हालांकि हमारा अन्न भंडार किसी भी प्राकृतिक आपदा से निपटने में सक्षम है। फिर भी पिछले डेढ़-दो दशकों में कृषि उत्पादन की वृद्धि दर आबादी की वृद्धि दर से कम हो गई। आर्थिक समीक्षा (2008-09) के अनुसार, 1990-2007 के बीच कृषि उत्पादन की वृद्धि दर सालाना औसतन मात्र 1.2 प्रतिशत रह गई है, जो कि जनसंख्या की सालाना वृद्धि दर 1.7 प्रतिशत से कम है। साफ तौर पर यह रास्ता खाद्य संकट की ओर जाता है। इतना ही नहीं, कई सर्वे बताते हैं कि 40 प्रतिशत किसानों को अगर आजीविका का कोई विकल्प मिल जाए, तो वे खेती को छोड़ने को तैयार हैं। यह स्थिति तब है, जब दुनिया के सबसे अधिक भूखे और कुपोषित लोग भारत में रहते हैं। दुनिया में भुखमरी का शिकार हर पांचवां इंसान भारतीय है। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान की वर्ल्ड हंगर रिपोर्ट-2011 के मुताबिक, भूख से लड़ रहे देशों की सूची में भारत का 67वां स्थान है। 81 देशों की सूची में नेपाल, पाकिस्तान, रवांडा और सूडान जैसे देश भारत की तुलना में कहीं बेहतर हैं।
इस भुखमरी और खाद्य संकट से निपटने का एक ही रास्ता है- कृषि उत्पादन को बढ़ाना। इसके लिए खेती लायक जमीन का रकबा तो बढ़ाना ही होगा, साथ ही जमीन की उत्पादकता में बढ़ोतरी भी करनी होगी। कृषि को अच्छे मुनाफे का काम बनाना बेहद जरूरी है, ताकि किसान खुद अपनी कमाई से कृषि में निवेश कर सकें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)