 फीसदी थी, जबकि चालू वित्त वर्ष
2011-12 के अप्रैल माह में 11.53 प्रतिशत थी।
वाणिज्य मंत्रालय की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक,
समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान सब्जियों के मूल्य में 25 और फलों में 11.96
फीसदी की वृद्धि हुई है। दूध की कीमतें भी हदें पार करते हुए 10.82 फीसदी
तक चढ़ गई। प्रोटीन के लिए महत्वपूर्ण अंडा, मीट और मछली के थोक दामों में
12.82 फीसदी की वृद्धि हुई है। दालें और मोटे अनाज भी अब महंगाई की गिरफ्त
में आ गए हैं। इनके दाम हाल के महीनों में नीचे चल रहे थे।