स्विस बैंकों के प्रति भारतीय रुख- हरिवंश(प्रभात खबर)

आज अगर विदेशों में रखे भारतीय धन पर कोई बात हो रही है, तो इसका श्रेय
पूरी तरह अन्ना और बाबा रामदेव के आंदोलनों को ही है. दो वर्ष पहले जर्मनी
के एक द्वीप में भारत के धन रखे जाने की खबर जर्मन सरकार ने भारत सरकार को
दी, पर खूब हो-हल्ला के बाद भी कुछ नहीं हुआ. देश का धन अगर बाहर रहता है
और देश के लोग गरीबी और बेरोजगारी ङोलते हैं, तो इसे कौन-सा समाज कब तक
सहेगा? अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की उत्पत्ति की मूल वजह भी यही है.

समाज बेचैन है. उसे अभिव्यक्ति का विश्वसनीय मंच नहीं मिल रहा. यह मंच
आंदोलन का हो सकता है और सिर्फ़ राजनीतिक आंदोलन का ही. क्योंकि राजनीतिक
आंदोलन ही समाज को सुधार और बेहतर बना सकते हैं. इसलिए आज देश में एक कोने
से दूसरे कोने तक समान बेचैनी है.

यह बेचैनी यात्राओं में झलकती है. मुंबई के एक पाठक का पत्र पढ़ा. सात
सितंबर के ‘ऐशयन एज’ में. पत्र का शीर्षक था, भारत का स्विस द्वंद्व. पत्र
के अनुसार अमेरिका ने स्विस बैंकों को अल्टीमेटम दिया है कि वे गोपनीय
खाता-धन जमा करनेवाले अमेरिकी नागरिकों के नाम बतायें. पर भारत के
राजनेताओं से हम ऐसे कदम की अपेक्षा नहीं कर सकते, जो सरकारी खजाने लूटने
में लगे हैं. जब तक हमें ईमानदार नेता नहीं मिलते, जो भ्रष्टाचार खत्म करने
के प्रति प्रतिबद्ध हों, तब तक हमारे नेता और कॉरपोरेट हाउसों का अवैध धन
स्विस बैंकों में इकट्ठा होता रहेगा.

इस पत्र का आशय साफ़ है कि भारत सरकार स्विस बैंक से धन नहीं लाना
चाहती. यह धन भारत को लूट कर ले जाया गया है. यह काम किसी नादिरशाह, तैमूर
लंग या मोहम्मद गोरी ने नहीं किया. मैकाले ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था बदल
कर जिन काले अंगरेजों की कल्पना की थी, यह काम उन्हीं भारतीयों का हैं. यह
आधुनिक भारतीय रूलिंग क्लास और इलीट वर्ग है.

एक तरफ़ मुंबई के एक नागरिक की यह पीड़ा थी. ठीक उसी दिन दिल्ली से
प्रकाशित ‘टाइम्स आफ़ इंडिया’ में खबर थी कि अमेरिका को स्विस बैंक से अपने
नागरिकों के गोपनीय खातों की जानकारी मिलेगी. स्विस बैंक, अमेरिकी
नागरिकों के स्विस बैंकों में जमा काले धन की सूचना-ब्योरा अमेरिका को देने
पर सहमत हो गये है. यह खबर भी स्विट्जरलैंड से प्रकाशित एक समाचारपत्र में
छपी. स्विस फ़ाइनेंसियल मार्केट सुपरवाइजर अथॉरिटी के सर्वे के अनुसार
स्विस बैंकों में दस हजार से अधिक अमेरिकियों ने 20 से 30 बिलियन डॉलर जमा
कर रखे हैं.

अमेरिका ने कहा है कि 50,000 डॉलर से अधिक 2002 जुलाई से 2010 तक जिन
अमेरिकियों ने स्विस बैंकों में जमा किये, उनकी सूची दें. इस पर स्विस
वित्त मंत्री इवलाइन ने कहा कि वह इस अमेरिकी रुख से असहमत हैं. एक
स्वायत्त राष्ट्र, दूसरे स्वायत्त राष्ट्र से ऐसा बर्ताव नहीं करता. पर
अमेरिका अपनी मांग पर अडिग है. स्विस बैंक सूचना देने पर सहमत भी हो गये
हैं.

इन खबरों के बाद 13.09.11 को बेंगलुरु से प्रकाशित ‘डीएनए’ अखबार की खबर
थी ‘क्रिकेटर्स, फ़िल्म स्टार्स हैव ब्लैकमनी इन स्विस बैंक’ ( यानी
स्विस बैंक में भारतीय क्रि केटरों, फ़िल्म नायकों का काला धन है). यही खबर
’टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ (13.09.11), बेंगलुरु में भी थी.

यानी पूरे देश में उत्तर से दक्षिण तक इस काले धन पर और कुलीनों के
भ्रष्टाचार पर आक्रोश है. रूडोल्फ़ एल्मर के बारे में भी इन खबरों में
चर्चा थी. वह बेमिसाल ह्विसिलब्लोअर (सूचना सार्वजनिक करनेवाले) हैं .
उन्होंने सीकेट्र स्विस बैंक खातों का भंडाफ़ोड़ किया है. 3.09.11 को
उन्होंने भारत सरकार पर आरोप लगाया कि वह स्विस बैंक में जमा भारतीय काले
धन के बारे में गंभीर नहीं है. एल्मर को जेल की सजा हुई. स्विस बैंक के
गोपनीय खातों के खुलासे के आरोप में.

एल्मर कर चोरी और स्विट्जरलैंड के सीकेट्र बैंक खातों की गोपनीयता के
खिलाफ़ सार्वजनिक मुहिम की अगुआई कर रहे हैं. इस मामले में उनकी गिरफ्तारी
हुई, जेल गये, फ़िर छूटे, फ़िर जेल गये. फ़िर रिहा हुए. उन पर स्विट्जरलैंड
में अपने देश का कानून तोड़ने और गोपनीयता कानून भंग करने की जांच चल रही
है. जेल से छूटने के बाद उनका पहला बयान था कि भारत सरकार स्विस बैंक में
रखे भारतीय काले धन के बारे में जरा भी गंभीर नहीं है. उनका कहना है कि
अन्य समाज या देश, स्विस सरकार पर दबाव डाल रहे हैं. गोपनीयता कानून बदलने
के लिए. गोपनीय सूचनाओं को उजागर करने के लिए. उन्होंने कहा कि भारत महादेश
है, जो दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है. वह इस मुद्दे पर दबाव पैदा
करने की स्थिति में है. पर चुप है. उन्होंने बताया कि अनेक भारतीय
कंपनियां, संपन्न भारतीयों, क्रिकेटरों और फ़िल्म स्टारों ने इन बैंकों में
काला धन छुपाया है. उनके अनुसार भारतीय केमन आइसलैंड को बैंकिंग का स्वर्ग
मानते हैं. उन्होंने कहा कि 2008 में टैक्स से बचनेवालों की जो सूची
उन्होंने सार्वजनिक की, उसमें अनेक भारतीय नाम थे.

एल्मर ने माना कि अमेरिका ही एकमात्र देश या सरकार है, जो अपने यहां कर
चोरी करनेवालों के प्रति सख्त या गंभीर है. हाल में आयी खबरों से स्पष्ट है
कि अब स्विस बैंक, अमेरिकी दबाव के आगे झुक रहे हैं और अमेरिकी अधिकारियों
को उन अमेरिकी नामों की सूची दे रहे हैं, जिनके पैसे विदेशी बैंकों में
हैं. एल्मर ने कहा कि इस मुद्दे पर पूरी दुनिया की प्रतिबद्धता चाहिए कि वे
टैक्स चोरों से कैसे लड़ें? ऐसे धन छुपानेवालों को एल्मर अपराधी मानते
हैं. उनके खिलाफ़ वैश्विक एकता चाहते हैं. एल्मर स्विस बैंक, जूलियस बार
में वरिष्ठ पद (सीनियर एक्जीक्यूटिव) पर थे. उनके अनुसार भारत सरकार की
स्थिति या टालू रुख को देखते हुए भारतीय समाज को हरकत में आना होगा. सरकार
पर दबाव बनाना होगा. याद रखिए, एल्मर ने जनवरी 2011 में विकीलीक्स को एक
सीडी दी थी, जिसमें दुनिया के 2000 टैक्स छुपानेवाले लोगों और ब्लैकमनी
रखनेवालों के नाम थे. इससे पूरी दुनिया में खलबली मच गयी. तब से विकीलीक्स
के नाम से इंटरनेट पर अनेक भारतीय लोगों के बारे में भी सूचनाएं आ रही हैं,
जिनके धन विदेशों में हैं.

इधर भारतीय सरकार योजना बना रही है कि कैसे विदेशोंमेंरह रहे या भारत
में रह रहे उन भारतीयों को विशेष कर छूट देकर या मामूली कर लगा कर माफ़ी का
बंदोबस्त हो, जिन्होंने भारतीय धन को स्विस बैंकों या विदेशों में छुपा
रखा है. खबरों के अनुसार सरकार स्वैच्छिक आय घोषणा योजना बना रही है. इसके
तहत विदेशी बैंकों में गोपनीय खातों से धन वापस लाने की छूट दी जायेगी. एक
तरफ़ अमेरिका सख्ती से अमेरिकी धन बाहर छुपाने वालों के खिलाफ़ कारवाई कर
रहा है, वहीं भारत सरकार ऐसे काम करनेवालों को सार्वजनिक माफ़ी योजना पर
काम कर रही है.

इसके पहले भी 1997 में वालेंटरी डिसक्लोजर ऑफ़ इनकम स्कीम लागू की गयी
थी. इसमें 3.5 लाख से अधिक लोगों ने अपना खुलासा किया. 7800 करोड़ का
खुलासा हुआ. 31.12.98 को यह योजना बंद कर दी गयी. हाल ही में वाशिंगटन
स्थित एक सर्वे संस्था (ग्लोबल फ़ाइनेंसियल इंटिग्रिटी) ने अनुमान लगाया कि
भारत से अवैध रूप से विदेश जानेवाली राशि 20,79,000 करोड़ रुपये यानी 462
बिलियन है. भाजपा टास्क फ़ोर्स ने अनुमान लगाया था कि देश में काला धन 500
बिलियन डॉलर (22 लाख करोड़ रुपये) से लेकर 1.4 ट्रिलियन डालर (लगभग 63 लाख
करोड़ रुपये) है.

फ़ार्चून पत्रिका (सिंतबर) के अनुसार गुजरे 10 वर्षो में भारत में 15.55
करोड़ का भ्रष्टाचार हुआ है. इस पत्रिका के अनुसार 2जी आवंटन प्रकिया में
सरकार को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ. 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में 2342
करोड़ रुपये की चोरी हुई, भ्रष्टाचार के कारण. आज अगर विदेशों में रखे
भारतीय धन पर कोई बात हो रही है, तो इसका श्रेय पूरी तरह अन्ना और बाबा
रामदेव के आंदोलनों को ही है.

दो वर्ष पहले जर्मनी के एक द्वीप में भारत के धन रखे जाने की खबर जर्मन
सरकार ने भारत सरकार को दी, पर खूब हो-हल्ला के बाद भी कुछ नहीं हुआ. देश
का धन अगर बाहर रहता है और देश के लोग गरीबी और बेरोजगारी ङोलते हैं, तो
इसे कौन-सा समाज कब तक सहेगा?अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की उत्पति की मूल
वजह भी यही है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *